अब यह ऑफीशियल हो चुका है, कि देश में जातिगत जनगणना होगी. इसके लिए ना ना करते हुए अप्रत्याशित रूप से मोदी सरकार ने फैसला कर लिया है. राष्ट्रीय जनगणना के साथ जातियों की भी जनगणना कराई जाएगी. जब पूरा देश पाकिस्तान से बदले पर टकटकी लगाए हुए है. तब उसे जातिगत जनगणना का सरप्राइज मिला..!!
विपक्षी दल खासकर राहुल गांधी हर चुनाव में जातिगत जनगणना का एजेंडा चला रहे थे. उन्हें चुनावी समर्थन तो नहीं मिला, लेकिन बीजेपी का आधार जरूर हिल गया. बीजेपी ने जातिगत जनगणना से कभी इंकार नहीं किया था, लेकिन इसे स्वीकार भी नहीं किया था.
जातिगत जनगणनाका नफा-नुकसान तो वक्त बताएगा, लेकिन बीजेपी ने राहुल गांधी और विपक्षी दलों से राजनीति का उनका यह मुद्दा भी छीन लिया है. एक तरफ लोग जातिगत जनगणना को राष्ट्र के हित में नहीं मानते, तो दूसरी तरफ राजनीतिक दल इसका क्रेडिट लेने के लिए बातों के गोले दाग रहे हैं.
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव जब कैबिनेट की राजनीतिक समिति के जातिगत जनगणना के फैसले की जानकारी दे रहे थे, तब उन्होंने मनमोहन सरकार के समय बनी कैबिनेट उप समिति और कराए गए सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण एवं आंकड़े नहीं जारी करने के तथ्य बताते हुए कांग्रेस को जाति जनगणना विरोधी बताया. उन्होंने निर्णय घोषित करने के पहले सामान्य निर्धन वर्गों के लिए मोदी सरकार द्वारा लागू किए गए आरक्षण का भी हवाला दिया. साथ में यह भी कहा कि इस निर्णय का सभी जातियों और समूहों ने समर्थन किया था.
सामान्य निर्धन वर्ग को आरक्षण देने कि फैसले का जातिगत जनगणना के निर्णय घोषित करने से सीधा कोई संबंध नहीं है, लेकिन फिर भी इसका उल्लेख किया गया. इसका जो स्पष्ट संदेश है, वह यही है जातिगत जनगणना और आरक्षण की व्यवस्था दो अलग अस्त्र हैं. दोनों अस्त्रों का उचित समय पर उचित उपयोग किया जाएगा.
जातिगत जनगणना के फैसले की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं, जो स्वाभाविक भी है. पहलगाम आतंकी हमले के बाद पूरा देश बदले के भाव से भरा हुआ है. आतंकवादियों को नेस्तनावूद करने के लिए सभी जाति और धर्म के लोग एक सुर में सरकार का साथ दे रहे हैं. राजनीतिक दल भी कमोवेश मोदी सरकार के समर्थन में खड़े हुए हैं. सरकार भी बदले के आक्रोश में दिख रही है. सेना को फ्री हैंड दिया गया है. तैयारी भी दिखती है. भारत के बदले की कार्रवाई से पाकिस्तान डरा हुआ है. ऐसी हालत में जातिगत जनगणना के सरप्राइज की किसी को उम्मीद नहीं थी. लोग जितना आतंकी हमले से चौंके थे, उतना ही इस फैसले से भी चौंक गए.
इस देशव्यापी राजनीतिक असरकारी फैसले के लिए इस टाइम को शायद सबसे मुफीद इसलिए माना गया, क्योंकि आज देश में हिंदू यूनिटी सेंटीमेंट हिमालय की ऊंचाई पर पहुंच गया है. इतना बड़ा आतंकवादी हमला हिंदुओं के जीवन और अस्तित्व से जुड़ गया. बंटेंगे तो कटेंगे, एक हैं तो सेफ हैं, यह नारे हिंदुओं को जीवन की हकीकत दिखने लगे. पीएम नरेंद्र मोदी ने सरकार में आने के बाद अब तक जितने भी परिवर्तनकारी फैसले किए, उसमें समय और गोपनीयता का सरप्राइज रहा है. यह फैसला ऐसे समय लिया गया है, जब हिंदू पूरी तरह यूनाइटेड हैं.
जातिगत जनगणना भी हिंदू एकता नहीं तोड़ सकती. हिंदुओं को पाकिस्तानी इस्लामी आतंकवाद से लड़ना पहली प्राथमिकता बन गई है. जाति पीछे चली गई है. जातिगत जनगणना की राजनीति कम से अब थम जाएगी. जातिगत जनगणना होने और उनके आंकड़े सामने आने में अभी समय लगेगा. यह जनगणना कैसे कराई जाएगी इस पर भी विधान बनेंगे 2011 में जो जातिगत, सामाजिक, आर्थिक सर्वेक्षण कराया गया था, उसमें 46 लाख जातियां सामने आई थीं. अब ऐसा बताया जा रहा है कि सरकार पहले ही जातियां चिन्हित कर लेगी. चिन्हांकित जातियों में ही देश के लोगों से जनगणना के आंकड़े लिए जाएंगे.
राहुल गांधी पूरी कांग्रेस और विपक्षी दल यही रट लगाए हुए हैं, कि जातिगत जनगणना उनका एजेंडा है. मोदी को उनके एजेंडे पर झुकना पड़ा. यह बात भी अगर विपक्षी दल मान लें तो कम से कम इतना क्रेडिट तो मोदी को दिया ही जा सकता है, कि उन्होंने विपक्षी दलों के एजेंडे को भी स्वीकारा है.
बीजेपी और संघ का एजेंडा सदैव हिंदुत्व का रहा है. बीजेपी कभी भी जातिवाद की राजनीति ओपनली नहीं करती थी. यह बात अलग है, कि पार्टी की राजनीति में जातियों के समीकरण को सबसे ज्यादा ध्यान रखा जाता था. ओबीसी पॉलिटिक्स पर आज भाजपा हावी है. जातिगत जनगणना का फैसला राष्ट्रहित में कितना होगा और बीजेपी की राजनीति को कितना सकारात्मक रूप देगा, इस पर सवाल हो सकते हैं, लेकिन यह निश्चित है, कि बीजेपी जो फैसला करती है, इसका क्रेडिट भी अच्छे से लेना जानती है. शुरू भले विपक्ष ने किया हो, लेकिन जातिगत जनगणना की राजनीति ख़त्म बीजेपी ही करेगी.
जातिगत जनगणना पिछड़े वर्गों की राजनीति से शुरू हुई है, लेकिन जब जनगणना होगी, तो इसमें सभी वर्ग शामिल होंगे. यहां तक कि हिंदू जातियों के साथ ही मुस्लिम जातियों की भी जनगणना होगी. जब इसके परिणाम सामने आएंगे तो कांग्रेस और विपक्षी दलों को यही आभास होगा कि अपनी राजनीतिक चालों में वह खुद ही घिर गए हैं. वक़्फ़ कानून के जरिए बीजेपी ने मुसलमानों में अमीर गरीब की खाई पैदा कर दी है, कई मुस्लिम जातियों को ओबीसी में आरक्षण मिलता है. अब जातिगत जनगणना में उन सारी मुस्लिम जातियों के ऑन रिकॉर्ड प्रमाणित आंकड़े आ जाएंगे.
अनुसूचित जाति और जनजाति की तो जनगणना हर राष्ट्रीय जनगणना में होती है. उनमें भीविभिन्न जातियों की पहचान की जाएगी. ओबीसी में पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियां और उनकी संख्या प्रमाणित आंकड़ों के साथ आएगी. फिलहाल विपक्ष की राजनीति में ओबीसी की यादव जाति का ही वर्चस्व है.
जातिगत जनगणना से यह वर्चस्व बिखरेगा. जिसका पहला नुकसान विपक्ष को ही होगा. आजादी के समय, से जातियों के जो वर्ग और समूह राजनीति में प्रभावी रहे हैं, वही आगे हैं. बाकी उन वर्गों की बहुत बड़ी आबादी नेगलेक्टेड है. इन्हीं नेगलेक्टेड वर्गों को भाजपा अपना टारगेट बनाएगी .
वंचित वर्गों का विकास सभी का लक्ष्य है. यही लक्ष्य तो नक्सलिज्म का भी बताया जाता है. कास्टिज्म भी एक तरह के नक्सलिज्म का ही रूप है. जातिगत जनगणना से दिलों में दरारें नहीं पड़ना चाहिए. कास्टिज्म नेशनलिज्म को प्रभावित नहीं करें. राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना की राजनीतिक डिमांड इतनी क्रिएट की है, कि अब डिमांड पूरा करने वाले की डिमांड कभी कम नहीं होगी.