RESEARCH: क्या ध्यान के नाम पर सजगता और और एकाग्रता के अभ्यास घातक हैं| P अतुल विनोद
Does meditation carry a risk of harmful side effects?
ध्यान के काल्पनिक प्रयोग आपको अनेक तरह से प्रभावित कर सकते हैं|
"Meditation can leave you feeling even more stressed," The claim is prompted by a study of 60 practitioners of Buddhist meditation in the US which found they'd had a range of "challenging or difficult" experiences associated with the practice.
"ध्यान के नाम पर कराए जाने वाले फोकस, अवेयर अलर्ट और कंसंट्रेट करने के प्रयोग प्रतिभागी के इमोशंस, धारणा, नजरिया, सामाजिकता, स्वयं के बोध पर नाकरात्मक प्रभाव् डालते हैं"
रिसर्च और अध्ययन बताते हैं कि इन प्रयोगों से व्यक्ति मतिभ्रम(hallucinations), उग्रता और व्यग्रता(panic), प्रेरणा का अभाव(Total loss of motivation), और पुरानी दुखद यादों के ताजा होने के कारण कठिनाई में पड़ सकता है|
कथित अध्यात्मवादी ध्यान के कथित प्रयोगों को लेकर बताई जाने वाली सच्चाई से विचलित हो जाते हैं और इसे सनातन धर्म और भारतीय ध्यान योग विद्या का विरोध समझकर तुरंत अस्वीकार कर देते हैं|
भारतीय योग विद्या ने कभी भी इस तरह के कृत्रिम अभ्यास नहीं बताये|
पतंजली योग सूत्र में भी ऐसे अभ्यास नहीं बताये गए जो प्रचलित हैं|
सच्चाई ये है कि अध्यात्म और योग के नाम पर फोकस और कंसंट्रेशन के अभ्यास से न जाने कितने लोग ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं जहां से उनका वापस आना मुश्किल दिखाई देता है|
ध्यान के कृत्रिम प्रयोगों के कारण भ्रम(delusional), अप्राकृतिक, अव्यवारिक, काल्पनिक, आभासी, चित्र और विचार घेर लेते हैं, इससे एनर्जी चेनल्स/ मेरिडियांस में कुछ रेंगता हुआ, घूमता हुआ, हवा, चीटी चलने जैसा अहसास होने लगता है जिसे कुण्डलिनी जागरण बता दिया जाता है| व्यक्ति एक काल्पनिक दुनिया बना लेता है और खुदको सिद्ध पुरुष मानकर और अभ्यास करता है जिससे उसके ब्रेन में उर्जा, वायु का प्रवाह बढ़ जाता है उसे चक्रों का जागरण मानकर दर्द सहता रहता है| ये सब उसके जीवन को खराब कर देते हैं| इससे बदनाम होता है "ध्यान" जबकी ये अभ्यास ध्यान नहीं हैं| न ही भारतीय योग विद्या का हिस्सा हैं|
अंतराष्ट्रिय स्तर पर हुए शोध में बुद्धिस्ट, झेन, Theravāda, Tibetan मैडिटेशन के साइड इफेक्ट्स सामने आये हैं कुछ इसी तरह के बुरे प्रभाव तांत्रिक मैडिटेशन त्राटक में देखने को मिलें हैं
बुद्धिस्ट, झेन, Theravāda, Tibetan मैडिटेशन के नाम से प्रचलित विधियों और भारतीय प्राचीन योग ध्यान विद्या में बहुत बुनियादी फर्क है| कृत्रिम ध्यान विधियान भौतिक उपक्रम से ज्यादा कुछ नहीं|
दरअसल जीवन बहती हुई नदी की तरह है| इसकी धार रोकी तो इसका बिगड़ना स्वभाविक ही है|

बहती हुई नदी को रोकने के लिए बांध बनायेंगे तो वहां उसका पानी इकट्ठा होने लगेगा| इस पानी को रोक कर रखने के लिए बांध की दीवारें मजबूत होनी चाहिए| धार रोकने का मकसद भी होना चाहिए| जो पानी रोका गया है उसे डिस्ट्रीब्यूट करने का प्लान भी चाहिए| जब बारिश हो तो समझदारी पूर्ण ढंग से गेट को खोलने की तकनीक पता होनी चाहिए|
नदी को बहने के लिए किसी प्रशिक्षण की जरूरत नहीं होती है| वो तो स्वाभाविक रूप से बहती है अपनी मस्ती में झर-झर, कल-कल करते हुए सदियों तक बहती चली जाती है, वो तब भी बहेगी जब उसे बांध बनाकर रोक लिया जायेगा, भले खाली स्थान भरने तक उसे रोका जा सके लेकिन फुल होते ही उसे रास्ता देना होगा| उसे रोका नहीं जा सकता एक ही रास्ता है उसका स्रोत सुखा दिया जाये|
ऐसे ही जीवन है उसमें सहज रूप से बहने की समझ होती है| हम चलते हैं तो उसके लिए फोकस की जरूरत नहीं होती|
आंखों को पलक झपकने के लिए बताना नहीं पड़ता|
यदि हम सतर्क होकर पलको को झपकाने की कोशिश करें तो हम असहज हो जाएंगे| हम सजग होकर चलने की कोशिश करें तो डगमगाने लगेंगे|
तथाकथित अध्यात्म-योग के महारथी हमें सजगता सिखाते हैं| वे कहते हैं जो करो सजग होकर करो| लेकिन ये तो जीवन के सहज प्रवाह से छेड़छाड़ करना है| अलर्ट हो जाओ, अवेयर हो जाओ, सांसों को गिनो-देखो|
ऐसे प्रयोग महेश और पार्वती संवाद की आड़ में तन्त्र के नाम पर लिखी गयी कुछ किताबों में भी हैं जिनका वास्तविक योग से कोई सम्बन्ध नहीं| तन्त्र को जायज़ बनाने के लिए हज़ारों किताबें लिखी गयी हैं जिनका कोई प्रमाण नहीं| ख़ास बात ये है कि सबमें शंकर पार्वती को जोड़ दिया गया|
ज्यादा सजगता, एकाग्रता, केंद्रीयकरण हमे असहज बना देता है| ये यह सब योग, ध्यान और साधना का हिस्सा नहीं|
ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने किताबें पढ़कर आंखों को किसी बिंदु, ज्योति, या सूर्य की रोशनी पर केंद्रित करने की कोशिश की| इससे आंखों की पलक झपकने की सहज प्रवृत्ति बाधित हो गई|
इस तरह के ध्यान प्रयोगों से सूंघने, स्वाद लेने, स्पर्श करने, सोचने और देखने की सहज प्राकृतिक व्यवस्था भी बाधित हुई है| लोग ऐसे प्रयोगों से अनेक तरह के दृश्य, भ्रम पूर्ण रौशनी, देखते हैं ये सब इन्हें खुली आँखों से भी दिखाई देता है इनमे आभासी अनुभव करने वालों का प्रतिशत ज्यादा होता है|

आंखों को नियन्ता ने नियमित अंतराल पर पलके झुकाना सिखाया है ताकि आंखों की नमी बनी रहे लेकिन क्या होगा जब आप लगातार, एकटक किसी ऑब्जेक्ट को बिना पलक झपके देखते रहें?
आपकी आंखें ड्राई हो जाएगी, हो सकता है कि आपके माइंड को ये सिग्नल मिले कि उसे पलक झपकाने की जरूरत नहीं, तक उसकी नेचुरल प्रोग्रामिंग डिस्टर्ब हो जाएगी, तब आपको इसके लिए अपनी उंगलियों का इस्तेमाल करना पड़ेगा| इसी तरह विचारों को पकड़ने और उन्हें बलपूर्वक रोकने की विधियां भी बताई जाती हैं| लेकिन इससे विचार और बढ़ते हैं|
जीवन के प्रवाह में सब कुछ सहज घटित होता है| हम ऑफिस में एक काम करते हैं तो मन में दुसरे विचार भी चलते हैं| हम कार चलाते हैं तो साथी से बात भी कर लेते हैं उसी दौरान हमे रास्ते का काम भी याद आ जाता है|
इस विलक्षण संरचना में एक साथ करोड़ों काम होते रहते हैं| आप पैदल चलते हैं तब भी आपके हाथ अपना काम करते रहते हैं, कान अपना काम करते हैं, नाक अपना काम करती है, जीभ अपना काम करती हैं आंखें अपना काम करती है, ब्रेन के सभी फंक्शन चलते रहते हैं|
शरीर में करोड़ों अंग है,जो बाहर दिखाई देते हैं उनके अलावा अंदर भी न जाने कितनी ग्रंथियां नाड़ी समूह, चक्र हैं जिन्हें सजग होकर निर्देश देने की जरूरत नहीं|
इसलिए ध्यान को सजगता, फोकस और एकाग्रता से जोड़ने से बचें| ध्यान में, शांत बैठे हों और मन में कोई विचार आ रहा है तो उसे जीवन की प्रक्रिया का हिस्सा माने और उस पर बे-वजह बांध बनाने की कोशिश ना करें|
जब भी हम विचारों के प्रवाह को दीवार बनाकर रोकने की कोशिश करेंगे तब विचारों का ढेर खडा हो जायेगा| आप कृत्रिम प्रयोगों से ईश्वर और दिव्य शक्तियों को खुश नहीं कर सकते|
क्या आपको लगता है कि आपकी इस तरह की एक्सरसाइज भगवान को खुश कर देगी और आपको दिव्य शक्तियां प्रदान कर देगी?
दिव्य शक्तियां मिले ना मिले लेकिन आप उग्रता, पैनिक डिसऑर्ड,र एंजायटी, फियर, अवसाद, दुख शोक का शिकार हो सकते हैं|
इसलिए शांत बैठें तो विचारों को न रोकें, चलने दें जैसे ध्यान में शरीर के सभी अंग काम करते हैं वैसे ही मन भी काम करेगा| निर्विचार होने के लिए विचार की नदी के प्रवाह को रोकने की ज़रूरत नहीं| आपका उद्देश्य पवित्र है तो आपकी चेतना शक्ति विचारों को उस स्रोत से कंट्रोल करेगी जहाँ से वो निकलते हैं|