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श्री कृष्ण : भगवान का मानव देह में अवतरण

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 04 Oct

सार

श्रीकृष्ण योगेश्वर हैं , जीवन में संतुलन किस तरह बनाकर रखना है, वह इसके प्रतीक हैं, उन्होंने जीवन के किसी रंग को नहीं छोड़ा, सबको अपनाया है. जिसका संकेत उनके शीश पर धारित मयूरपिच्छ का होना है..!

janmat

विस्तार

प्रतिदिन-राकेश दुबे

19/08/2022

आज जन्माष्टमी है | भगवान श्रीकृष्ण का जन्म दिन | भगवान श्रीकृष्ण स्वयं नारायण विष्णु हैं। मानव देह के रूप में अवतरित होकर उन्होंने दिखाया है कि इंसान की क्षमता कितनी है और वह कहां से कहाँ तक पहुंच सकता है। श्रीकृष्ण नटनागर भी हैं और पार्थसारथी भी। वह श्रीमद्भागवत के उद्गाता भी हैं और सबसे बड़े राजनीतिज्ञ भी। श्रीकृष्ण योगेश्वर हैं । जीवन में संतुलन किस तरह बनाकर रखना है,  वह इसके प्रतीक हैं। उन्होंने जीवन के किसी रंग को नहीं छोड़ा, सबको अपनाया है। जिसका संकेत उनके शीश पर धारित मयूरपिच्छ का होना है | बांसुरी की धुन पर उन्होंने सबको नचाया है। उन्होंने  सबकी देह में प्राण फूंके हैं। 

जीवन का वह क्षण, जब हम सबको जूझना पड़ता है, तब श्रीकृष्ण संदेश देते हैं- उठो, और अपना कर्म करो। कर्मयोगी हैं वह। वह आगे कहते हैं, कर्म करो, लेकिन फल की चिंता किए बिना कर्म करो। जब आप फल की उम्मीद करते हुए कर्म करेंगे, तब आपको निराशा भी मिल सकती है| भारत के  दर्शन वह एकमात्र प्रतीक हैं । वह निराकार भी हैं और साकार भी। निर्गुण भी हैं और सगुण भी। सभी द्वंद्व, जिस बिंदु पर आकर खत्म हो जाते हैं या एकाकार हो जाते हैं | वही श्रीकृष्ण हैं।

भारत  में ही नहीं, विदेश में भी श्रीकृष्ण पूजे जाते हैं। उनको समर्पित गीत-संगीत, कजरी, ठुमरी, पद आदि खूब गाए और नृत्य द्वारा अभिनीत  किए जाते हैं। दिर आदि सभी जगहों में श्रीमद्भागवत के प्रसंगों को उकेरा गया है और श्रीकृष्ण की कहानी पेश की गई है। भरतनाट्यम् हो या ओडिसी, सभी में कृष्ण से जुडे़ पदों की प्रस्तुति होती है। श्रीकृष्ण की एक और विशेषता है। उनको जितना बुरा-भला कहा गया है, शायद ही किसी अन्य देवता को कहा गया होगा। वह अकेले ऐसे प्रतीक हैं, जिन्हें जन्म से लेकर अंत तक छलिया, निर्मोही, माखनचोर  जैसे शब्द कहे गए। उन्होंने सबको आनंद से स्वीकार किया। होली-जन्माष्टमी जैसा त्योहार हो या दैनिक जीवन का कोई क्षण, अखिल विश्व  श्रीकृष्ण से जुड़े शब्द बोलता  रहता  हैं। उन्होंने जहाँ गांधारी के भयानक श्राप को  सहर्ष शिरोधार्य किया । इसके ठीक उलट, सुदामा के साथ अपनी मित्रता का  संदेश दिया, वह जीवन-दर्शन के लिए बहुत अहम है। जीवन के जितने आयाम होते हैं, सभी को श्रीकृष्ण से जुड़े नृत्य-संगीत में हम देख सकते हैं।

मानव देह में अवतरित होकर उन्होंने हमें वह रास्ता दिखाया है, जिस पर यदि हम चलें, तो परम पद पा सकते हैं। श्रीकृष्ण के जीवन की हरेक घटना में हमारे लिए संदेश छिपा है। यह संदेश आज भी प्रासंगिक है  जैसे, कालिय नाग प्रसंग । इस नाग को हम प्रदूषण का प्रतीक मान सकते हैं। श्रीकृष्ण ने न सिर्फ कालिय से युद्ध किया, बल्कि उसके सिर पर नृत्य करते हुए उसे हराया भी। नरसी मेहता ने  बहुत खूबसूरत वर्णन किया है।  इसमें नागरानी पूछती है कि ए सुंदर बालक, तू कौन है? यहां क्या कर रहा है? क्या तुम्हारी मां को परवाह नहीं कि तू कहां भटक रहा है? श्रीकृष्ण जवाब में कहते हैं, मैं मथुरा में पासा खेल रहा था और तेरे पति का शीश बाजी पर रखा था, मैं वह हार गया, तो अब उसका शीश लेने आया हूं। श्रीकृष्ण इसी शर्त पर कालिय को छोड़ते हैं कि वह तत्काल यमुना छोड़कर चला जाए। हम भी यह प्रण ले सकते हैं कि नदियों के प्रदूषण को  दूर करने का प्रयास करेंगे।

  यहां हमें चैतन्य महाप्रभु भी स्मरण आता है | कहा जाता है, जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करते समय वह इतना रोए कि पत्थर तक पिघल गया। आज भी वहां भगवान के पैरों के निशान हैं। चैतन्य महाप्रभु की विनती यही थी- मुझे निर्वाण नहीं चाहिए, मुझे मुक्ति नहीं चाहिए, मुझे तो जन्म-जन्म तक बस तेरी भक्ति चाहिए। हम सब को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर कुछ ऐसी ही कामना करनी चाहिए।