28 अप्रैल 1740 सुप्रसिद्ध सेनानायक बाजीराव पेशवा का निधन खरगौन में मराठा साम्राज्य को विस्तार देने वाले सुप्रसिद्ध सेनानायक बाजीराव पेशवा का निधन 28 अप्रैल 1740 में हुआ..!
28 अप्रैल 1740 सुप्रसिद्ध सेनानायक बाजीराव पेशवा का निधन खरगौन में मराठा साम्राज्य को विस्तार देने वाले सुप्रसिद्ध सेनानायक बाजीराव पेशवा का निधन 28 अप्रैल 1740 में हुआ। वे अपने सैन्य अभियान के अंतर्गत मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में थे यहीं स्वास्थ्य बिगड़ा और उनका निधन हो गया। तब उनकी आयु मात्र चालीस वर्ष की थी। वे 1720 में पेशवाई संभाली और उनके बीस वर्ष का पूरा कार्यकाल केवल युद्ध में बीता। उन्होंने अपने जीवन में कुल 43 युद्ध कियै । वे सभी में विजयी रहे। यदि उनके मार्ग हुईं छोटी छोटी झड़प के युद्ध को भी जोड़ा जाये तो यह संख्या 54 होती है। उन्होंने प्रत्येक युद्ध जीता, वे किसी युद्ध में नहीं हारे।
श्रीमंत बाजीराव पेशवा का जन्म 18 अगस्त 1700 में हुआ था। उनके पिता बालाजी भी पेशवा थे। बाजीराव बचपन से गंभीर धैर्यवान और साहसी थे। उन्होंने बाल वय में ही घुड़सवारी, तीरन्दाजी, तलवार भाला, बनेठी, लाठी आदि चलाना सीख ली थी। वे मात्र बारह वर्ष की आयु से ही अपने पिता के साथ युद्ध में जाने लगे थे। सैनिकों का कौशल देखना और घायलों की सेवा करना उनके स्वभाव में था । वे पिता के साथ दरवार भी जाते थे। इससे दरबार की गरिमा और राजनीति में निपुण हो गये थे। अभी उन्होंने अपनी आयु के उन्नीस वर्ष ही पूरे किये और बीसवां वर्ष आरंभ ही हुआ था कि पिता का निधन हो गया। शाहूजी महाराज ने किशोर वय से बाजीराव की प्रतिभा देखी थी अतएव उन्होंने बाजीराव को इसी आयु में पेशवा कि दायित्व सौंप दिया।
यह वर्ष 1720 की घटना है जब बाजीराव जी पेशवा बने। एक प्रकार अल्प वयस्क होते हुए भी उन्होंने दायित्व संभाला और असाधारण योग्यता प्रदर्शित की। अपनी दूरदर्शिता, अद्भुत रण कौशल, सटीक निर्णय और अदम्य साहस से मराठा साम्राज्य का भारत भर मे विस्तार किया। वे श्रीमंत शिवाजी महाराज की भांति ही कुशल रणनीति कार और यौद्धा थे। वे घोड़े पर बैठे-बैठे और चलती हुई सेना के बीच भी रणनीति बना लेते थे। घोड़ा भले थके पर वे नहीं थकते थे। भागते हुये घोड़े पर बैठे उनके भाले की फेंक इतनी तीब्र होती थी कि शत्रु अपने घोड़े सहित घायल होकर धरती पर गिर पड़ता था।
श्रीमंत बाजीराव ने पेशवा दायित्व संभाला तब दक्षिण भारतमें मुगलों के साथ-साथ अंग्रेजों व पुर्तगालियों के अत्याचारों का बोलबाला था। भारतीय जनों और भारतीय गरिमा के प्रतीक देवस्थान तोड़ने और बलपूर्वक पंथ परिवर्तन की मानो स्पर्धा चल रही थी। महिला और बच्चों के शोषण की नयी नयी घटनायें घट रहीं थीं। ऐसे में श्रीमन्तबाजीराव ने पहले दक्षिण भारत में भारतीय जनों ढाढ़स दिया फिर उत्तर की ओर रुख किया। उनकी विजय वाहनी ने ऐसा वातावरण बनाया जिससे पूरे भारत में भारतीय भूमि पुत्रों का आत्मविश्वास जागा। श्रीमन्तबाजीराव पेशवा में शिवाजी महाराज जैसी ही वीरता व पराक्रम और चरित्र था।
उनके प्रमुख अभियानों में मुबारिज़ खाँ को पराजित कर मालवा और कर्नाटक में प्रभुत्त्व स्थापित किया । पालखेड़ के युद्ध में निजाम को पराजित कर उससे राजस्व और सरदेशमुखी वसूली । फिर मालवा और बुन्देलखण्ड में मुगल सेना नायकों पर विजय प्राप्त की फिर मुहम्मद खाँ बंगश को परास्त किया । दभोई में त्रिम्बकराव के आन्तरिक विरोध का दमन किया । सीदी, आंग्रिया तथा पुर्तगालियों एवं अंग्रेजो को भी बुरी तरह पराजित किया ।
अपने दिल्ली अभियान के अंतर्गत 1737 में भोपाल में निजाम, भोपाल नबाब और मुगलों को संयुक्त सेना को बुरी तरह पराजित किया । 1739 में उन्होनें नासिरजंग को हराया। अमेरिकी इतिहासकार बर्नार्ड माण्टोगोमेरी ने बाजीराव पेशवा भारत के इतिहास का सबसे महानतम सेनापति बताया है और पालखेड़ युद्ध में जिस तरीके से उन्होंने निजाम को पराजित किया वह केवल बाजीराव ही कर सकते थे । श्रीमंत बाजीराव और उनके भाई चिमाजी अप्पा ने बेसिन के लोगों को पुर्तगालियों के अत्याचार से भी बचाया। उन्होंने सेना में ऐसे युवा सरदारों की टोली तैयार की जिन्होंने आगे चलकर भारत की धरती पर नया इतिहास बनाया।
इनमें मल्हारराव होलकर, राणोजीराव शिन्दे शामिल थे जिन्होंने आगे चलकर इंदौर और ग्वालियर में हिन्दवी साम्राज्य की शाखा स्थापित की। अपने इसी अभियान के अंतर्गत वे महाराष्ट्र वापस लौट रहे थे कि मार्ग में उनका स्वास्थ्य बिगड़ा और 28 अप्रैल 1740 में मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में उन्होने दुनियाँ से बिदा ली। उन्होंने दो विवाह किये पहली पत्नी काशीबाई और दूसरी पत्नि मस्तानी थी। उनके बाद उनका पुत्र बालाजी बाजीराव ने भी आगे चलकर पेशवा का दायित्व संभाला।