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वोट चोरी पर स्पष्टीकरण चाहिए

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 14 Aug

सार

चुनाव आयोग कन्नी नहीं काट सकता और न ही विपक्षी नेता के हलफनामे का इंतजार कर सकता, संविधान ने निष्पक्ष और तटस्थ निर्वाचन का दायित्व चुनाव आयोग को सौंपा है, लिहाजा सम्यक जवाबदेही भी उसी की है..!!

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विस्तार

देश में ‘वोट चोरी’ के गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं और उस मुद्दे पर करीब 300 सांसद सडक़ पर हैं, तो यह कोई सामान्य परिस्थिति नहीं है। चुनाव आयोग कन्नी नहीं काट सकता और न ही विपक्षी नेता के हलफनामे का इंतजार कर सकता। संविधान ने निष्पक्ष और तटस्थ निर्वाचन का दायित्व चुनाव आयोग को सौंपा है, लिहाजा सम्यक जवाबदेही भी उसी की है। 

आयोग को ‘वोट चोरी’ पर खुद स्पष्टीकरण देना चाहिए। औसत नागरिक न्यायपालिका, संसद और चुनाव आयोग के प्रति श्रद्धा और सम्मान के भाव रखता है। वे भाव खंडित नहीं होने चाहिए। हालांकि आयोग ने शनिवार को सर्वोच्च अदालत में हलफनामा देकर आश्वस्त किया है कि जो 65 लाख सवालिया मतदाता बिहार की मतदाता-सूची से बाहर किए गए हैं, उनके पक्ष सुने जा सकते हैं। अभी तक सूची में दर्ज योग्य और पात्र मतदाताओं के नाम हटाए जाएंगे, तो उन्हें बाकायदा नोटिस जारी किए जाएंगे, उनके स्पष्टीकरण सुने जाएंगे, तब आयोग निर्णय लेगा कि वे पात्र मतदाता हैं अथवा नहीं। बिहार के संदर्भ में यह प्रक्रिया एक सितंबर तक जारी रहेगी।

सर्वोच्च अदालत में मंगलवार और बुधवार को इस मामले पर सुनवाई तय की गई थी। उसके बाद ही कोई फैसला सामने आएगा, लेकिन चुनाव आयोग की फजीहत नहीं होनी चाहिए। जिस तरह के विशेषण, रूपक और उपमाएं आयोग के लिए मीडिया में इस्तेमाल की जा रही हैं, वे अशोभनीय और अमर्यादित हैं। यह अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है। चुनाव आयोग पर ‘भाजपाई’ होने के जो आरोप चस्पां किए जा रहे हैं, आयोग उन पर न तो खामोश रहे और न ही आरोपों का खंडन करे।

उसे आरोपित मामलों में कार्रवाई करनी चाहिए और देश के सामने सार्वजनिक करना चाहिए कि ‘वोट चोरी’ के आरोप कितने तथ्यात्मक हैं और कितने पूर्वाग्रही हैं? विपक्ष ने आरोप लगाए हैं कि एक ही पते पर 80,100 या उससे अधिक मतदाता बनाए गए हैं। ऐसी खबरें देश के कई राज्यों से आ रही हैं। आयोग को स्पष्टीकरण देना चाहिए, लेकिन इसकी सामाजिक और कामकाजी पृष्ठभूमि भी जाननी चाहिए। वैसे हम बता दें कि देश में 45 करोड़ से अधिक लोग प्रवासी हैं। उन्हें पुराने घर का पता छोड़ कर नए ठिकाने का पता जोडऩा पड़ता है।

यह प्रक्रिया असंगठित क्षेत्र के कामगारों और मजदूरों के लिए बहुत कठिन है। मतदाताओं के नाम कटने और जोडऩे की गतिविधियां और समीक्षाएं होती रही हैं। भारत में 95 करोड़ से अधिक पंजीकृत मतदाता हैं। महानगरों में 30 लाख से अधिक लोग ऐसे हैं, जिनके पास एक निश्चित पता नहीं है। वोटर आई कार्ड पाने के लिए वे उस व्यक्ति पर निर्भर रहते हैं, जो उन्हें ‘घर का पता’ इस्तेमाल करने की अनुमति देता है। देश में निर्माण-स्थल पर काम करने वाले करीब 1 करोड़ मजदूर उसी स्थल पर रहते हैं अथवा आसपास रहते हैं या ठेकेदार के किसी पते पर रहने को विवश हैं। क्या उन्हें मताधिकार प्राप्त नहीं है? ऐसे लोगों का स्थायी या पुश्तैनी पता कैसे हो सकता है? हमारा दावा यह नहीं है कि एक ही पते पर कई मतदाताओं के कार्ड बनाने की प्रक्रिया में धांधलेबाजी नहीं है।

राजनीतिक दल अपना वोट बैंक पुख्ता करने के लिए ऐसा करते रहे हैं, लेकिन समग्रता में यह मामला बेहद संवेदनशील है। चुनाव आयोग को भी समझना चाहिए। हमारा मानना है कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। फर्जी वोट या मतदान के दिन बूथ छापने या लूटने की घटनाएं होती रही हैं। बहरहाल अब मतदान ईवीएम से होता है। कई विपक्षी दलों को उस पर भी आपत्ति है। मौजूदा हालात में ‘वोट चोरी’ नहीं होनी चाहिए और इस पर जवाबदेही आयोग की है।

गौरतलब यह है कि जिनका मताधिकार छीन लिया जाएगा, उनके लिए लोकतंत्र के मायने ‘शून्य’ हैं। सदनों में उनके जन-प्रतिनिधि नहीं होंगे, तो यह कैसा लोकतंत्र होगा! मतदाता-सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण करना चुनाव आयोग का संवैधानिक अधिकार है। आयोग की छवि पर कोई कलंक न आए, लिहाजा चुनाव आयोग को जवाबदेही देनी है। पहले भी ऐसा होता रहा है, जब भाजपा विपक्ष में थी। तब सत्ता में होने के बावजूद कांग्रेस पराजित हुई है और विपक्षी गठबंधन जीते हैं। अब भी आयोग की छवि पर कलंक न आए, लिहाजा आयोग को जवाबदेही देनी है।