बदले की खुशी खूब मनाई जा रही है, खास तौर पर सोशल मीडिया पर, जिसने पाकिस्तानियों के साथ अलग जंग लड़ी और जहां अदावत अब भी जारी है..!!
आपरेशन सिंदूर से यही सबक़ मिला है कि ‘अगली बार’ कभी नहीं आने देनी है। अब सवाल उठता है: क्या हम पाकिस्तान को ऐसा डर दिखाकर दूर रखने में कामयाब रहे हैं? पहलगाम हमले ने साफ कर दिया कि हम नाकाम रहे हैं। क्या झड़प रोकते समय हम ऐसा कर पाए? बदले की खुशी खूब मनाई जा रही है। खास तौर पर सोशल मीडिया पर, जिसने पाकिस्तानियों के साथ अलग जंग लड़ी और जहां अदावत अब भी जारी है।
पहलगाम हमले के बाद हमारी चर्चा पर गुस्सा हावी हो जाना लाजिमी था। हर कोई बदला लेने के लिए आमादा था। मगर संप्रभु देश केवलबदले के खेल में नहीं पड़ सकते हैं। उन्हें और भी कुछ करना होता है – ताकत हासिल करनी होती है, जिससे डरकर दुश्मन दूर रहे। साथ हीसजा देने की कुव्वत भी उनमें होनी चाहिए।
रामचरित मानस की पंक्ति ‘भय बिन होई न प्रीत’ यही तो बताती हैं, जो एयर मार्शल एके भारती ने सेना के तीनों अंगों की तरफ सेसंवाददाताओं से बात करते समय कही थी। आतंकी ठिकानों पर भारत के शुरुआती हमलों पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया देखकर लगा किहमारी ताकत से वह अभी तक डरा नहीं है। सजा देने की ताकत 10 मई की सुबह दिखाई गई, जब पाकिस्तानी वायु सेना के सबसे सुरक्षितठिकानों, हवाई सुरक्षा और मिसाइलों को निशाना बनाकर उसे शर्मसार कर दिया गया।
यह सख्त सजा थी। मगर कीबोर्ड और प्राइम टाइम के जंगजू कुछ भी कहें, सरकार ने ‘बदला’ नहीं लिया था बल्कि यह समझाकर डराया था कि: अब कोई भी आतंकी कार्रवाई युद्ध ही मानी जाएगी। हमारा जवाब फौरन आएगा और ज्यादा सख्त आएगा। इसीलिए रुक जाओ।
लेकिन तथ्य और इतिहास यह साबित नहीं करते कि आतंक के इस्तेमाल से डराकर रोकना अब भारत की राष्ट्रीय नीति बन गई है। हमें देखनाहोगा कि 2016 से ही अपनी जवाबी कार्रवाई बढ़ाकर भारत को क्या मिला है। उड़ी और पुलवामा हमलों के जवाब में 2019 में बालाकोट और2025 में पहलगाम के जवाब में ऑपरेशन सिंदूर। वास्तव में हमें 13 दिसंबर, 2001 के संसद हमले से शुरू करना चाहिए। वह पाकिस्तानी सेनाऔर आईएसआई के छद्म युद्ध की शुरुआत थी, जिसने युद्ध जैसे हालात पैदा कर दिए थे। भारत की सेना सीमा पर पहुंच गई थी, जिसके बादशांति पसर गई। मगर 2008 में 26 नवंबर को फिर हमला हो गया। यानी भारत की ताकत देखकर पाकिस्तान सात साल तक चुप रहा।
भारत ने अजमल आमिर कसाब को जिंदा पकड़ लिया, फोन रिकॉर्डिंग पेश कीं और अमेरिकी नागरिकों तथा यहूदियों की हत्या से पाकिस्तानदुनिया भर के सामने शर्मसार हुआ। उसके बाद करीब आठ साल शांति रही।
फिर 2016 में पठानकोट और उड़ी हमले हो गए। जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक की गई। इससे पाकिस्तान को यह कहकर निकलने का मौकामिल गया कि कुछ हुआ ही नहीं। 2019 में पुलवामा हमले के जवाब में भारत ने बालाकोट में जैश-ए-मुहम्मद के ठिकानों को बरबाद कर दिया।तब पाकिस्तान को एक युद्धबंदी भी मिल गया।
साफ दिखता है कि पाकिस्तान और उसके लिए लड़ने वालों को सात साल बाद कुछ होने लगता है। तो क्या भारत के अब तक के सबसे सख्तसैन्य जवाब और युद्ध जैसे हालात के बाद क्या पाकिस्तान फिर सात साल के लिए चुप बैठेगा? भारत और अच्छा कर सकता है। जल्द हीआईएसआई और उसके गुर्गे यहां आ जाएंगे। उन्हें जेट, टैंक और परमाणु बम के साथ जिहाद करने के ख्वाब आते हैं। यही उनकी ख्वाहिश हैयही उनका ‘अंजाम’।