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भारत का उचित औैर तार्किक कदम

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 13 Aug

सार

बेशक टैरिफ के इस मजाक के कारण भारत के निर्यातकों को नुकसान हो सकता है, उनके लिए भी सरकार पैकेज देने और नये देशों के रास्ते तलाशने का काम कर रही है, दरअसल अमरीका मक्का, सोयाबीन, सेब, बादाम और इथेनॉल जैसे उत्पादों पर शुल्क कम करने के साथ-साथ अपने डेयरी उत्पादों को भारतीय बाजार में बेचने की मांग कर रहा है, लेकिन भारत ने लगातार इंकार किया है, क्योंकि इनका सीधा असर किसानों पर पड़ेगा..!!

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विस्तार

और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा है कि भारत अपने किसानों, डेयरीवालों, पशुपालकों और मछुआरों के हितों से कभी भी समझौता नहीं करेगा। टैरिफ वॉर के दौरान प्रधानमंत्री का अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प को यह स्पष्ट संदेश है। 

बेशक टैरिफ के इस मजाक के कारण भारत के निर्यातकों को नुकसान हो सकता है। उनके लिए भी सरकार पैकेज देने और नये देशों के रास्ते तलाशने का काम कर रही है। दरअसल अमरीका मक्का, सोयाबीन, सेब, बादाम और इथेनॉल जैसे उत्पादों पर शुल्क कम करने के साथ-साथ अपने डेयरी उत्पादों को भारतीय बाजार में बेचने की मांग कर रहा है, लेकिन भारत ने लगातार इंकार किया है, क्योंकि इनका सीधा असर किसानों पर पड़ेगा। प्रधानमंत्री मोदी इस कड़े रुख के लिए व्यक्तिगत रूप से भी भारी कीमत चुकाने को तैयार हैं। वह ‘कीमत’ क्या हो सकती है? क्या वह अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं? जो नया प्रधानमंत्री आएगा, क्या वह इन अमरीकी मांगों पर समझौता कर सकता है?

 भारत ने उचित औैर तार्किक कदम उठाया है कि अमरीका के लिए कृषि, डेयरी, मछली आदि उद्योगों के बाजार नहीं खोले। भारत लगातार इंकार करता रहा है। यही बुनियादी कारण है कि दोनों देशों के बीच व्यापार-समझौते की बात भी रुक गई है। अमरीका से जिस वार्ताकार टीम का 25अगस्त को भारत आना तय था, अब वह भी नहीं आएगी। भारत की 42 प्रतिशत आबादी खेती पर आश्रित है और 46 प्रतिशत कामगारों को रोजगार हासिल है। कुछ अंचल ऐसे हैं, जहां यह औसत 60  प्रतिशत से अधिक है। हालांकि जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान 20 प्रतिशत से भी कम है। भारत में ज्यादातर किसान छोटे और गरीब हैं। नाबार्ड की हालिया रपट बताती है कि खेतिहार परिवार की औसत आय 13,661 रुपए प्रति माह है। खेती से असल आय 4476 रुपए है। शेष आय मजदूरी जैसे अन्य कामों से ही नसीब हो पाती है।

अमरीका की अत्यधिक और उच्च स्तर की मशीनीकृत खेती के सामने हमारे छोटे, गरीब किसान कहां ठहर सकते हैं। मोदी सरकार की यही सोच और दृष्टि रही है और हमारे वाणिज्य-उद्योग मंत्रालयों के वार्ताकार साफ इंकार करते रहे हैं कि कृषि को अमरीका के लिए बिलकुल भी नहीं खोला जा सकता। प्रधानमंत्री मोदी ने भी बार-बार कहा है कि हमारे लिए हमारे किसानों का कल्याण ही ‘सुप्रीम’ है। हम इस मुद्दे पर सहमत नहीं हो सकते। दरअसल यह ऐसा समय है, जब भारत में किसानों का कल्याण ‘संरक्षणवाद’ के परे भी होना चाहिए।

सवाल उठाए जा सकतेे हैं कि प्रधानमंत्री किसानों की आय दोगुनी नहीं कर सके। अधिकतर किसान कर्जदार हैं। यह बेहद संवेदनशील और गंभीर सवाल है कि भारत सरकार और कई राज्य सरकारों ने किसानों के कर्ज माफ करने की घोषणाएं की हैं। यदि कर्ज माफ किए जाते रहे हैं, तो किसान कर्जदार क्यों है? बेशक अमरीका के साथ हमारा व्यापारिक मुद्दा है, लिहाजा उनका पक्ष मजबूती से लिया जाना चाहिए। अमरीका की मात्र 2 प्रतिशत आबादी ही खेतिहर है। जर्मनी, ब्रिटेन में मात्र 1 प्रतिशत और जापान में मात्र 3 प्रतिशत आबादी ही कृषि के भरोसे है। 1991 में चीन की 60 प्रतिशत और भारत की 63 प्रतिशत आबादी कृषि पर आश्रित थी, लेकिन चीन इसे नीचे ले आया और अब 22 प्रतिशत आबादी खेतिहर है, लेकिन भारत अब भी अफगानिस्तान (45 प्रतिशत)  उत्तरी कोरिया (47 प्रतिशत ) और म्यांमार (45 प्रतिशत) की जमात में शामिल है।

भारत में खेती करना अब गरिमा का पेशा कम होता जा रहा है, खेती से ही गुजऱ-बसर होना कठिन है। चूंकि जनसंख्या बढ़ती जा रही है, लिहाजा प्रति व्यक्ति खंडित ज़मीन ही हिस्से में आती है। 1971 में खेत का साइज औसतन 2.28 हेक्टेयर होता था, लेकिन 2021 तक वह घटकर 0.74 हेक्टेयर हो गया है। फिर भी भारत के हिस्से के कारोबार और हितों को बचाना जरूरी है। फिलहाल भारत सरकार उसी पर अडिग है।