कांग्रेस के लिए जीत का बम मानकर राहुल गांधी को पॉलिटिक्स में उतारा गया था. यह बम तो फुस्सी निकला. कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाना तो दूर खुद ही अपनी पारिवारिक सीट अमेठी से चुनाव हार गए..!!
केंद्र की सत्ता से कांग्रेस दूर होती गई. कई बड़े राज्यों यूपी, बिहार, बंगाल, तमिलनाडु में कांग्रेस कई दशकों से सत्ता तो दूर, विपक्ष के नेता का पद भी नहीं पा सकी. अब राहुल गांधी वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के नाम पर सबूत के एटम बम का प्रोमो और करटेन रेजर रिलीज कर रहे हैं. इलेक्शन कमीशन को धमका रहे हैं.
अभी सबूत के उनके एटम बम की फिल्म रिलीज नहीं हुई है. उसके पहले ही ऐसे-ऐसे गैर जिम्मेदाराना विस्फोट किये जा रहे हैं, कि संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग को भी राहुल गांधी के आरोपों के नकलीपन को नकारना पड़ा है.
आयोग का कहना है राहुल गांधी पहले भी आयोग पर आरोप लगाते रहे हैं. अब तो धमकाने की भाषा बोलने लगे हैं. जब भी उन्होंने आरोप लगाया तो उन्हें आयोग द्वारा पत्र लिखा गया. सबूत देने के लिए कहा गया. आयोग से मिलने के लिए आमंत्रित किया गया. राहुल गांधी अब तक एक बार भी ना तो आयोग के सामने कुछ सबूत दे सके हैं और ना ही एक भी पत्र का जवाब दिया है. आयोग पर उनके पूरे आक्षेप निष्पक्ष चुनाव प्रणाली के मनोबल को गिराने का प्रयास कहा जा सकता है. चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को गैर-जिम्मेदाराना बताया है.
राहुल गांधी अकेले ऐसे नेता हैं, जिनको मानहानि के मामले में अदालत के फ़ैसले के बाद लोकसभा सदस्यता गंवानी पड़ी. उच्च अदालत के हस्तक्षेप के बाद ही वह बहाल हो सकी. चुनाव प्रणाली में आयोग की भी न्यायिक भूमिका है. जनप्रतिनिधि कानून के अंतर्गत लाभ के पद या नियमों को तोड़ने के कानूनी मामलों की सुनवाई आयोग करता है. यह अलग बात है कि आयोग के पास अवमानना का अधिकार नहीं है, लेकिन आयोग के पास यह संवैधानिक शक्ति है, कि किसी भी व्यक्ति को जो लोकतंत्र के साथ चुनाव प्रणाली और संवैधानिक संस्था के साथ गैर जिम्मेदार व्यवहार कर रहा है, उसको चुनाव लड़ने से रोका जा सके.
राहुल गांधी एक विरासत के प्रतीक हैं. देश किसी भी विरासत को राजनीतिक आलोचना करने तो नहीं रोक सकता, लेकिन जब उसका व्यवहार देश और संविधान के साथ गैर- जिम्मेदार होने लगे तो फिर इसे रोका जाना चाहिए.
ऐसा बताया जा रहा है कि कर्नाटक में किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी वोट चोरी की अपनी फिल्म जारी करेंगे. इसके नायक वह स्वयं होंगे. उन्होंने कर्नाटक की अपनी सरकार के प्रयासों से सबूतों की यह फिल्म बनवाई है.
अभी कोई सबूत नहीं दिया, इसके बावजूद कह रहे हैं, कि रिटायर हो जाने के बाद भी चुनाव आयोग के संबंधित लोगों को छोड़ा नहीं जाएगा. इस तरह की भाषा क्या लोकतंत्र में मंजूर की जा सकती है. संविधान लहराते-लहराते संविधान की इज्जत करना, अगर राहुल गांधी सीख जाते तो वह किसी गड़बड़ी को वोट चोरी नहीं कहते.
बिहार में एसआईआर के नाम पर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जो राजनीतिक आतंक पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, वह सब इसी से एक्सपोज़ हो गया है, कि ड्राफ्ट वोटर लिस्ट आने के बाद तेजस्वी यादव ने बिना प्रमाण के कह दिया कि उन्हीं का नाम वोटर लिस्ट में नहीं है. इलेक्शन कमीशन ने तुरंत प्रमाण के साथ यह बता दिया कि उनका नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में है. झूठ की राजनीति निष्पक्ष चुनाव प्रणाली में झूठी बीमारी पैदा करने की साजिश कर रही है.
राहुल गांधी ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा में लोकसभा में इसे सरकार की पीआर एक्सरसाइज बता रहे हैं. उनकी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का कमिटमेंट देखिए कि जिस ऑपरेशन में पाकिस्तान में घुसकर भारतीय सेना में आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया उसको पीएम की पीआर एक्सरसाइज कहने का दुस्साहस किया जा रहा है.
मानसिक रूप से संतुलित कोई भी राजनेता ऐसी बात नहीं कर सकता. कांग्रेस की इसी तरह के दृष्टिकोण से प्रेरित सांसद प्रणीति शिंदे ने सदन में ऑपरेशन सिंदूर को तमाशा बता दिया. हताशा और निराशा कांग्रेस में छिछोरेपन तक पहुंच गई है.
राहुल गांधी के राष्ट्र विरोधी बयानों और दृष्टिकोण को कांग्रेस के भीतर ही समर्थन नहीं किया जाता. विदेशी ऐसे मामले जो भारत के खिलाफ़ होते हैं, वह राहुल गांधी की खुशी का कारण बनते हैं. अगर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भारत पर टेरिफ लगाते हुए देश की अर्थव्यवस्था को डेड बोलने का दुस्साहस करते हैं, तो उन्हीं की भाषा राहुल गांधी बोलने लगते हैं. अगर मान लीजिए कि कोई विदेशी हमारे देश के खिलाफ़ आपत्तिजनक बात करेगा तो उसका विरोध करने की बजाय राहुल गांधी उसका ही समर्थन करने लगेंगे. तो क्या इसे उनकी देश विरोधी विचारधारा नहीं माना जाएगा.
राहुल गांधी राजनीतिक रूप से लगातार एक्सपोज़ हो रहे हैं. अब तो हालात यहां तक बन गए हैं, कि वह जिसको एक्सपोज करते हैं, उसका देश में सम्मान बढ़ जाता है. राजनीतिक विरोधियों को वह एक्सपोज़ करते तब तो ठीक माना जा सकता था, लेकिन अब तो वह संवैधानिक संस्था को ही एक्सपोज़ करने का दावा कर रहे हैं.
राहुल गांधी शायद चोरी का मतलब नहीं समझते. चोरी का सामान्य अर्थ छिपाकर किसी की संपत्ति को हड़पना माना जाता है. वोटर लिस्ट छुपी नहीं बल्कि सार्वजनिक संपत्ति है. अगर उसमें कोई गड़बड़ी है, उसे ही वह चोरी कह रहे हैं, तो इसके लिए भी उनकी कामचोरी ही जिम्मेदार कही जाएगी.
राजनीतिक दल अगर कामचोर नहीं होते, जमीन पर काम करते तो वोटर लिस्ट में कोई भी गड़बड़ी नहीं हो सकती. वोटर लिस्ट का पहला ड्राफ्ट आता है. फिर आपत्तियों का निराकरण होता है. फिर फाइनल लिस्ट आती है. जब यह प्रक्रिया होती है, तब राहुल गांधी जैसे नेता और उनकी पार्टी सोती रहती है. जब चुनाव हार जाते हैं तो फिर चुनाव आयोग को दोषी ठहरने में लग जाते हैं.
जो राजनेता जनादेश के मन की चोरी करने में सतत असफल होता है, वही वोट चोरी की बात कर लोकतंत्र और संविधान पर एटम बम विस्फोट की साजिश करता है. भारत जब पाकिस्तान के एटम बम की परवाह नहीं कर रहा है, तो राहुल गांधी के एटम बम की धमकी की देश कहां परवाह करेगा. राहुल गांधी और कांग्रेस की हार निष्पक्ष चुनाव प्रणाली की हार नहीं कहीं जा सकती.