ध्यान क्यों नहीं लगता, ध्यान करते समय गंदे विचार क्यों आते हैं.. दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

आज हम आत्मज्ञान के लिए ध्यान के महत्त्व और उसके विषय में अन्य महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं. ध्यान के बारे में बहुत अच्छी बातें..

ध्यान क्यों नहीं लगता, ध्यान करते समय गंदे विचार क्यों आते हैं.. दिनेश मालवीय ध्यान क्यों नहीं लगता, ध्यान करते समय गंदे विचार क्यों आते हैं, ध्यान की सबसे आसान विधि क्या है,  ध्यान को लेकर बहुत सी गलत अवधारणायें हैं,  ध्यान आत्मज्ञान का सबसे सशक्त माध्यम,  आज हम आत्मज्ञान के लिए ध्यान के महत्त्व और उसके विषय में अन्य महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं. ध्यान के बारे में बहुत अच्छी बातें सुनकर हर कोई ध्यान करने की ओर प्ररित होता है. हर कोई इससे आकर्षित हो जाता है. कुछ प्रयास करने के बाद जब ध्यान में उसे सफलता नहीं मिलती, तो वह निराश होकर बैठ जाता है. इस सम्बन्ध में हम कुछ उपयोगी बातें करेंगे. भारत के पास अध्यात्म की बहुत समृद्ध विरासत है. इसे युगों-युगों से हमारे ऋषि-मुनियों ने गहन साधना और तपस्या से अर्जित किया है. उन्होंने ध्यान को आध्यात्मिक उन्नति के लिए सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी माध्यम माना. लेकिन वर्तमान में धर्म और अध्यात्म से जुडी अनेक बातों की तरह ध्यान को लेकर बहुत सी ऐसी बातें प्रचारित हो गयी हैं, कि जिनका जिस ध्यान की बात ऋषि-मुनियों ने की है, उससे कोई सम्बन्ध ही नहीं है. आजकल सामान्य रूप से ध्यान को एकाग्रता प्राप्त करने का साधन अधिक माना जाने लगा है. यह बात कुछ हद तक सही है कि ध्यान करने से मन की एकाग्रता में कुछ वृद्धि होती है, लेकिन यह एकाग्रता आध्यात्मिक नहीं होती. ध्यान की अनेक विधियाँ प्रचारित की जा रही हैं. कहा जा रहा है कि ध्यान करने से सब कुछ प्राप्त हो जाता है. इस सब बातों में सच थोड़ा-थोड़ा ही है. ध्यान की जो विधियाँ प्रचारित की जा रही हैं, वे मन को कुछ देर तक किसी विषय में केन्द्रित करने में तो सहायक हो सकती हैं, लेकिन उनसे कोई आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती. हालाकि यह बात भी सच है कि सभी लोगों का लक्ष्य आध्यात्मिक उन्नति होता भी नहीं है. इस अर्थ में ये सभी ध्यान पद्धतियाँ सहायक होती हैं. इन्हें अपनाने में कोई बुराई या नुकसान नहीं है. इनसे लाभ ही होता है. लेकिन जिन लोगों में आध्यात्मिक प्यास और आत्मज्ञान की लालसा है, उन्हें ध्यान को ठीक से समझकर आगे बढना चाहिए. पतंजलि योग दर्शन में समाधि यानी enlightenment के जो सौपान बताये गए हैं, उनमें ध्यान सातवाँ सौपान है. ध्यान साधने से पहले छह अवस्थाओं को पार करना पड़ता है. ये हैं यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार और धारणा. इसके बाद ध्यान की अवस्था आती है. इस बात को सुनकर डरने या निराश होने की ज़रूरत नहीं है. ध्यान करना बहुत कठिन लग सकता है, लेकिन यदि मन में सच्ची प्यास हो तो ध्यान की अवस्था तक पहुंचना बहुत कठिन नहीं है. वैसे तो आध्यात्मिक साधना में उतावलेपन का कोई स्थान नहीं होता और कुछ प्राप्त करने में जल्दीबाजी बहुत बड़ी बाधक होती है.लेकिन ध्यान के मामले में इस बात का ख़ास तौर पर ध्यान रखा जाना चाहिए . ऐसा नहीं होता कि आप बैठ जाओ और ध्यान लग जाए. जो लोग इंस्टेंट ध्यान की बात करते हैं, वे सही नहीं है.ध्यान को लेकर सबसे बड़ी भ्रान्ति यह है कि ध्यान किया जाता है. “किया जाता” शब्द ही गलत है. ध्यान कोई क्रिया या कर्म नहीं है जो किया जाए. वास्तव में कुछ न करना ही ध्यान है. Just sitting doing nothing. नहीं करने का अर्थ यह नहीं है कि आप निष्क्रिय बैठते हैं. इसका अर्थ यह है कि आप अपनी तरफ से ध्यान लगाने का प्रयास नहीं करते.ध्यान की अवस्था को आने में बाधक नहीं बनते. ध्यान की अवस्था तो आपकी मूल अवस्था है. इस्र्फ़ उसपर पड़े आवरण हटाना है. वास्तव में ध्यान चित्त की एक अवस्था है, जिसमें आपका प्रवेश होता है. यह अवस्था अपने आप आती है. सबसे आसान विधि : ध्यान की वैसे तो अनगिनत विधियां हैं और सभी अपनी-अपनी जगह सीमित अर्थ में सही हैं. लेकिन सबसे प्रभावी विधि यह है कि आप किसी साफ़-स्वच्छ स्थान पर सहज आसन में बैठ जाएँ. बहुत अधिक तनकर बैठने की ज़रूरत नहीं है. आप जिस तरह से बहुत देर तक आसानी से जिस आसान में बैठ सकें, वही आसान आपके लिए सबसे उपयुक्त है. बैठने के बाद अपने भीतर चलते हुए विचारों के प्रवाह को सिर्फ देखना है. किसी भी विचार के साथ बहना नहीं है. इससे आपको धीरे यह अनुभूति होने लगेगी कि आप और विचार दोनो अलग हैं. आप विचार नहीं हैं और आप विचार आप नहीं हैं. विचार बहुत ऊपरी चीज है. इसे रूपक में समझा जाए तो विचार समुद्र की लहरों की तरह हैं और आप समुद्र. जिस तरह लहरें समुद्र नहीं हैं, उसी तरह विचार आप नहीं हैं. एक और उदाहरण आकाश और बादल का ले सकते हैं. आकाश को बादल छुपा देते हैं. जैसे ही बादल छंटते हैं, निरभ्र आकाश दिखाई देने लगता है. इसी तरह जब विचार रुपी बादल छंटने लगते हैं, तो अपना आत्मस्वरूप आकाश दिखाई देने लगता है. धीरे-धीरे जब आप स्वयं को विचारों का दृष्टा होने की योग्यता प्राप्त कर लेंगे, तो विचारों का प्रवाह भी क्षीण होने लगेगा. सबसे बड़ी बाधा : ध्यान का अभ्यास शुरू करने वाले लोगों की सबसे बड़ी शिकायत यह होती है कि ध्यान में बैठते ही विचारों का प्रवाह बढ़ जाता हैं. इनमें सबसे अधिक गंदे विचार होते हैं. साधक एकदम घबरा जाता है और ध्यान का अभ्यास छोड़ देता है. इस विषय में कुछ बातों को बहुत स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए. जो भी विचार आ रहे हैं, वे कहीं बाहर से नहीं आ रहे. हमने जो देखा है, सुना है, पढ़ा है, संसार से अर्जित किया है, वह सब विचार के रूप में हमारे सामने आता है .विचारों का प्रवाह तो हमेशा चलता रहता है, लेकिन विभिन्न कार्यों में व्यस्त रहने के कारण हमारा उनकी ओर इतना अधिक ध्यान नहीं जाता. आपने देखा होगा कि आप जब भी अकेले होते हैं, तो आपको अधिकतर गंदे विचार घेर लेते हैं. जब आप ध्यान के लिए बैठते हैं, तो इस तरह के विचार ख़ास तौर पर ऊपर आते हैं. जैसे किसी पोखर में पानी भरा हो. ऊपर से देखने पर वह पानी बहुत साफ़ दिख रहा हो, लेकिन यदि आप उसमें कोई बड़ा पत्थर फेंकें तो नीचे का कीचड़ ऊपर आ जाता है. ठीक ऐसा ही ध्यान के समय होता है. जानकारी और मार्गदर्शन के अभाव में हम इन विचारों से लड़ने लगते हैं. उन्हें दबाने की कोशिश करे हैं. लेकिन यह किसी भी तरह संभव नहीं है. विचारों से न तो लड़ा जा सकता है और न उन्हें दबाया जा सकता. कुछ देर के लिए कोई विचार दब भी जाए तो, वह ज़रा सी भी अनुकूल परिस्तिथि पाकर दस गुना वेग से स्प्रिंग की तरह उछलकर फिर सामने आ खड़ी होंगी. लेकिन इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जब आप इन विचारों को सिर्फ witness या साक्षी के रूप में देखते हैं, तो इनका प्रवाह क्षीण हो जाता है. इसका एक अच्छा उदाहरण देखते हैं. घर में या मोहल्ले में कोई व्यक्ति बेवजह कुछ भी बड़बड़ाता रहता हो और लोग उस पर ध्यान देने लगते हैं, तो वह और अधिक ऐसा करता है. जब लोग उसकी बात पर ध्यान नहीं देते, तो वह अपने आप ही चुप हो जाता है. जब हम विचारों की तरफ ध्यान नहीं देते, तो उनका प्रवाह भी कम हो जाता है. एक और भ्रान्ति यह है कि लोग एकाग्रता को ही ध्यान समझने लगते हैं. उनकी शिकायत रहती है कि ध्यान करने बैठते हैं, लेकिन एकाग्रता नहीं आती. यह गाड़ी के पीछे बैल जोतने जैसी बात है. ध्यान करने से एकाग्रता आती है, ना कि एकाग्रता से ध्यान. पहले आप अपने विचारों के साक्षी बने, और उन्हें क्षीण होने दें, तो अपने आप एकाग्रता आने लगेगी. ध्यान में बैठने के दौरान अपनी आती-जाती सांसों पर ध्यान रखने से भी समस्या का बहुत अच्छा हल निकल सकता है. साँस के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी है. उनमें हस्तक्षेप नहीं करना है. सांस तो चल ही रही है.सिर्फ उस पर ध्यान केन्द्रित करना है. ध्यान से उठने के बाद भी आप जितना संभव हो अपनी सांसों के प्रति सजग रहें तो ध्यान में आपकी प्रगति तेज हो जायेगी. ध्यान की अच्छी अवस्था प्राप्त करने का एक बहुत अच्छा उपाय यह है कि आप बाहरी वातावरण से कम से कम प्रभाव या impressions ग्रहण करें. हम जो भी देखते हैं, सुनते हैं, करते हैं, उसके संस्कार या impressions हमारे चित्त पर अंकित हो जाते हैं. फिर ये विचार बनकर हमारे भीतर चलते रहते हैं. इसलिए कम से कम प्रभाव ग्रहण करें और पहले से जो प्रभाव अड्डा जमाये हुए हैं, उन्हें कमज़ोर करें. ऐसा करने पर ध्यान फलित होगा. आप अपने को विचारों से अलग महसूस कर पाएँगे.