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दुष्काल : गलतियाँ दोहराई न जाएँ

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 27 Jul

सार

तथ्यों और सत्यों की अवहेलना ही हर बार मझधार में ले आती है। क्या कारण था कि जबकि पश्चिमी देशों में दुष्काल की तीसरी लहर रंग दिखाने लगी थी

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विस्तार

वर्ष २०२२ के २० दिन बीत चुके हैं, दुष्काल की तीसरी लहर कब तक और कहाँ तक जाएगी किसी को अंदाज नहीं है | नये वर्ष की शुरुआत में ही दुष्काल की तीसरी लहर के अप्रिय कुठाराघातसे हुई | ओमीक्रोन वायरस के संक्रमण के पहले समाचार कर्नाटक से मिले ,देखते ही देखते ये समाचार देश के हर राज्य से आने लगे। वहीं इसके साथ दूसरी लहर का डेल्टा प्लस भी तेज होकर अपना संक्रामक प्रभाव दिखाने लगा। तेजी इतनी कि अगर पहली लहर में एक लाख लोगों के संक्रमण का आंकड़ा १४९ दिन में पहुंचा था, दूसरी लहर में पचास दिन में और अब मात्र २० दिन में दोनों वायरसों से संक्रमण का आंकड़ा एक लाख से ऊपर हो गया। इसकी गिरफ्त में केवल महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली ही नहीं आये, बल्कि देश में जहाँ – तहां भी दिख रहे हैं |

देश में दोनों वायरसों के संक्रमण के कारण को नया नाम “डेल्माक्रोन” कहा जा रहा है, पुन: अग्निपरीक्षा शुरू हो गयी है । इस अग्निपरीक्षा से न केवल प्रशासन, बल्कि किसानों, निवेशकों और कामगारों को भी सामना करके सफल होकर निकलना है। जो गलतियां पिछले वर्ष के शुरू के महीने में दूसरी लहर में झेलीं, वह इस बार न हों।यह लहर हर स्तर पर अधिक तैयारी और अधिक साहस की अपेक्षा कर रही है। पहले तो दोनों दुष्काल के दोनों चरणों के प्रकोप से उबरकर संवरती हुई अर्थव्यवस्था को बचाना है। पूर्ण और अपूर्ण लॉकडाउन चलती अर्थव्यवस्था को रोक अवरोध और क्षरण का माहौल पैदा कर देते हैं। इसलिए इस बार सम्पूर्ण के आदेशों के स्थान पर परिस्थितियों के अनुरूप स्थानीय बंदिशों के आदेश हों और स्थिति सुधरते ही उन्हें हटा दिया जाये।

तथ्यों और सत्यों की अवहेलना ही हर बार मझधार में ले आती है। क्या कारण था कि जबकि पश्चिमी देशों में दुष्काल की तीसरी लहर रंग दिखाने लगी थी, हमने अपने देश में इसके संभावित आगमन की उपेक्षा कर के टीकाकरण की गति को धीमा कर दिया। लोगों ने अपने व्यावहारिक जीवन में सामाजिक अंतर न रखने और चेहरों पर मास्क न पहनने का जीवन फिर से जीना शुरू कर दिया। पुष्ट समाचार तो यहाँ तक है कि भारत ने अपने द्वारा निर्मित टीकों का एक हिस्सा जरूरतमंद देशों को देना शुरू कर दिया और टीका लगाने वाली सिरिंजों का उत्पादन भी कम हुआ।

यह तो हिमालय जैसी भूल थी जिससे बचाव के लिए प्रचार अभियान चल रहा है, लेकिन प्रश्न है कि देश ने दुष्काल की तीसरी लहर के आगमन की अनिवार्य संभावना का अंदाज़ क्यों नहीं किया? उसके अनुरूप अपनी जीवनशैली को क्यों नहीं बदला? भारत द्वारा बनाये गये कोवैक्सीन टीके सफल रहे हैं। लेकिन शोध का यह कारवां द्रुत गति से चलता हुआ अभी तक कोरोना के सटीक उपचार तक क्यों नहीं पहुंचा? पश्चिम के चिकित्सा विज्ञानियों ने इसके उपचार के लिए एंटी वायरल दवा विकसित की है। इसके दाम घटाकर, सहज उपलब्ध बनाकर अभी तक अपने देश की हर दवा मंडी तक पहुंच जाना चाहिये था। ऐसा क्यों नहीं हुआ? इनके जवाब चाहिए | होना यह चाहिए ,चिकित्सा ढांचे का विकास हो। साथ ही दवा मंडियों में पैदा हो जाने वाली जमाखोरी और कालाबाजारी का निराकरणहो, ऐसी दुश्वारियां पिछली लहरों के समय देश के लोगों ने झेली हैं । दोहराई न जाएँ |

वस्तुत: सामान्य जिंदगी के नाम पर एक अस्वस्थ ललक ने ही आज पूरे देश को दुष्काल की विकट लहर के तीसरे दौर के समक्ष खड़ा कर दिया है। स्थिति के अनुरूप जिंदगी जीने के ढंग में स्थायी परिवर्तन अर्थात‍ शारीरिक अंतर रखने और मास्क पहनने का अनुशासन ही इस देश के लोगों को उस अवस्था से बचा सकता है जिसे जापान में हाराकिरी कहते हैं |

सिर्फ मुसीबत आने पर ही प्रशासन सचेत हो, पद्धति गलत है | इसके बदले अगर सदैव सचेत और ठोस निर्णय लेने की सरकारी तत्परता उपज सके, तो सम्भवत: देश को दुष्काल से छुटकारा मिल सकता है ।