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संविधान के भाल पर लटक गए बेताल

सार

जेल से सरकार चलाने का दंभ अगर लोकतंत्र है तो फिर इसे मर जाना ही बेहतर है. भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार होना और अदालती कार्रवाई के अंतर्गत बेल नहीं मिलना, फिर भी संविधान का पद नहीं छोड़ना, अगर लोकतंत्र है तो ? उसके जिंदा रहने से देश को क्या फायदा है? 

janmat

विस्तार

हर राजनीतिक दल की लोकतंत्र की अपनी अलग परिभाषा है. कानून के तहत कार्यवाई  होना अगर लोकतंत्र की हत्या है तो,  फिर यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था. कोई भी मृत्यु अंत नहीं है बल्कि यह नई शुरुआत का क्षण भी होता है. कई बार बुराइयां खून का हिस्सा बन जाती हैं. 

भारत हर साल रावण का दहन करता है लेकिन रावण की प्रवृत्तियां नष्ट नहीं हो पाई है. संविधान और लोकतंत्र के सहारे अगर कुछ परिवारों को लोकतंत्र का प्रतीक बन जाना है तो फिर ऐसे लोकतंत्र का मरना ही बेहतर है. जेल से सरकार चलाने की घटना लोकतंत्र की मृत्यु का संदेश है. ऐसी सरकार का सपना और सियासत की सोच खत्म होगी तो लोकतंत्र की नई कोंपलें अपने आप ही फूटेगी.

संविधान की सौगंध सभी खाते हैं. कानून की रक्षा का दावा सभी करते हैं लेकिन जब वही कानून खुद पर चल जाता है, तो फिर जेल से भी सरकार चलाने का दंभ दिखाते हैं. संविधान एक है लेकिन राजनीतिक दलों की व्याख्याएं अलग-अलग हैं. दिल्ली का शराब घोटाला वर्षों की जांच के बाद मुख्यमंत्री के गिरफ्तारी तक जा पहुंचा है. भारत के लोकतंत्र में वह दौर भी देखा है जब मंत्री के प्रभार में कोई बड़ी दुर्घटना होने पर भी पद छोड़ने की परंपरा रही है. जैन हवाला डायरी में भारत के बड़े-बड़े राजनेताओं के नाम उजागर हुए थे. राजनीति में नैतिकता के नाम पर उसमें शामिल सभी नेताओं ने अपने पदों से त्यागपत्र दे दिया था. बेगुनाह साबित होने के बाद फिर से सक्रिय राजनीति में कदम बढ़ाया था. 

हर आरोपी को अपराधी नहीं माना जा सकता है. लेकिन लोकतंत्र नैतिकता का तंत्र है. अगर नैतिकता का पक्ष इस व्यवस्था से हटा दिया जाए तो फिर तो यह एक गिरोह के रूप में लूट तंत्र का स्थान ले लेगा. यह कौन सी राजनीति है, कि राजनीतिक मुकाबले के लिए कट्टर  विरोधियों से भी हाथ मिला लिया जाए. इससे दुर्भाग्य जनक स्थिति क्या होगी कि, गंदगी में सराबोर राजनेता जनता को ईमानदारी का संदेश देते हैं. आम आदमी पार्टी शराब घोटाले में उसके नेताओं के गिरफ्तारी पर हाय तौबा कर रही है, तो कांग्रेस पार्टी ने उसके बैंक खाते फ्रीज करने के नाम पर सियासी तूफान खड़ा किया है. 

केजरीवाल सरकार को अपनी शराब नीति की वैधानिकता अदालतों में साबित करना होगा. ईडी की कस्टडी में राज्य सरकार को आदेश पारित करने की अवैधानिक गतिविधि में भी केजरीवाल घिरते हुए दिखाई पड़ रहे हैं. नियमानुसार कस्टडी के दौरान कोई भी व्यक्ति  सिग्नेचर नहीं कर सकता. फिर सवाल उठता है की आखिरकार केजरीवाल ने कैसे सिग्नेचर  किया.

यह विषय भी निश्चित रूप से उनके लिए एक नई मुसीबत खड़ी कर सकता है. आम आदमी पार्टी तो जिस तरह का राजनीतिक स्टैंड ले रही है, उससे प्रतीत होता है, कि भारतीय संविधान और लोकतंत्र में उनकी आस्था नहीं है? जब तक सत्ता में भागीदारी है, तभी तक संविधान का सम्मान है. जैसे ही विधि के हाथ खुद की गर्दन तक पहुंचने लगे, तो फिर लोकतंत्र की मृत्यु दिखाई पड़ने लगती है.

ऐसी ही स्थिति कांग्रेस की भी दिखाई पड़ रही है. आयकर विभाग द्वारा कांग्रेस पार्टी के बैंक खातों को लेकर जो भी कार्रवाई की गई है, वह नियमों के अंतर्गत ही होगी. कांग्रेस उसके खिलाफ ट्रिब्यूनल और उच्च न्यायालय भी जा चुकी है. वहां से उसे राहत नहीं मिली.  

अब कांग्रेस इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची है. आयकर के जिन नियमों के अंतर्गत कांग्रेस के खिलाफ कार्रवाई की गई है. यह नियम निश्चित रूप से कांग्रेस की सरकारों में ही बनाए गए होंगे. आयकर की गड़बड़ियां प्रकाश में आने के बाद दंड लगाने की प्रक्रिया बीजेपी सरकार में निर्धारित नहीं हुई है. यह पहले से ही निर्धारित प्रक्रिया है.

जब तक इन नियमों का कांग्रेस के खिलाफ उपयोग नहीं हुआ था, तब तक उन्हें नियमों में कोई गड़बड़ी दिखाई नहीं पड़ रही थी. देश के हजारों लोगों के खिलाफ इन नियमों का उपयोग किया जाता है. उस पर कांग्रेस को कोई आपत्ति नहीं है? बस कांग्रेस पर यह नियम लागू नहीं होना चाहिए. कांग्रेस को ऐसा लगता है कि वह तो इस देश में नियम बनाने वाली पार्टी है. भला खुद वह नियमों के अंतर्गत कैसे आ सकती है? 

भारत का लोकतंत्र आज ऐसे दौर में ही आ गया है. जब सब पर कानून एक समान लागू हो रहे हैं. जो राजनीतिक लोग कभी सोच भी नहीं सकते थे कि उनके खिलाफ करप्शन पर कोई कार्रवाई हो सकती है ऐसे नेताओं और यहां तक की मुख्यमंत्री पद के पद पर बैठे हुए लोगों के खिलाफ भी गिरफ्तारी तक की कार्रवाई लोकतंत्र की मृत्यु नहीं बल्कि लोकतंत्र के नए जन्म की कहानी कह रही है.

संविधान के भाल को लोकतंत्र की यह नई कहानी हिमालय की ऊंचाई दे रही है. करप्शन के सहारे लोकतंत्र की सीढ़ी चढ़कर खुद को संविधान और कानून से ऊपर मानने वाले राजनीतिक दलों का बुरा वक्त शुरू हो गया है. हर राजनीतिक बेताल, लोकतंत्र की अपनी अपनी परिभाषा कह रहा है. कोई कह रहा है कि लोकतंत्र मर रहा है कोई कह रहा है विपक्षी मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी लोकतंत्र की हत्या है. भारत का संविधान अपने काँधे पर राजनीतिक बेताल अब बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है. अब तो कानून के सामने सबको अपने कामों का हिसाब देना होगा. लोकतंत्र में सियासी शोर मचाकर अपराधों से नहीं बचा जा सकता. लोकतंत्र में यह ताकत रची बसी है, जो आखिरकार सत्य तक पहुंच ही जाती है.

अरविंद केजरीवाल शराब घोटाले से बड़ा घोटाला लोकतंत्र के साथ कर रहे हैं. जेल से सरकार चलाने की उनकी अलोकतांत्रिक सोच आम आदमी पार्टी को भारी नुकसान पहुंचाएगी. आम आदमी पार्टी को दिल्ली में दो तिहाई बहुमत हासिल है. किसी भी नेता को मुख्यमंत्री के रूप में चुना जा सकता है! पार्टी गैर विधायक को भी मुख्यमंत्री के कुर्सी पर बिठाकर चुनाव में जा सकती है! राजनीतिक दलों केअहंकार का हश्र  इस देश में किसने नहीं देखा है. भारत में लोकतंत्र निखरता ही जा रहा है. लोकतंत्र की मृत्यु की कामना करने वाले निराश ही होंगे.