पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से भारत की अंतहीन लड़ाई निर्णायक मोड़ पर खड़ी है. एक तरफ भारत इस्लामिक राष्ट्र प्रेरित आतंकवाद से जूझ रहा है तो दूसरी तरफ इसे भगवा आतंकवाद से जोड़ने की साजिशें रची जा रही हैं..!
मालेगांव ब्लास्ट के ऐतिहासिक मामले में अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है. फैसले में उस साजिश का भी पर्दाफाश किया है, जिसमें भगवा आतंकवाद की थ्योरी गढ़ी गई थी.
अदालत के फैसले के साथ ही कांग्रेस और बीजेपी की आतंकवाद थ्योरी पर लड़ाई चालू हो गई. मालेगांव ब्लास्ट के समय भगवा आतंकवाद का नाम कांग्रेस की सरकार द्वारा दिया गया था. जिन आरोपियों को साजिश के तहत पकड़ा गया, वह सभी हिंदू थे. उनको प्रताड़ित किया गया. सभी आरोपी सत्रह सालों से मानसिक पीड़ा से गुजर रहे थे.
ऐसा नहीं कि हिंदू आतंकवाद कांग्रेस की सरकार के समय ही चलाया गया था. उसी थ्योरी पर कांग्रेस आज तक कायम है. राहुल गांधी अमेरिका में वहां के विदेश मंत्री के साथ चर्चा के दौरान इसी बात को दोहरा रहे थे कि, भारत में भगवा आतंकवाद, लश्करे तैय्यबा से भी ज्यादा खतरनाक है.
सिद्धांत रूप में इसमें कोई विवाद नहीं होना चाहिए कि, किसी धर्म को आतंकवाद से जोड़ा जाए. इस्लामिक आतंकवाद भारत के अंदरुनी हालातों के कारण स्थापित नहीं होता बल्कि पाकिस्तान और दूसरे इस्लामिक देशों में बड़े-बड़े आतंकवादी संगठन इस्लाम के नाम पर आतंकवाद में लिप्त हैं. इसीलिए आतंकवाद इस नाम से जुड़ जाता है.
पहलगाम में धर्म पूछ कर हिंदुओं की क्रूरतापूर्ण हत्या और भारत का ऑपरेशन सिंदूर में वीरतापूर्ण जवाब भी आतंकवाद के हिंदू-मुस्लिम विचार में ही फंस गया है. भारत में भगवा आतंकवाद की बात करके कांग्रेस अपना राजनीतिक फायदा तो नहीं कर सकती, लेकिन इस राजनीतिक एक गलती के कारण बीजेपी को हिंदुत्व के एकीकरण का लाभ जरूर मिलता दिखाई दे रहा है. ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में चर्चा में भी इसी तरह के ही नजारे दिखाई पड़े थे.
राज्य सभा में तो अमित शाह ने जम्मू कश्मीर में प्रतिबंधित संगठनों की विस्तृत सूची का ब्यौरा दिया. उसमें सभी संगठन इस्लामिक विचार पर ही काम कर रहे थे. मालेगांव पर फैसले के बाद अमित शाह का सदन में दिया गया वह वक्तव्य अचानक चर्चा में आ गया है कि, हिंदू कभी टेररिस्ट नहीं हो सकता. हिंदू आतंकवाद कांग्रेस नेताओं और उनकी सरकार के साजिश के तहत आरोप लगाये गए लेकिन यह अदालत में नहीं टिक सके. राजनीति की लड़ाई जिन दो धाराओं में बंटी हुई है, उसमें विभाजन बढ़ता ही जा रहा है.
विशेष अदालत के फैसले पर आरोपी बरी हुए हैं. पीड़ित अपने को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं. पीड़ितो द्वारा उच्च अदालतों में अपील भी की जाएगी. मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले में इससे उलट नीचे की अदालत द्वारा आरोपियों को फांसी और अजीवन कारावास दिया गया था लेकिन उच्च न्यायालय ने सभी को बेगुनाह माना.
सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर स्टे कर दिया है लेकिन आरोपियों को जेल से रिहा करने पर रोक नहीं लगाई. जो राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति करते हैं, वह अब यही कह रहे हैं कि जब महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार ट्रेन ब्लास्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट जा सकती है, तो मालेगांव ब्लास्ट मामले में भी उसे सुप्रीम कोर्ट जाकर इस फैसले पर रोक लगाना चाहिए.
आतंकवादी घटनाओं पर जांच एजेंसियों द्वारा जो तथ्य और सबूत इकट्ठे किए जाते हैं, वह बाद में अदालतों में टिक नहीं पाते. इस पर एजेंसियों पर भी बड़े सवाल खड़े होते हैं. ब्लास्ट तो हुए हैं, लोग मारे गए हैं फिर जब आरोपी छूट जाते हैं तो जांच एजेंसी को यह बताना पड़ेगा कि, घटना के लिए वास्तविक रूप से कौन जिम्मेदार है.
अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए आरोपियों को साजिश के तहत अगर फंसाया जाता है तो यह, पूरे सरकारी तंत्र पर सबसे बड़ा विश्वसनीयता का सवाल है. यह कोई एक मामले में नहीं बल्कि अनेक मामलों में आरोपियों के बरी होने पर खड़े होते हैं.
धर्म पूछ कर हिंदुओं को पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा मारने के बाद तो अब आतंकवाद धर्म विशेष जोड़ा ही जाएगा. भारत के इस्लाम के अनुयाई पाक प्रायोजित आतंकवाद से बदनाम होते हैं, जबकि उनकी भूमिका सामान्यतः नहीं पाई जाती है.
आतंकवाद अपराध के रूप में भले ही समाज के लिए घातक है लेकिन राजनीति के लिए यह भी उपयोगी बना लिया जाता है. धर्मनिरपेक्षता भी इसी तरह का एक शब्द बन गया है, जो वोट बैंक का पर्याय है. तुष्टिकरण वोट बैंक की एक पक्षीय राजनीति ने ही कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया है.
सत्ता के दौरान कांग्रेस ने इसी अहंकार में हिंदू आतंकवाद के विचार की शुरुआत की. अभी भी राहुल गांधी और कांग्रेस इस तरह की बातें कर रहे हैं. राजनीति तो इस पर समाप्त नहीं होगी लेकिन आतंकवाद का अपराध देश से समाप्त होना जरूरी है. अपराध पर तो राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति होना चाहिए लेकिन सत्ता की ललक ऐसा नहीं करने देती.
इस्लामिक राष्ट्र पाक प्रायोजित आतंकवाद के कारण भारत ने बहुत नुकसान उठाया है. इस विदेशी इस्लामी आतंकवाद को राजनीतिक मुकाबले के लिए हिंदू आतंकवाद की धारणा निर्मित करना देश हित में नहीं हो सकती.
अमित शाह अगर दावे के साथ यह कह रहे हैं, कि हिंदू टेरेरिस्ट नहीं हो सकता तो यह भी अपराध पर नियंत्रण से ज्यादा राजनीतिक विचारधारा ही दिखाई पड़ती है.
झूठ बीमारी का जैसे झूठ ही इलाज हो सकता है, वैसे ही आतंकवाद का इलाज सिस्टम का मजबूत आतंक ही हो सकता है.
ऑपरेशन सिंदूर ने आतंकवाद के खिलाफ भारत ने न्यू नार्मल स्थापित किया है. इस्लामिक और भगवा आतंकवाद की राजनीति नहीं रुकेगी लेकिन भारत का विचार अब रुकने वाला नहीं है.