इस अध्ययन के अनुसार एक ही मौसम स्टेशन द्वारा रिकार्ड की जाने वाली 24 घंटे की भारी बारिश में पिछले कुछ वर्षों के दौरान चौंकाने वाली वृद्धि हुई है..!
प्रतिदिन विचार-राकेश दुबे
27/09/2022
मौसम का मिजाज़ बिगडा हुआ है | देश के 165 मौसम स्टेशनों में अधिकांश में 1980 के बाद वर्षा की अधिक तीव्रता रिकार्ड हुई है। कुछ मामलों में तो तीव्रता का यह आंकड़ा 40 से 370 प्रतिशत तक की वृद्धि का रिकार्ड हुआ है | यह पिछले सारे रिकार्ड को तोड़ नया इतिहास बना रहा है | देश में मानसून के दौरान कम अवधि में भारी वर्षा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के अध्ययन के मुताबिक भारत में पिछले 50 वर्षों के दौरान कम अवधि में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है।इस अध्ययन के अनुसार एक ही मौसम स्टेशन द्वारा रिकार्ड की जाने वाली 24 घंटे की भारी बारिश में पिछले कुछ वर्षों के दौरान चौंकाने वाली वृद्धि हुई है।
वैसे तो दक्षिण पश्चिमी मॉनसून आम तौर पर सितंबर के अंत में विदा हो जाता है ,लेकिन इस बार उसने ऐसा नहीं किया। देश में कहीं-कहीं मॉनसून की उपस्थिति बनी हुई है। पिछले हफ्ते उत्तरी राज्यों में हुई कहीं भारी तो कहीं मूसलाधार बारिश ने जनजीवन को हिला दिया है। देश की सिलिकॉन वैली समझे जाने वाले बेंगलुरु शहर में ट्रैक्टर चले और गुरुग्राम में लोगों को घरों से काम करने का आग्रह किया गया। इस साल बादल फटने की घटनाएं भी हुईं जिनसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर में भारी तबाही हुई। यह अनियमित मौसम चक्र अध्ययन का विषय है |
हिमालय क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से कमजोर और अस्थिर है। यहां प्राकृतिक आपदाओं का खतरा हमेशा बना रहता है। कभी बाढ़ तो कभी भूस्खलन और कभी अचानक बादल का फटना। हिमालय क्षेत्र में बादल फटने की घटनाएं सामान्य तौर पर जुलाई और अगस्त में होती हैं। बादल फटने की घटनाओं में उत्तरोत्तर वृद्धि एक गहरी चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा हो रहा है। यह एक जटिल विज्ञान विषय है और इस पर समुचित प्रमाण जुटाए जाने की दरकार हैं।
आखिर बादल का फटना क्या होता है ?और इससे इतना नुकसान क्यों होता है? पहले धारणा यह थी कि बादल पानी से भरा गुब्बारा है जिसके फटने से पानी धड़ाधड़ नीचे गिरने लगता है। इसी वजह से इस तरह की आकस्मिक वर्षा को ‘बादल का फटना’ अथवा ‘क्लाउडबर्स्ट’ कहा जाने लगा था । बादल फटना दरअसल भारी वर्षा का एक रूप है। इसका स्वरूप स्थानीय होता है। इसमें बहुत छोटे से क्षेत्र में बहुत तेज रफ्तार से बारिश होती है। देश में मानसून की सक्रियता के दौरान हिमालय क्षेत्र,उत्तर-पूर्वी राज्यों और पश्चिमी घाट में बादल फटने की घटनाओं का खतरा बना रहता है। ऐसी घटना मैदानी इलाकों में भी हो सकती हैं, लेकिन वहां इसकी संभावना कम रहती है।पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थानके अनुसार , दो घंटे की अवधि में 50 मिलीमीटर या उससे अधिक वर्षा को लघु क्लाउडबर्स्ट माना जा सकता है।
ऐसा समझा जाता है कि हिमालय क्षेत्र में तेजी से ऊपर उठने वाले बादलों के साथ नमी वाली मिट्टी भी होती है। यह मिट्टी नमी का अतिरिक्त स्रोत होने के कारण संभवतः बादल फटने की प्रक्रिया में मदद करती है। इस तरह की वर्षा की एक खास बात यह है कि इसमें पानी की बूंदें आपस में जुड़ कर बड़ी बूंदों में तब्दील हो जाती है। ये बूंदें ज्यादा तेजी से नीचे गिरती है। तेजी से गिरने वाला पानी स्थानीय पैमाने पर जबरदस्त बाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर देता है। पहाड़ों की विशिष्ट भौगोलिक बनावट के कारण यह बाढ़ ज्यादा विकराल हो कर भारी तबाही का कारण बनती है।
बादल फटने के दौरान वर्षा इतनी आकस्मिक और अप्रत्याशित होती है कि इनका पूर्वानुमान लगाना मौसम वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी चुनौती है। भारतीय मौसम विभाग और उत्तराखंड सरकार ने पिछले साल कुमायूं के मुक्तेश्वर में अतिवृष्टि और बादल फटने की घटनाओं की पूर्व चेतावनी के लिए एक डोप्लर रेडार स्थापित किया था। बादल फटने की संभावित घटनाओं की ट्रैकिंग के लिए यह रेडार आदर्श है बशर्ते उस क्षेत्र में वायु का दबाव और नमी नापने वाला समुचित नेटवर्क हो।