अनंत चतुर्दशी का शास्त्रों में विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार, अनंत चतुर्दशी का त्योहार हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इसे अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस दिन अनंत सूत्र बांधने की परंपरा है। यहां अनंत चतुर्दशी के दिन पूजा करते समय व्रत कथा पढ़ना जरूरी माना जाता है। आइए जानते हैं इसके बारे में
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
धर्मग्रंथों के अनुसार प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक कुलीन तपस्वी ब्राह्मण रहता था। उनकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उनकी एक अत्यंत सुन्दर एवं धर्मपरायण पुत्री थी। जिसका नाम सुशीला था। जब सुशीला बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से विवाह किया। सुशीला का विवाह ब्राह्मण सुमंत ने ऋषि कौण्डिन्य से कर दिया। विदाई में कुछ देने के लिए कहने पर कर्कशा ने कुछ ईंटें और पत्थर के टुकड़े बाँधकर अपने दामाद को दे दिये।
ऋषि कौण्डिन्य दुःखी होकर अपनी पत्नी सहित आश्रम में चले गये। लेकिन रास्ते में रात हो गयी। वे नदी के किनारे शाम बिताने लगे। सुशीला ने देखा कि बहुत-सी सुन्दर वस्त्र सजी-धजी स्त्रियाँ किसी देवता की पूजा कर रही थीं। सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधिपूर्वक अनंत व्रत का महत्व बताया। सुशीला ने वहां व्रत रखा और हाथों में चौदह गांठ वाली डोरियां बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आईं।
जब कौण्डिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उसने सारी कहानी बता दी। उन्होंने डोरा तोड़कर आग में फेंक दिया, इससे भगवान अनंतजी का अपमान हुआ। परिणामस्वरूप, ऋषि कौण्डिन्य दुखी हो गए। उसकी सारी संपत्ति नष्ट हो गयी। उन्होंने अपनी पत्नी से इस दरिद्रता का कारण पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान के धागे को जलाने की बात बतायी।
पश्चाताप करते हुए, ऋषि कौंडिन्य शाश्वत धागे की तलाश में जंगल में चले गए। कई दिनों तक जंगल में भटकने के बाद एक दिन वह निराश होकर जमीन पर गिर पड़े।
तब अनन्त भगवान प्रकट हुए और बोले - 'हे कौण्डिन्य! मेरा तिरस्कार करने के कारण तुम्हें इतना कष्ट सहना पड़ा। तुम्हें चोट लगी थी अब तो पश्चात्ताप हुआ। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाओ और विधिपूर्वक नित्य व्रत करो। चौदह वर्ष तक व्रत करने से तुम्हारा दुःख दूर हो जायेगा। आप धन-संपत्ति से समृद्ध होंगे। कौण्डिन्य ने भी ऐसा ही किया और सभी संकटों से मुक्त हो गये।'
भगवान विष्णु की आरती (Om Jai Jagdish Hare Aarti)
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥