विदेशी ताकतों की भारत में दिलचस्पी अभी तक व्यापार और निवेश को लेकर ही सीमित हुआ करती थी लेकिन अब तो भारत के लोकतंत्र को भी नियंत्रित करने की कोशिशें होने लगी हैं. विदेशी शक्तियों तक भारत के लोकतंत्र की कमजोरियों को पहुंचाने का काम वैसे तो सत्ताविरोधी विचारधारा के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूहों द्वारा करना आम बात है लेकिन अब तो भारतीय लोकतंत्र के पहरेदार राजनेता भी विदेश की धरती पर भारतीय लोकतंत्र की कमियों को उजागर कर विदेशी ताकतों से भारत में लोकतंत्र की बहाली पर सहयोग की अपेक्षा कर रहे हैं..!
भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस के नए पॉलीटिकल गुरु बने राहुल गांधी ने लंदन में अपने प्रवास के दौरान हर दिन नए-नए आरोप भारतीय लोकतंत्र पर लगाए. उनका हालिया आरोप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आया है. उनका कहना है कि आरएसएस एक सीक्रेट कट्टरपंथी फासीवादी संगठन है. इस संगठन द्वारा देश के संस्थानों पर कब्जा कर लिया गया है. इस कारण भारत में कॉम्पेटेटिव डेमोक्रेसी ने एक तरफा स्वरूप ग्रहण कर लिया है.
आरएसएस का नेशनहुड, राहुल गांधी को मुस्लिम ब्रदरहुड लग रहा है. आरएसएस और कांग्रेस की प्रतिद्वंदिता कोई नई नहीं है. जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी भी आरएसएस के खिलाफ सार्वजनिक रूप से विचार रखते थे लेकिन कांग्रेस के नए पॉलीटिकल गुरु अपने पूर्वजों से भी आगे निकल गए हैं. उनके पास न मालूम कौन सा बैरोमीटर है जिससे उन्होंने यह नाप लिया है कि आरएसएस ने प्रेस, न्यायपालिका संसद और चुनाव आयोग जैसी संस्थानों पर कब्जा कर लिया है.
आरएसएस ने कब्जा किया है या नहीं किया है लेकिन राहुल गांधी के मन मस्तिष्क पर जरूर संघ का कब्जा हो गया है. ऐसा दिखाई पड़ने लगा है कि उनके चिंतन की प्रक्रिया आरएसएस से शुरू और आरएसएस पर ही खत्म होती है. भारत जोड़ो यात्रा में पूरे समय देश में नफरत के लिए संघ को जिम्मेदार ठहराना उनका प्राथमिक दायित्व बना हुआ था. अब तो उनके द्वारा यहां तक आभास दिया जाने लगा है कि चुनाव नतीजे भी संघ द्वारा प्रायोजित ढंग से आने लगे हैं.
कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ते समय राहुल गांधी को उनकी बात कहने से किसने रोका था? उन्होंने निश्चित रूप से अपनी बात कही और मीडिया में उसको स्थान भी मिला. विदेश में जाकर भारत के लोकतंत्र से जुड़े विषय पर बात रखना शायद उनके लिए इसलिए जरूरी है क्योंकि पूरी दुनिया में उससे अटेंशन मिलता है.
अटेंशन राहुल गांधी के कारण कम और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध के कारण ज्यादा मिलता है. जो भी आरोप भारत के संबंध में लगाए जाते हैं वे राष्ट्रीय सेवक संघ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारत सरकार, भारत में नफरत, मुस्लिमों के साथ दुर्व्यवहार, उद्योगपतियों को बेजा फायदा जैसे मुद्दों से जुड़े होते हैं. इसके कारण पूरी दुनिया उन पर ध्यान देती है.
राहुल गांधी कह रहे हैं कि भारत में लोकतंत्र पर हमले के प्रति यूरोपीय देश चुप्पी साधे हुए हैं. भारत के लोकतंत्र के लिए दूसरे देश क्या करेंगे? राहुल गांधी उन देशों से क्या अपेक्षा रखते हैं? भारत में मीडिया पर भी आक्षेप लगाना कांग्रेस की शैली बन गई है. न मालूम किस मानसिकता में राहुल गांधी और कांग्रेस पूरी दुनिया में यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार तथा उनके जुड़े हुए संगठन डेमोक्रेसी के लिए खतरनाक हैं.
भारत जिन विचारों को मजबूती के साथ अपना रहा है उन विचारों को ही कट्टर और नफरत फैलाने के लिए जिम्मेदार मानना कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हो रहा है. कांग्रेस की पूरी राजनीति मुस्लिम धुरी के इर्द-गिर्द घूम रही है. हिंदुत्व के प्रति समय-समय पर झुकाव दिखाते जरूर हैं लेकिन उसकी बुनियादी शर्त यह है कि मुस्लिम पॉलिटिक्स सुनिश्चित रूप से कांग्रेस के कब्जे में होना चाहिए. उसके बाद फिर दूसरे विचारों को स्वीकार किया जाएगा.
राहुल गांधी आरएसएस और बीजेपी पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगाकर एक तरह से उनकी पिच पर ही चले जाते हैं. जब भी आरएसएस बीजेपी को मुस्लिम विरोधी साबित किया जाता है तब यह समुदाय इस बात का विश्लेषण करता है कि भारत की सरकार या राज्यों की बीजेपी सरकार ऐसी कौन सी नीतियां और योजनाएं चला रहे हैं जो मुस्लिम विरोधी हैं? तमाम विश्लेषणों के बाद भी एक भी ऐसी योजना नहीं मिलती जिसमें धार्मिक आधार पर विभाजन किया जा रहा है.
चिंतन मनन के बाद मुस्लिम आबादी इस नतीजे पर पहुंचती है कि आरएसएस-बीजेपी को मुस्लिम विरोधी बताने का राजनीतिक उद्देश्य होता है. इसके विपरीत संघ और भाजपा मुस्लिमों के बीच अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए योजनाबद्ध ढंग से काम कर रहे हैं. मस्जिदों में जाकर मुस्लिम धर्मगुरुओं से आरएसएस के सरसंघचालक द्वारा मुलाकात करना कोई सामान्य घटना नहीं है.
पसमांदा मुसलमानों के कल्याण के लिए अभियान के रूप में जागरुकता बढ़ाना बीजेपी की सुनियोजित रणनीति है. एक दौर था जब मुस्लिम आबादी संघ और बीजेपी के विरोध में हुआ करती थी आज इन स्थितियों में आखिर बदलाव आ गया है. मध्यप्रदेश में ही नगरीय निकायों में भाजपा के 100 से अधिक पार्षद मुस्लिम समुदाय से चुनकर आए हैं. गुजरात जैसे राज्यों में दाऊदी बौहरा मुस्लिम बीजेपी के समर्थक माने जा रहे हैं.
देश में आज आम आदमी के लाइवलीहुड की समस्या है. इस समस्या पर राजनीति खासकर विपक्ष को फोकस करने की जरूरत है. हिंदू मुस्लिम की राजनीति से विपक्ष अब कोई राजनीतिक लाभ प्राप्त कर सकेगा यह संभव नहीं लग रहा है. मुस्लिम तुष्टिकरण की जितनी भी बात की जाती है उसकी प्रतिक्रिया में बीजेपी को हिंदुत्व के एकीकरण का लाभ मिल जाता है.
जब विकास और लाइवलीहुड की बुनियादी बातों पर विपक्ष अपनी बात मजबूती के साथ तथ्यपरक ढंग से रखेगा तब सरकारों को जवाब देना कठिन हो जाएगा. ऐसे हालात हमेशा विपक्ष के लिए लाभकारी सिद्ध होते हैं. राजनेताओं ने भारत की राजनीति का मर्म ही बदल दिया है. राजनीति शास्त्र जो जनसेवा का कर्म हुआ करता था आज नेताओं ने उसे बेशर्म जैसा बना दिया है.
कांग्रेस और कांग्रेस के नेताओं यहां तक कि राहुल गांधी की बात का अपना महत्व है. उसको पूरी तौर से इसलिए नहीं नकारा जाता क्योंकि भारत और कांग्रेस का रिश्ता बहुत पुराना है. पुराना इतिहास याद करने के लिए ठीक हो सकता है लेकिन यह कितना सही है कि
‘जीवन पीछे का नहीं आगे बढ़ता नित्य,
नहीं पुरातन से कभी रचता नया साहित्य,
राजनीति के मैदान में राष्ट्र को दांव पर लगाना देश के साथ ही विश्वासघात कहा जाएगा. राष्ट्र का स्थान तो फूल जैसा है. फूल के साथ किसी भी ढंग से व्यवहार किया जाए वह तो सुगंध ही देगा. यह कहना कितना सारगर्भित है कि
तोड़ो, मसलो या कितना उस पर डालो धूल
बदले में लेकिन तुम्हें खुशबू ही दे फूल
यह खुशबू भी तब तक ही मिलेगी जब तक फूल का पेड़ रहेगा. राजनीति तो लोकतंत्र का पेड़ उखाड़ने से भी पीछे नहीं रहना चाहती.