मध्यप्रदेश के सिविलाइज्ड पॉलीटिकल फील्ड से लोक सेवकों को डराने धमकाने के लिए आए स्टेटमेंट्स सारी स्थिति समझने के लिए पर्याप्त हैं..!
सिविल सर्विस डे के अवसर पर आज पूरे देश में उत्कृष्ट कार्यों के लिए सिविल सेवकों को सम्मानित किया गया है. यह एक ऐसी सेवा है जो सुपर है और जिसका कोई विकल्प नहीं है. पॉलीटिकल एनवायरमेंट में सिविल सेवकों को प्रेरणा और मोहरा साबित किया जाता है. मध्यप्रदेश के सिविलाइज्ड पॉलीटिकल फील्ड से लोक सेवकों को डराने धमकाने के लिए आए स्टेटमेंट्स सारी स्थिति समझने के लिए पर्याप्त हैं.
अगले छह महीने बाद नई सरकार बनाने के लिए संघर्षशील दोनों मुख्य दलों के कर्ता-धर्ता कमोबेश एक जैसी बात ही कर रहे हैं. आज का विपक्ष कह रहा है कि 6 महीने बाद उनकी सरकार बनने पर वर्तमान सरकार के लिए समर्पित होकर काम करने वाले लोकसेवकों को सबक सिखाया जाएगा. यह भी दावा किया जा रहा है कि ऐसे सेवकों का पूरा हिसाब रखा जा रहा है. विपक्ष के इस वक्तव्य की निंदा करते हुए सरकार का बयान आता है कि लोक सेवकों को डराना धमकाना शोभा नहीं देता. वर्तमान विपक्ष सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल कर देता है जिसमें कमोबेश आज की विपक्ष की भाषा ही सुनाई पड़ रही है.
जिन लोकसेवकों पर नीचे से लेकर ऊपर तक की संपूर्ण ब्यूरोक्रेसी के प्रोटेक्शन और सरकारी नीतियों के इंप्लीमेंटेशन का पूरा दायित्व है उन पर पॉलिटिकल गेन के लिए समय-समय पर दबाव बनाना राजनीति की एक रणनीति सी हो गई है. सिविल सेवक भी इसके लिए अभ्यस्त से हो गए हैं. जैसे पति-पत्नी एक बार रिश्ते में आ जाने के बाद लड़ते-झगड़ते, एक दूसरे के हितों की सुरक्षा करते जीवन गुजार देते हैं, इसी तरह से पॉलीटिकल एनवायरमेंट और सिविलसर्विस के रिश्ते भी चलते रहते हैं. सिविल सर्विस तो एक निश्चित कार्यकाल के लिए होती है लेकिन पॉलीटिकल सर्विस में हर पाँच साल में नया जनादेश लेना होता है. यही जनादेश पाने की जद्दोजहद में शासन प्रशासन के उपयोग दुरुपयोग, जनधन के बेतहाशा खर्च और करप्शन की डोर बंधी हुई है.
सिविल सर्विस डे पर ब्यूरोक्रेसी के वर्तमान हालातों जनसेवा में भूमिका, भ्रष्टाचार की बुराई, राजनीतिक टूल बनने की बढ़ती प्रवृत्ति, सुविधाभोगी मानसिकता, निर्णय लेने में अक्षमता और जवाबदेही निभाने में विफलता जैसे विषय विचार में आते हैं. पब्लिक लाइफ में इथिक्स महत्वपूर्ण होता है. ब्यूरोक्रेसी चूँकि इंप्लीमेंटेशन की सुपर पॉवर है इसलिए इथिक्स बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं.
सिविल सेवकों को दो मुख्य श्रेणियों में देखा जा सकता है. एक श्रेणी ऐसे सिविल सेवकों की है जो ईमानदार और कार्यदक्ष हैं. वे टूट सकते हैं लेकिन झुक नहीं सकते. दूसरी श्रेणी में ऐसे लोकसेवक आते हैं जो बेईमान और अक्षम हैं. उनकी कोई रीढ़ नहीं है. वह कभी भी निजी हित में झुकने के लिए तैयार होते हैं. दुर्भाग्यजनक स्थिति यह है कि की पहली श्रेणी के सिविल सेवकों के दर्शन अब यदा-कदा ही हो पाते हैं.
सिविल सेवकों को जो बुराइयां सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रही हैं, उनमें भ्रष्टाचार और सुविधाभोगी होने की प्रवृत्ति सबसे ज्यादा है. गवर्नमेंट के वर्तमान इकोसिस्टम को देखते हुए यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या सारी ब्यूरोक्रेसी करप्ट है? क्या वर्तमान हालात लोकसेवकों को ईमानदार रहने के लिए प्रेरित करते हैं? क्या ऐसी स्थिति नहीं है कि अब उनका ईमानदार रहना कठिन सा हो गया है? गवर्नमेंट के निर्णायक पॉलीटिशियन क्या लोक सेवकों में इंटीग्रिटी की अपेक्षा करते हैं? लोक सेवकों को ईमानदारी के लिए क्या कीमत चुकानी पड़ती है? क्या केवल ईमानदारी ही एक लोक सेवक के लिए सबसे महत्वपूर्ण है? इस तरह के सारे सवाल लोकसेवकों को आक्षेपित करने के लिए नहीं बल्कि वर्तमान स्थितियों के विश्लेषण करने की दृष्टि से उठाए जा रहे हैं.
जहां तक भ्रष्टाचार का सवाल है, यह हमेशा से रहा है. सिविल सर्विस के पहले भी था. इसमें जो अंतर आ गया है वह यह है कि पहले शुकराना के नाम पर सहयोग किया जाता था लेकिन अब यह जबराना के रूप में एक्सटॉर्शन बन गया है. जबराना की यह प्रवृत्ति आम लोगों को प्रभावित कर रही है. आम लोगों के जनजीवन से जुड़े सरकारी कामकाज के लिए लगभग ऐसा कहा जाने लगा है कि एक रेट फिक्स है और बिना उसके काम हो ही नहीं सकता.
चिंताजनक परिस्थितियों का यह पहलू परेशान करने वाला है कि जन समस्याओं के निराकरण के लिए बनाए गए एक अभिनव सिस्टम सीएम हेल्पलाइन को भी लोगों ने ब्लैकमेलिंग का जरिया बना लिया है. करप्ट प्रैक्टिसेज के नए-नए तरीके इजाद हो गए हैं. पब्लिक से जो सीधे जुड़ी चीजें नहीं है उनमें तो सरकारी बजट का बंदरबांट अक्सर प्रकाश में आता है. हालात यहां तक हो गए हैं कि अब करप्शन लाइफस्टाइल के रूप में स्वीकार किया जाने लगा है.
आज किसी भी लोक सेवक की जीवन शैली का अध्ययन किया जाए तो क्या उसको मिल रहे वेतन भत्तों से उसकी पूर्ति हो सकती है? एक लोक सेवक जितने वाहनों का उपयोग करता है उनमें लगने वाला डीजल-पेट्रोल ही उसकी सैलरी से पूरा नहीं हो सकता. ऐसे हालातों को बदलने की जरूरत है. लाइफस्टाइल में अनाप-शनाप खर्च के कारण ही बुराइयों की फसल होती है.
राजनीति के अपराधीकरण के कारण भी लोक सेवकों को इथिक्स के विपरीत आचरण करना पड़ता है. इन अपराधियों को कभी ना कभी लोक सेवकों द्वारा कानून के अंतर्गत शिकंजे में लाया गया था. उन्हीं अपराधी टर्न राजनीतिज्ञों के सामने उन्हें रिपोर्ट करना पड़ता है. ऐसे हालात निश्चित ही स्वर्णकाल तो नहीं ला सकते.
पॉलिटिकल एन्वायरमेंट में दूरदृष्टि की कमी आ गई है. सत्ता की राजनीति केवल सत्ता अवधि की दृष्टि को ही ध्यान में रखकर काम करती है. इसके कारण भी लोक सेवकों को दबाव में काम करना पड़ता है. तबादला उद्योग इस बात का संकेत है कि ब्यूरोक्रेसी को मन मुताबिक बनाए रखने के लिए पदों का उपयोग किया जाता है. लूप लाइन और क्रीम पोस्टिंग के नाम पर अधिकारियों को बैलेंस में रखने का राजनीतिक खेल किसी से भी छुपा नहीं है.
तबादला उद्योग में करप्शन भी बड़ी भूमिका अदा करता है. निर्णायक शक्तियां अपने पास रखने के लिए पॉलीटिकल इकोसिस्टम इंस्टिट्यूशन को कमजोर करने का आदी हो गया है. इन सब कारणों से लोक सेवकों का हैरेसमेंट आम बात हो गई है. एफिशिएंसी आज उतना मायने नहीं रखती जितना की रखी जानी चाहिए.
करप्ट लोक सेवकों और पॉलीटिशियंस का नेक्सस सिस्टम के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. आए दिन विभिन्न राज्यों में राजनेताओं से जुड़े विश्वसनीय अफसरों के यहां पड़ रहे छापों में करोड़ों रुपए नगद जब्त होना यह बात प्रदर्शित कर रहे हैं कि कैसे यह नेक्सस जनधन को लूटने में लगा हुआ है. ब्यूरोक्रेसी पॉलीटिशियंस की पर्सनल और पॉलिटिकल गोल का जरिया बनता जा रही है.
सिविल सर्विस डे पर लोक सेवकों को वास्तव में लोक का सेवक बनने का संकल्प लेना चाहिए. पारदर्शिता के साथ पब्लिक के साथ खड़े दिखाई देना चाहिए. इस देश की सबसे बड़ी सर्विस में मौका देने के लिए ईश्वर का आभारी होना चाहिए. आम लोगों के कल्याण के परम तत्व को अपने जीवन का लक्ष्य बनाना चाहिए.
मीडिया और सोशल मीडिया के लगातार विस्तार के बाद लोक सेवकों को अब कुछ भी छुपाना कठिन से कठिन होता जा रहा है. पॉवर का सुख रिटायरमेंट के बाद दुख नहीं बने इसलिए पावर का भी संतुलन के साथ उपयोग करते हुए इथिक्स का पालन करना लोक सेवकों के भविष्य को न केवल उज्जवल रखेगा बल्कि मान सम्मान और गरिमा भी प्रदान करेगा. सियासत से दूर रहकर जन सेवा के लिए बनी सिविल सर्विस को सियासत में चूर होने से बचना चाहिए. अगर इसको इग्नोर किया गया तो इस सर्विस का नूर बढ़ने की बजाय घटता जाएगा जो समाज के लिए अच्छा नहीं होगा.