वैसे तो आरोप प्रत्यारोप की होड़ में पूरी राजनीतिक बिरादरी ही जुटी रहती है और तात्कालिक फायदा उठाकर इन्हें भूल जाती है। बावजूद महाराष्ट्र में जैसा सुनने को मिल रहा है, वह बहुत ही दुखद है। मलिक और फडणवीस के आरोपों का सिलसिला बहुत गंभीर हैं और स्थापित प्रक्रिया के तहत सरकार को जांच व कार्रवाई के लिए आगे आना चाहिए।
राजनीति के मामले में आजकल महाराष्ट्र के नेताओं की जुबानें बहुत चर्चित हैं, सुर्खियां भी बटोर रही हैं। लेकिन यह आरोप आने वाले वक्त में कितने और कहां ठहर पाएंगे, इस पर कोई गंभीरता से शायद नहीं सोच रहा है। आरोपों की तोप लेकर सबसे पहले महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक सामने आये थे। करीब एक महीने से उनका धारावाहिक चल रहा है। हालांकि उनके आरोपों का यह असर जरूरी हुआ है कि चर्चित और विवादित क्रूज ड्रग्स केस के सूत्रधार व नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेडे बुरी तरह घिर गये हैं। उनसे कई मामलों की जांच सीधे तौर पर छीन ली गई है और उनकी भूमिका की जांच भी शुरू कर दी गई है।
मलिक ने वानखेडे के साथ ही अब सूबे के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस को भी निशाने पर ले रखा है। जवाब में फडणवीस भी पलटवार में मलिक को कटघरे में ले रहे हैं। मगर यह पूरा मामला भाषा का है, स्तर का है और राजनीतिक ओहदेदारों की जिम्मेदारी का भी है। हर सूचना या विचार या भाव समाज को सौंपने से पहले किसी भी राजनेता को यह जरूर सोचना चाहिए कि उसका कथन हमेशा के लिए दर्ज हो जाएगा। राजनेता जो बोलते हैं, उससे ही राजनीति का स्तर तय होता है। राजनीति में विचार और व्यवहार, दोनों ही शामिल हैं।
वैसे तो आरोप प्रत्यारोप की होड़ में पूरी राजनीतिक बिरादरी ही जुटी रहती है और तात्कालिक फायदा उठाकर इन्हें भूल जाती है। बावजूद महाराष्ट्र में जैसा सुनने को मिल रहा है, वह बहुत ही दुखद है। मलिक और फडणवीस के आरोपों का सिलसिला बहुत गंभीर हैं और स्थापित प्रक्रिया के तहत सरकार को जांच व कार्रवाई के लिए आगे आना चाहिए।
मलिक ने पहले दावा किया था कि वह हाइड्रोजन बम गिराएंगे, लेकिन उन्होंने जो आरोप लगाए हैं, उसे भाजपा ने फुलझड़ी करार दिया है। हालांकि, आरोप ऐसे नहीं हैं कि जिन्हें फुलझड़ी कहकर भुला दिया जाए। किसी नेता का नाम फर्जी मुद्रा, अंडरवर्ल्ड से जुड़कर सामने आए, तो चिंता वाजिब है। क्या ऐसे आरोपों को वाकई फुलझड़ी माना जाए। दूसरी ओर, नवाब मलिक की पार्टी की तो महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार चल रही है, उन्हें हाइड्रोजन बम जैसे जुमले
की जरूरत क्यों पड़ रही है, क्या वह सीधे अपनी सरकार से कार्रवाई के लिए भी कह सकते हैं। हाल में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने प्रसिद्ध लेखक जॉर्ज बर्नाड शॉ की पंक्तियों को ट्वीट किया है कि मैंने बहुत समय पहले सीखा था, कभी शूकर से लड़ाई मत करो। इससे आप गंदे हो जाओगे, लेकिन शूकर इसे पसंद करेंगे। यह भारतीय राजनीति के लिए एक दुखद उद्धरण है इसके पीछे की खीज व गुस्सा समझा जा सकता है। राजनीति लोकहित में होनी चाहिए, यह एक आदर्श विचार है लेकिन वास्तविकता में कहीं नजर नहीं आता। राजनीतिक अब स्वार्थ की है।
मलिक ने यह भी आरोप लगाया कि फडणवीस ने साल 2016 में हुई नोटबंदी के बाद राज्य में जाली नोटों के धंधे को संरक्षण दिया था। उन्होंने कहा कि यह सब फडणवीस ने समीर वानखेड़े की मदद से किया था। मतलब एक तीर से कई निशाने? हालांकि फडणवीस ने जो जवाबी हमला बोला है, उसमें भी गंभीर आरोप हैं। बेहतर यह हो कि इन मामलों पर शोर की बजाए एक ईमानदार जांच हो ।