अक्सर यह माना जाता रहा है कि खेती का काम पुरुष बेहतर तरीके से कर सकते हैं। और वैसे आज तक यही दिखता भी रहा है। महिलाएं इस क्षेत्र में सिर्फ कटाई, बुवाई और गहाई जैसे कार्यों तक सीमित रह गईं। लेकिन पूरी तरह से कृषि सम्हालने का अवसर नहीं मिला। लेकिन समय के साथ बहुत कुछ बदला है। महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपने आपको साबित किया है। तो भला कृषि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में उनकी भूमिका एक दम नगण्य भला कैसे हो सकती थी।
जी..बदली सोच के साथ कृषि क्षेत्र में भी महिलाओं की एक मजबूत भूमिका होने वाली है। अब आने वाले समय में महिलाएं भी खेती से जुड़ी तकनीक और नए-नए प्रयोग खेती-किसानी में सक्रिय भूमिका अदा करती देखी जा सकेगी। जी हां ये सौ टका सच है। एग्रीकल्चर से जुड़ी पढ़ाई को लेकर बालिकाओं की नई पौध तैयार करने का बीड़ा उठाया है, मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग नें।
नई शिक्षा नीति प्रदेश के चार सरकारी और 18 स्वायत्तशासी कॉलेजों में इस सत्र से बीएससी एग्रीकल्चर का कोर्स शुरू किया जा रहा है। इसी पहल में भोपाल के सरोजिनी नायडू कन्या महाविद्यालय में भी बी.एस.सी. एग्रीकल्चर कोर्स को मंजूरी दे दी गई है।
कोर्स को महाविद्यालय के पोर्टल पर भी एड कर दिया गया है। जिसके लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन भी शुरू हो गए हैं। कॉलेज में 50 सीटों के साथ ये पाठ्यक्रम शुरू हो रहा है। कॉलेज ने किसानों से भी अनुबंध किया है, ताकि छात्राएं खेतों में जाकर खेती-किसानी के गुर सीख सकें। अलावा इसके नवीबाग और सीहोर स्थित कृषि अनुसंधान संस्थान में भी छात्राओं को प्रैक्टिकल कराया जाएगा।
कॉलेज में भी 500 स्क्वायर फीट की जगह भी छात्राओं के प्रैक्टिकल के लिए तैयार की जा रही है। यानि कि कोर्स करने के बाद छात्राओं को कहीं बाहर जाकर काम करने की ज़रूरत नहीं वे अपने ही फार्म में अपने सीखे हुए टेक्निक्स का इस्तेमाल कर परिवार की आय बढ़ाने में सहायक हो सकती हैं। कोर्स करने के बाद एक ओर तो छात्राएं आत्मनिर्भर बनेंगी साथ ही उनके सामने अपने खाली समय का उचित और संपूर्ण तरीके से इस्तेमाल करने का भी ऑप्शन रहेगा।