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भगवान भरोसे भोपाल का विकास, जिसकी लाठी उसकी भैंस ...अतुल विनोद

अतुल विनोद अतुल विनोद
Updated Wed , 24 Apr

सार

मध्य प्रदेश की सरकार के तो कहने ही क्या हर साल दो साल में वह अवैध कॉलोनी और झुग्गी बस्तियों को वैध करने का ऐलान कर देती है। यही झुग्गी और जमीन माफिया का हौसला है। उन्हें मालूम है कि देर सबेर जो बस्ती वह बसायेंगे, भले ही वह सरकारी जमीन पर हो सरकार उन्हें वैध कर देगी। 

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विस्तार

भगवान भरोसे भोपाल का विकास, जिसकी लाठी उसकी भैंस ...अतुल विनोद

यूं तो भोपाल मध्य प्रदेश की राजधानी है, लेकिन इसके सुनियोजित विकास को लेकर शायद ही सरकार संजीदा रही हैं। कांग्रेस का कार्यकाल हो या बीजेपी का। 

भोपाल नगर निगम हो या प्रशासन, हर स्तर पर लापरवाही अनियमितता और दुरयोजना साफ नजर आती है। भोपाल के विकास को लेकर तमाम तरह की बातें करने वाले सियासी दलों की कथनी और करनी शहर में प्रवेश करते बेनकाब हो जाती है। इसकी हकीकत जानने के लिए कुछ उदाहरण देखें।

भोपाल के कलेक्टर कार्यालय के पास 4 एकड़ ग्रीन बेल्ट की जमीन पर 300 झुग्गियां बन गयी, और यह सब पिछले 3 साल में हुआ, यह राजधानी वन मंडल यूनिट टू की संपत्ति है, जिस पर 1972 में बांस बिरहा बनाया गया था, बांस के पौधे अतिक्रमण का शिकार होने लगे हरियाली पर झुग्गी माफिया ने डाका डाल दिया। कलेक्ट्रेट के पास की यह जमीन माफिया के अतिक्रमण का शिकार हो गई। यह सिर्फ एक झुग्गी बस्ती नहीं है पूरे भोपाल में आप रोज कहीं न कहीं झुग्गी तनते हुए देखेंगे।

यह झुग्गी कोई आम गरीब नागरिक नहीं बनाता, बल्कि इसके पीछे होता है झुग्गी माफिया, इसके पीछे होते हैं स्थानीय नेता जिनके संरक्षण में सरकारी जमीन पर पहले कब्जे होते हैं और फिर यह कब्जे स्थाई बन जाते हैं।

मध्य प्रदेश की सरकार के तो कहने ही क्या हर साल दो साल में वह अवैध कॉलोनी और झुग्गी बस्तियों को वैध करने का ऐलान कर देती है। यही झुग्गी और जमीन माफिया का हौसला है। उन्हें मालूम है कि देर सबेर जो बस्ती वह बसायेंगे, भले ही वह सरकारी जमीन पर हो सरकार उन्हें वैध कर देगी। 

भोपाल के चारों तरफ आप नगरीय प्लानिंग के दिशा निर्देशों के उलट कॉलोनी बनते हुए देख सकते हैं।

भोपाल एक ऐसा शहर है जहां पर मास्टर प्लान की सड़कें सदियों में पूरी नहीं होती।

हबीबगंज नाके से मास्टर प्लान की फोरलेन सड़क शुरू होती है लेकिन 4 किलोमीटर दूर यह सड़क बंद हो जाती है। क्यों.. क्योंकि इस सड़क के रास्ते में एक मिशनरी स्कूल बना हुआ है, स्कूल को हटाने में हाई कोर्ट का स्टे आर्डर बाधा बन रहा था स्टे हट गया है, स्कूल प्रशासन सहमति दे चुका है स्कूल को तोड़कर सड़क बनाने की, लेकिन सड़क नहीं बन रही। आगे दो किलोमीटर जाकर इस सड़क को बाईपास से जोड़ना है, लेकिन 15 साल हो गए यह पूरी सड़क बन नहीं पाई।

दूसरा उदाहरण एम्स रोड का...

एम्स रोड आरआरएल तिराहे से शुरू होती है लेकिन 3 किलोमीटर आगे रोड अचानक डाइवर्ट हो जाती है, और फिर रुक जाती है। ये बरखेड़ा पठानी पर रुक जाती है। सदियों से नागरिक इस रोड को पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं। 

हबीबगंज नाके से लेकर मिसरोद तक मैन रोड के हालात किसी से छिपे नहीं हैं।

सरकार ने कई बार ऐलान किया हबीबगंज मिसरोद रोड के समानांतर, रेलवे ट्रैक के दूसरी ओर, दानापानी-बावड़िया कला गांव से होती हुई एक समानांतर सड़क बनेगी।

कई बार इस सड़क का सीमांकन हुआ। इसके लिए राशि भी स्वीकृत हो गयी, लेकिन भू-माफियाओं के दबाव और सरकार की उदासीनता के चलते यह सड़क अभी तक नहीं बन सकी। इसके बनाए जाने से शहर की तस्वीर बदल सकती थी।

भोपाल शहर की साफ-सफाई की बात करते हैं। शहर में साफ सफाई के नाम पर क्या होता है? एक लाख घरों से डोर टू डोर कचरा कलेक्शन होता ही नहीं। 

शहर के घनी और तंग गलियों में रहने वाले लोग हों या शहर की कई नई कॉलोनिया यहां पर नगर निगम डोर टू डोर कचरा कलेक्शन नहीं करता। सूखा हो या गीला दोनों प्रकार का कचरा एक ही जगह लिया जाता है और साथ डंप किया जाता है।

नाले अतिक्रमण का शिकार हो जाते हैं..

कई-जगह नालों को डायवर्ट किया जा रहा है, लेकिन सरकार की इस पर नजर नहीं होती। ऐसे मामलों में सीएम हेल्पलाइन में की जाने वाली शिकायतों को बिना एड्रेस किया बंद कर दिया जाता है। लोग शिकायत करते हैं उनकी सहमति के बगैर ही शिकायत को जबरिया बंद कर दिया जाता है।

भोपाल की स्थिति "माले मुफ्त दिले बेरहम" जैसी हो गई है...

रसूखदार विधायकों, मंत्रियों के बावजूद भी इस शहर ने कभी भी सुनियोजित विकास की तस्वीर नहीं देखी। यही वजह है कि आज शहर 2005 के मास्टर प्लान के आधार पर ही चल रहा है। मास्टर प्लान में तय की गई कई सड़कों पर कॉलोनीयां कट चुकी हैं। 

सड़कों की हालत देखें तो सिर्फ वीआईपी सड़कें चमकदार होती हैं, ज़्यादातर कॉलोनियों की अंदरूनी सड़कों की हालत बेहद खस्ता है। चाहे बरखेड़ा पठानी जैसी घनी आबादी वाला गांव हो या फिर शहर की अन्य कॉलोनी। गौतम नगर रचना नगर हो या सुभाष नगर, अशोका गार्डन सड़कें दशकों से वैसी ही हैं थोड़ा बहुत सुधार होता है। दाना पानी से बावड़िया कला तक पहुंचने के लिए तो प्रॉपर रोड ही नहीं है।

बावड़िया कला के पास रेलवे ने एक अंडर ब्रिज बनाया है जो नाले में तब्दील हो गया है।

कई जगह सड़कें टूट कर बिखर चुकी है। ये सिर्फ बानगियां हैं।

राजधानी परियोजना प्रशासन, नगर निगम, पीडब्ल्यूडी हो या BDA, सबका एक मकसद रहा है अपना फायदा देखना।

शहर के विकास में यह एजेंसी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले सकती थी लेकिन राजनीतिक लाभहानी, सुनियोजित योजना का अभाव और कमजोर इच्छाशक्ति ने इन एजेंसियों को शहर के विकास का वाहक बनाने की बजाय इन्हें "नाहक" बना दिया।