स्टोरी हाइलाइट्स
कृष्ण और कालयवन-----------------श्रीकृष्णार्पणमस्तु-12 krishna-and-kalayavan-sri-krishnanarpanamastu-12
कृष्ण और कालयवन- श्रीकृष्णार्पणमस्तु-12
रमेश तिवारी
ऊर्जावान और स्फूर्त श्रीकृष्ण की बुद्धि, चातुर्य और दुस्साहस की यह कथा अद्भुत है। कल्पना से परे। इतना भर समझ लें कि जैसे कोई व्यक्ति स्वयं जाकर किसी भूखे शेर के सामने खडा़ हो जाये, बस। श्रीकृष्ण इसी मुद्रा में जाकर कालयवन के शिविर के सामने जा खडे़ हुए और द्वारपाल से बोले.! जाओ और कालयवन से बोलो, कृष्ण आया है।
तुम्हारे राजा से कहना कि कृष्ण तुमसे मिलना चाहता है! श्रीकृष्ण के अदम्य साहस और आत्मविश्वास की इस घटना के पूर्व की कथा हम बता ही चुके हैं। जिस कृष्ण को चारों दिशाओं से आकर और घेर कर मार डालने की योजना बनाई जा रही हो, और वही व्यक्ति शत्रु के शिविर में आ जाये, तो! ताकतवर से ताकतवर शत्रु भी पसीना, पसीना हुए बिना नहीं रह सकता।
हुआ यह कि बलराम और श्रीकृष्ण के संरक्षण में यादवों का दल राजस्थान के अलवर और धवलगिरि (धौलपुर) के बीच स्थित लवणीय गिरि पर्वत के समीप लवणीय नदी के समीप पहुंचा। कृष्ण को पता चला कि लवणगिरि के समीप कोई 8 दिन की दूरी पर ही कालयवन ठहरा है। उन्हें चिंता हुई। उन्होंने बलराम सहित यादव वीरों से कहा- देखो भाई! बहुत बडा़ खतरा है। शत्रु समीप है।
फिर, हम तीनों ओर से पहले ही घिरे हुए हैं। हमारे वृद्ध पुरुष, अंडी, बच्चों को कलेजे से चिपकाये चल रहीं स्त्रियां, बैलगाड़ी और हजारों मवेशियां इतनी जल्दी गंतव्य तक नहीं पहुंच सकते! इसलिये मुझको अनुमति दो ताकि मैं स्वयं ही कालयवन के समक्ष जाकर सीधे सीधे उपस्थित हो जाऊं। उन्होंने चिंतित यादवों को समझाया। तुम लोग आराम से द्वारका तक सकुशल पहुंच सको, तब तक मैं कालयवन को उलझाये रखूंगा। वह मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेगा।
विश्वास करो मुझ पर। किंतु बलराम और यादव वीर कृष्ण की बात मानने को राजी नहीं हो रहे थे। उन्हें कृष्ण की क्षमताओं पर पूरा विश्वास तो था,किंतु वे इस प्रस्ताव को पहाड़ में सिर मारने की तरह भी देख रहे थे। अततः कृष्ण के लाख समझाने पर यादव मान गये। गोकुल में दूध, दही और माखन खाकर बैलों को दौडा़ने, सांडों को नाथने और घुड़सवारी में अव्वल कृष्ण ने एक सर्वश्रेष्ठ घोडा़ लिया। कम वजनी शिरस्त्राण और घातक शस्त्र धारण किये। घोडे़ की पीठ पर छलांग लगाई और कालयवन के शिविर में जा पहुंचे। माइंड गेम में माहिर श्रीकृष्ण की योजना सफल रही। उनका अपनी तरह से युद्ध लड़ने का अपना तरीका था।
शिविर में आराम कर रहा कालयवन चौंका ही नहीं, बुरी तरह से डर भी गया। अपनी सेना के सामने अकेले कृष्ण के आकर खडे़ होने से बौखला गया। क्रोध में विवेक शून्य हो गया। एक तरह से किंकर्तव्यविमूढ सा। थोडी़ देर तक तो सोचता रहा और फिर! उसके अहंकार ने उसको कृष्ण को चकनाचूर करने का फैसला ले ही लिया। भारी भरकम पुष्ट शरीर कालयवन ने युद्धवस्त्र पहिने।
भारी कवच और शस्त्र धारण किये और श्रीकृष्ण को ललकारते हुए शिविर से बाहर निकला। क्रोध से कांपता कालयवन जब बाहर आया! तो क्या देखता है- श्याम, अपने चिरपरिचित सौम्य रूप में मुस्कुरा रहे हैं। कृष्ण का यह मुस्कुराता स्वरूप देख, कालयवन आग बबूला हो गया। कालयवन ने अपशब्दों का प्रयोग करते हुए श्रीकृष्ण पर आक्रमण कर दिया।
किंतु सतर्क कृष्ण ने घोडे़ को ऐसी ऐंड़ मारी कि घोडा़ यह गया और वह गया! चम्पत हो गया। अब बारी फिर कालयवन की थी। उसने भी एक घोडा़ लिया और तीव्र गति से श्रीकृष्ण के पीछे हो लिया। अब आगे, आगे श्रीकृष्ण और, पीछे पीछे लगा चला आ रहा साक्षात् मृत्युरूप कालयवन। स्थिति यह बनी कि यादवों पर आक्रमण की योजना के पखवाडे़ पूर्व ही श्रीकृष्ण ने शत्रुओं का व्यूह छिन्न भिन्न कर दिया। तीनों ओर से आने वाली, जरासंध-पौंडृ, भीष्मक और साल्व की सेनाओं को अवसर ही नहीं मिला कि वे लवणीयगिरि तक पहुंच पाते।
श्रीकृष्ण तो युद्ध के पूर्व ही शत्रुओं का खेल बिगाड़ने पहुंच गये थे ऐसे मार्गों और ऊंचे नीचे स्थानों से घोडा़ भगा रहे थे, जहां से भारी भरकम शरीर कालयवन को कष्ट हो रहा था। हल्के और चुस्त शरीर श्याम का घोडा़ थक भी नहीं रहा था। धवलगिरि की पहाडि़यों के आते, आते प्रत्युत्पन्न मति कृष्ण ने कालयवन को पस्त करने की एक और नवीन योजना पर विचार किया और फिर तो कृष्ण ने कालयवन के मुंह से फसूकर ही निकलवा दिया! आज की कथा यहीं तक। तब तक विदा। धन्यवाद|