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अमेरिका के असुरक्षाबोध

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 04 Aug

सार

ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाक टकराव को खत्म करवाने के जिस तरह वे शेख चिल्ली दावे करते रहते हैं, वह उनका एक अपरिपक्व व अनुभवहीन राजनेता होना ही दर्शाते हैं..!!

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विस्तार

अब कोई शक नहीं है कि अमेरिकी राष्ट्रपति भारतीय मेधा व भारत की तरक्की को अपने लिये खतरे के रूप में देख रहे हैं। दूसरे कार्यकाल में आये दिन भारत के खिलाफ उनके बयान दरअसल अमेरिका के असुरक्षाबोध को ही दर्शाते हैं। 

ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाक टकराव को खत्म करवाने के जिस तरह वे शेख चिल्ली दावे करते रहते हैं, वह उनका एक अपरिपक्व व अनुभवहीन राजनेता होना ही दर्शाते हैं। 

‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ के उनके थोथे दावों के बीच उन्होंने भारतीय आईटी प्रतिभाओं को दरकिनार करने की बात कही है। उनके तंग नजरिये से साफ हो गया है कि वे भारतीय प्रतिभाओं के उफान को अपने लिये एक चुनौती के रूप में देख रहे हैं। यह साफ है कि उनका लगातार बढ़ता प्रवासी विरोध आखिरकार अमेरिका को ही नुकसान पहुंचाएगा। 

एक बात तो तय है कि भारत लगातार ट्रंप के निशाने पर है। वे लगातार कहते रहे हैं कि अमेरिकी कंपनियां केवल अमेरिकियों को ही नौकरी दें। यह भी कहते रहे हैं कि अमेरिकी टेक कंपनियों ने अपने फायदे के लिये चीन में फैक्ट्रियां लगाकर उसे समृद्ध किया। इन कंपनियों द्वारा भारतीयों को अवसर देना उन्हें रास नहीं आ रहा है। यही वजह है कि पिछले दिनों उन्होंने एप्पल को चेतावनी दी थी कि यदि उसने भारत में आईफोन का उत्पादन किया तो सजा के तौर पर उस पर पच्चीस फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा। 

यह विडंबना ही है कि जिस वैश्वीकरण व उदारीकरण के नाम पर अमेरिका ने अपार संपदा जुटाई, उससे दूसरे देशों को फायदा पहुंचना उसे नागवार गुजर रहा है। यह कैसे संभव है कि हर सामान का उत्पादन अमेरिका में ही हो, और उस कंपनी में सिर्फ अमेरिकी ही कर्मचारी हों। निस्संदेह, प्रतिभा और कार्यकुशलता किसी एक देश का कॉपी राइट नहीं हो सकता। मौजूदा दौर की वैश्विक अर्थव्यवस्था में मुक्त व्यापार के दौर में कोई देश अपनी अर्थव्यवस्था के दरवाजे दूसरों के लिये बंद करके समृद्ध नहीं हो सकता है।

खुली अर्थव्यवस्था में आज मल्टीनेशनल कंपनियां अपना मुनाफा देखती हैं। उन्हें जहां सस्ता श्रम व प्राकृतिक संसाधन सुलभ होते हैं, वहीं उत्पादन इकाई लगाती हैं। ट्रंप को यह नहीं भूलना चाहिए कि आईटी के क्षेत्र व सिलिकॉन वैली में यदि समृद्धि की बयार बह रही है, उसमें भारतीयों का बड़ा योगदान है। आज यदि अमेरिका की बड़ी आईटी कंपनियों में भारतीय शीर्ष पदों पर हैं तो अपनी प्रतिभा के बूते ही हैं। 

एक शोध में खुलासा हुआ है कि सिलिकॉन वैली के करीब एक तिहाई टेक कर्मी भारतीय मूल के हैं। अपनी योग्यता के बूते दर्जनों टेक कंपनियों में भारतीय आईटी विशेषज्ञ ऊंचे ओहदों पर विराजमान हैं। निश्चित रूप से भारतीय टेक विशेषज्ञ अमेरिका आर्थिकी को गति देने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। ऐसे में ट्रंप की यह चेतावनी कि महत्वपूर्ण आईटी कंपनियां व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भारतीयों को महत्व न दें, उनकी संकुचित व प्रतिगामी सोच का ही पर्याय है। 

अब यदि कड़ी मेहनत और प्रतिभा के बूते भारतीय अमेरिका में दूसरे नंबर के समृद्ध प्रवासी हैं, तो उसके मूल में उनकी कड़ी मेहनत और प्रतिभा है। जिसका कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता। यह रोचक तथ्य है कि अमेरिकी आबादी का डेढ़ प्रतिशत होने के बावजूद भारतीय प्रवासी छह फीसदी आयकर देते हैं। जो उनके अमेरिकी अर्थव्यवस्था में योगदान को ही दर्शाता है। ट्रंप को आत्म-मंथन करना चाहिए कि यदि सिलिकॉन वैली व टेक उद्योग दुनिया में वर्चस्व बनाये हुए हैं तो उसके मूल में भारतीय मेधा की तपस्या व त्याग निहित है। 

अमेरिका का खजाना भर रहे कई सॉफ्टवेयर तैयार करने में तमाम भारतीय इंजीनियरों का योगदान रहा है। ट्रंप को समय रहते समझ लेना चाहिए कि कथित रूप से अमेरिका को फिर से महान बनाने का नारा भारतीय प्रतिभाओं के योगदान के बिना सिर्फ जुमला बनकर रह जाएगा। अमेरिका के पास गोरे लोगों की वह श्रम शक्ति नहीं है जो उसे दुनिया पर राज करने का मौका दिला सके। इस बात को ट्रंप जितनी जल्दी समझ जाएं, वो अमेरिका के हित में ही होगा।