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अंबेडकर जयंती के नाम पर “वोट बैंक का आईपीएल”, विचारधाराएं अलग लेकिन अंबेडकरवाद सबका सम्बल- सरयूसुत मिश्र 

सार

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की 14 अप्रैल को जयंती है. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर दुनिया के ऐसे नायक हैं जिनकी मृत्यु के बाद भारतीय राजनीति में उनका प्रतीकात्मक महत्व अभूतपूर्व रूप से बढ़ा है..!

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विस्तार

डॉक्टर अंबेडकर की जयंती और उनके दूसरे स्मरण दिवस पॉलीटिकल पार्टीज के लिए कंटेस्ट के अवसर बन जाते हैं| अंबेडकर के नाम पर आईपीएल इंडियन पोलिटिकल लीग शुरू हो जाता है| यह कितना आश्चर्यजनक है कि राजनीतिक दलों की विचारधाराएं अलग-अलग हैं| लेकिन अंबेडकर की लीगेसी को लेकर सभी दल एक दूसरे को पछाड़ने में लगे रहते हैं| डॉक्टर अंबेडकर जीवित थे तब उन्हें लेकर राजनीतिक दलों के विचारों में मतभिन्नता थी| लेकिन बाबा साहेब की की मृत्यु के बाद उन्हें लेकर कोई मतभिन्नता नहीं है| कोई राजनीतिक दल अंबेडकर जयंती पर अपना अंबेडकर प्रेम दिखाने से चूकने की हिम्मत नहीं कर सकता|

यह अलग बात है कि अंबेडकर के आदर्शों और सिद्धांतों को वास्तव में अमल में लाने के प्रति राजनीतिक दलों में गंभीरता दिखाई नहीं पड़ती| भौतिक रूप से अंबेडकर की मूर्तियों से चिपकने का दिखावा करने में कोई पीछे नहीं रहता| लेकिन अंबेडकर जिन आदर्शों के लिए जिए थे, उन्हें अपने दलों की सरकारों में लागू करने के प्रति विरोधाभास दिखाई पड़ता है|

भारतीय जनमानस में कमजोर तबकों विशेषकर दलितों और हाशिए पर  रह रहे समाजों में, अंबेडकर को समाज के महानायक के रूप में स्वीकार कर लिया गया, यह वर्ग चुनावी अंक गणित में जागरूक और अधिक एक्टिव हो गया है| इसी कारण विभिन्न पॉलिटिकल ग्रुप बाबा साहब की प्रतीकात्मक छवियों के साथ अपने को जोड़ने में सक्रिय और  उत्सुक हो गए हैं| डॉक्टर अंबेडकर के जन्म मृत्यु और धर्म परिवर्तन के ऐतिहासिक क्षण जनता के बीच राजनीतिक दलों को अपनी पहुंच बढ़ाने में मददगार होते हैं|

किसी भी समाज के आईकॉन से जुड़े सेलिब्रेशन उनके अनुयायियों के बीच बेहतर आउटरीच का माध्यम बनाए जाते हैं| ऐसा कोई साल नहीं होता जब अंबेडकर से जुड़े सेलिब्रेशन में सभी दल प्रतिद्वंदिता ना करते हों| मध्यप्रदेश में अंबेडकर की जन्मस्थली महू में है| अंबेडकर जयंती के दिन तो महू में जैसे राजनीतिक दलों का मेला लगता है| प्रशासन को घंटों के हिसाब से अलग-अलग राजनीतिक दलों के बीच समय का बंटवारा करना पड़ता है| ताकि वो दल अपनी अंबेडकर भक्ति के आयोजन कर सकें| अगर प्रशासन ऐसा ना करें तो विभिन्न दलों के बीच अंबेडकर की भक्ति को लेकर टकराव होने की संभावना बनी रहती है| इस साल भी शायद इसी तरह से अंबेडकर जयंती मनाई जाएगी|

राजनीतिक दलों नें 14 अप्रैल को आगामी अंबेडकर जयंती के लिए बड़े पैमाने पर आयोजनों की घोषणा की है| भाजपा ने उनके प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाने के लिए सामाजिक न्याय सप्ताह मनाने की योजना जाहिर की है| इस पूरे सप्ताह जनता के बीच राजनीतिक शक्ति और विकास के क्षेत्र में दलितों के सामाजिक कल्याण, सशक्तिकरण और हिस्सेदारी के अपने कामों को साझा किया जाएगा| भाजपा शासित राज्यों में दलितों की बस्तियों में जाकर अंबेडकर के आदर्शों के प्रति अपना कमिटमेंट दिखाया जाएगा|

कांग्रेस और वामपंथी भी अंबेडकर जयंती पर अंबेडकर के सिद्धांतों और दलित प्रेम प्रदर्शित करने में पीछे नहीं रहना चाहेंगे| कांग्रेस अपने शासनकाल में दलितों के सशक्तिकरण के लिए किए गए कार्यों को पेशकर अंबेडकर की यादों को ताजा करने की कोशिश करेगी| अभी हाल ही में पंजाब के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने दलित मुख्यमंत्री बना कर दलितों के प्रति अपना राजनीतिक कमिटमेंट बताया था| लेकिन राज्य के लोगों ने उन पर विश्वास नहीं किया और चुनाव में कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा| कांग्रेस के सामने एक और दिक्कत है कि उसने दलित कल्याण के लिए जिस दौर में काम किया था, उस दौर के लोग, अब या तो बहुत कम है या जो हैं उनकी सक्रियता कम हो गई है|

बहुजन समाज पार्टी तो अपने अभ्युदय को ही डॉ आंबेडकर और कांशीराम की सोच बताती है| इस बार बीएसपी अंबेडकर से अपने जुड़ाव को दलितों के बीच स्थापित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है| बीएसपी अपने दल से दलितों के हो रहे विखंडन से खासी परेशान है, पार्टी उसे रोकने के लिए अंबेडकर जयंती के सेलिब्रेशन को प्रभावी अवसर मान रही है| अंबेडकर के नाम पर काम करने के लिए कई राजनीतिक समूह सक्रिय हैं|

रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया और उनके विभिन्न गुट, चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली आजाद समाज पार्टी पार्टी और कई छोटे दलित राजनीतिक समूह, अपने आप को  उनके शुद्ध अनुयाई के रूप में पेश करके अंबेडकर पर अपने दावे का प्रदर्शन करने से नहीं रुकेंगे| ऐसे राजनीतिक समूह यह दावा करते रहे हैं कि वे समाज में अंबेडकर के  विचारों को लागू करने के लिए ज्यादा इमानदारी से काम कर रहे हैं| सभी राजनीतिक दलों में दलित समुदाय के लोग सक्रिय रहते हैं और सभी दल अंबेडकर की लेगेसी पर अपना दावा बताते हैं| एक दूसरे को कमतर साबित करने की प्रक्रिया में ये दल दूसरे दल के दलित अनुयायियों का अपमान करने से भी पीछे नहीं हटते|

किसी भी सामाजिक या राजनीतिक नायक के प्रतीकात्मक अवसर पर  सेलिब्रेशन करना हमारा दायित्व बनता है| लेकिन इसका उपयोग कर वोट बैंक की राजनीति उस नायक के आदर्शों और सिद्धांतों को कमजोर करने जैसा है| डॉक्टर अंबेडकर अस्पृश्यता और जाति व्यवस्था के सख्त खिलाफ थे| आज इतने समय बाद भी क्या देश इन कुरीतियों से मुक्त हो पाया है? बल्कि आज जाति व्यवस्था अधिक ताकत के साथ राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हो गई है| शिक्षा स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय के लिए अंबेडकर ने जो काम किया था वह क्या आज पूरा हो पाया है? शायद नहीं, समानता का अवसर क्या लोगों को मिल रहा है? हिस्टोरिकल डिस्क्रिमिनेशन दूर करते-करते क्या रिवर्स डिस्क्रिमिनेशन तो नहीं होने लगा है|

हम कल्पना करें कि डॉक्टर अंबेडकर आज जीवित होते तो वर्तमान हालातों पर उनकी क्या प्रतिक्रिया होती है? अपनी विरासत को हथियाने के हथकंडे और प्रयासों के बारे में स्वर्ग से देखने वाले संविधान के निर्माता क्या सोचते होंगे? शायद सदैव प्रैक्टिकल और सच्चाई के करीब रहने वाले बाबा साहब अपने नाम पर राजनीतिक प्रपंच देख कर मुस्कुरा रहे होंगे|