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दुष्काल : यह अक्षम्य संवेदनहीनता

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 25 Apr

सार

बीते कल के “प्रतिदिन” में में कोरोना दुष्काल की गलतियों को न दोहराने की बात को आगे बढाते हए, एक शोक संतप्त पिता ने मुझसे मुआवजे पर प्रश्न किया है |

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विस्तार

बीते कल के “प्रतिदिन” में में कोरोना दुष्काल की गलतियों को न दोहराने की बात को आगे बढाते हए, एक शोक संतप्त पिता ने मुझसे मुआवजे पर प्रश्न किया है | अपने एक मात्र पुत्र खोने वाले इस पिता की सारी पूंजी बेटे के इलाज में स्वाहा हो गई, ढलती आयु में अब उसे मुआवजे की दरकार है | इस दुष्काल में काल कवलित होने वालों के परिजन ऐसे ही सवाल लिए देश में कई जगह मौजूद हैं | देश के हर राज्य में ऐसे संवेदनाहीन अधिकारी और कर्मचारी हैं, जो मुआवजे के हकदार लोगों को दौड़ा रहे हैं।

कई राज्यों से इस दुष्काल में मरने वालों के परिजनों को मुआवजा नहीं मिलने का मामला सुप्रीम कोर्ट में है | इस मामले का वहां तक पहुंचना और उस पर कोर्ट की नाराजगी हर से उपयुक्त है। आदेश के बावजूद कोरोना दुष्काल पीड़ितों के परिजनों को मुआवजा नहीं देने पर बिहार और आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव को तलब किया गया है । ऐसी नौबत अन्य राज्यों के सामने भी आने वाली है |

सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि ऐसे अधिकारी कर्मचारी कानून से ऊपर नहीं हैं। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि दोनों राज्यों के मुख्य सचिव को कारण बताना चाहिए कि अनुपालन न करने के लिए उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई क्यों नहीं की जाए? यह वाकई बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुआवजा देने के लिए बार-बार निर्देश के बावजूद सरकारें पर्याप्त सचेत नहीं हैं। राज्यों को गंभीरता से इस शिकायत पर ध्यान देना चाहिए, ताकि सुप्रीम कोर्ट यह न कहे कि राज्य सरकारें उसके आदेश की पालना के प्रति गंभीर नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने वैसे ही बहुत कम मुआवजा राशि तय की है, महज पचास हजार रुपये का भुगतान राज्य सरकारों को करना है। कोरोना इलाज में कितना खर्च हुआ है, यह किसी से छिपा नहीं है। मध्य प्रदेश के एक किसान की जान तो आठ करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी नहीं बची। राज्य सरकारों को विशेष रूप से जवाबदेह होना चाहिए।

वैसे तो जो लोग सक्षम हैं, उन्हें भी भारी आर्थिक नुकसान हुआ है। लोककल्याणकारी सरकारों के दौर में तो मुआवजा उन लोगों को भी मिलना चाहिए था, जिनके लाखों रुपये अपनी जान बचाने में लग गए। यह सरकारों के लिए मुफीद है कि उन्हें ठीक होने वालों को कोई मुआवजा नहीं देना है। मुआवजे का दावा केवल वही लोग कर रहे हैं, जिन्होंने परिजन खोए हैं। ऐसे लोगों को न्यूनतम मुआवजे का भी भुगतान नहीं करना कोर्ट के आदेश की अवज्ञा नहीं, तो क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल सही कहा है कि लोगों को भुगतान न करने का कोई औचित्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भी कई सरकारों को मुआवजा देने का निर्देश अलग से दिया है, फिर भी अनेक राज्य हैं, जो ढिलाई बरत रहे हैं। दरअसल, मुआवजा देने को लेकर इतने तरह के नियम-कायदे राज्य सरकारों ने बना रखे हैं कि वास्तविक हकदार भी कागजी खानापूर्ति नहीं कर पाने की वजह से मुआवजे से वंचित रह जा रहे हैं।

एक बड़ा कारण,अभिलेख का दुरुस्त न होना भी है| इस दुष्काल के समय राज्य सरकारों ने आंकड़ों को दुरुस्त नहीं रखा है, इसलिए और परेशानी आ रही है। उदहारण के लिए आंध्र प्रदेश को देखिए, यहां कोरोना से केवल १४४७१ मौतें दर्ज हैं, जबकि लगभग ३६०००दावे प्राप्त हुए हैं और सिर्फ ११००० मामलों में मुआवजा दिया गया है। बिहार सरकार के आंकड़ों पर भी सुप्रीम कोर्ट में सवाल खड़े हुए हैं। बिहार में कोरोना से मौत के१२९०० मामले दर्ज हुए हैं, जबकि ११०९५ दावे मिले हैं । मौत के दर्ज मामले और मुआवजे के दावे में अंतर भारतीय राज्यों में सामान्य है। निचले स्तर के कर्मचारियों ने मौत के आंकड़ों को दुरुस्त रखने के लिए कुछ भी खास नहीं किया है। ऐसे कर्मचारी भी बड़ी संख्या में हैं, जो मुआवजे के हकदार लोगों को दौड़ा रहे हैं। इस संवेदनशील मुद्दे पर एक राष्ट्रीय श्वेत पत्र की जरूरत है |