भोपाल: रीवा-शहडोल हाईवे से सटी वन भूमि को रसूखदार व्यक्तियों के कथित पट्टे को वैध कराने के लिए मंत्रालय में बैठे शीर्ष अधिकारी से लेकर मुख्यालय तक ने अफसरों ने दक्षिण शहडोल डीएफओ पर दबाव बनाया। अपर मुख्य सचिव ने उसे टाइम लिमिट बैठक में प्रमुख एजेंडा बनाया। डीएफओ को भोपाल तलब किया।
जब डीएफओ पीसीसीएफ संरक्षण मनोज अग्रवाल के समक्ष दस्तावेज प्रस्तुत किए तो उन्होंने डीएफओ को निर्देश दिए कि कलेक्टर शहडोल को पत्र लिखकर पट्टे निरस्त कराओ। दक्षिण शहडोल डीएफओ श्रद्धा पेंद्रे उल्टे पैर वनमण्डल ऑफिस लौटी। डीएफओ पेंद्रे ने बताया कि वह कथित पट्टे को निरस्त करने के लिए कलेक्टर को पत्र लिखेंगी।
दक्षिण शहडोल डीएफओ ने पीसीसीएफ मुख्यालय वन भवन भेजे अपने प्रतिवेदन में दस्तावेज संलग्न में करते हुए उल्लेख किया है कि ग्राम रोहनिया खसरा क्रमांक 106/5 का नया खसरा क्रमांक 17/1 रकबा 0.405 हे. ममता सिंह पति सुधीर सिंह, खसरा क्रमांक 17/2 रकबा 1.561 हे. माधुरी सिंह पति मनोज सिंह, खसरा क्रमांक 17/3 रकबा 0.405 हे., दिनेश पाण्डेय कुल रकबा 2.371 हे., 5.86 एकड़ भूमि है। वर्ष 2025-26 के खसरा पंचशाला के अनुसार उल्लेखित भूमि स्वामी है। जबकि ये सभी भूमियां वन खंड का हिस्सा है।
डीएफओ ने अपने प्रतिवेदन में यह भी उल्लेख किया है कि भू-स्वामी का दावा करने वालों पर सवाल उठाया कि जब ग्राम रोहनिया खसरा क्रमांक 106/5 रकबा 5.86 एकड़ में वर्ष 1974 के अनुसार राम अवतार पिता बृजमोहन भूमि स्वामी दर्ज है तो फिर ममता सिंह पति सुधीर सिंह, माधुरी सिंह पति मनोज सिंह, दिनेश पाण्डेय रकबा 2.371 हे.,कुल 5.86 एकड़ भूमि के स्वामी कैसे बन गए? इस संबंध में भू स्वामी ने कोई दस्तावेज नहीं दिए हैं।
वैसे भी रीवा राज दरबार नोटिफिकेशन नं. 5 दिनांक 29/11/1933] प्रकाशन दिनांक 10 फरवरी/1934 से आरक्षित वनखण्ड रोहनिया-1 को कुल रकबा 44-80 एकड़ में ग्राम रोहनिया पुराना खसरा क्रमांक 106 रकबा 19-20 एकड़ वन-राजस्व सीमा विवाद में वनमण्डल द्वारा तैयार अभिलेख के अनुसार आरक्षित वनखण्ड में सम्मिलित है। डीएफओ ने विवादास्पद भूमि आज भी सघन वन होने संबंधित फोटोग्राफ भी प्रस्तुत किए हैं।
यह मामला क्यों तूल पकड़ा..
पॉलिटिकल एप्रोच रखने वाले मनोज सिंह, सुधीर सिंह और दिनेश रीवा-शहडोल हाईवे बनने के बाद जंगल की 5.86 एकड़ भूमि का पट्टा होने का दावा करते आवेदन दिया कि इसे वन खंड से डिनोटिफाई किया जाए। इस आवेदन को विशेष तरजीह देते हुएअपर मुख्य सचिव वन अशोक वर्णवाल ने उसके निराकरण के लिए टाइम लिमिट बैठक के मुख्य एजेंडे के रूप में शामिल कर लिया।
प्रति मंगलवार को होने वाली हर बैठक में फारेस्ट अफसरों से अपडेट लेते और उनकी क्लास लेने लगे। एसीएस के दबाव में आकर सीएफ शहडोल ने डीएफओ और रेंजर पर दबाव बनाया तो उनमें विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि पीसीसीएफ संरक्षण को हस्तक्षेप करना पड़ा। पीसीसीएफ मनोज अग्रवाल ने दस्तावेज देखते ही डीएफओ श्रद्धा पेंद्रे को निर्देश दिए कि कलेक्टर शहडोल को पत्र लिखकर पट्टे निरस्त करने की कार्रवाई करो।