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राष्ट्रीय गौरव पर अभद्रता, सियासत के नैतिक पतन की पराकाष्ठा

सार

भारतीय कला संगीत को ऑस्कर पुरस्कारों के साथ मिले गौरव से पूरा देश आह्लादित है. प्रधानमंत्री सहित प्रत्येक देशवासी इस राष्ट्रीय उपलब्धि के लिए एक दूसरे को बधाई और शुभकामनाएं दे रहे हैं. चुनाव करीब हों और खुशी तो खुशी, गमी पर भी सियासत ना हो ऐसा सोचना भी मुश्किल है.ऑस्कर पुरस्कारों के राष्ट्रीय गौरव को भी सियासत ने अभद्रता और नैतिक पतन की पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया है.

janmat

विस्तार

कांग्रेस और बीजेपी ने 'नाटू-नाटू' गाने पर मीम्स बनाकर ‘लूटो-लूटो’ से जोड़ दिया है. इस गीत के कलाकारों के चित्रों पर कांग्रेस ने अडानी और प्रधानमंत्री के चेहरे लगा कर अपने टि्वटर हैंडल से ट्वीट किया, जवाब में बीजेपी भी पीछे नहीं रही, बीजेपी के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से ‘लूटो-लूटो’ टैगलाइन से ही कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का चेहरा लगाकर मीम्स ट्वीट किए हैं.

राजनीति चर्चा में रहने के लिए क्या इस स्तर पर पहुंच गई है कि नेशनल प्राइड के विषयों पर भी घटियापन की सारी सीमाएं तोड़ दी जायेंगीं? राजनीति में घटियापन का कोई राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार यदि दिया जाएगा तो निश्चित रूप से भाजपा और कांग्रेस द्वारा ट्वीट इन मीम्स को बनाने वाले नेताओं को कोई नहीं हरा पाएगा.

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी इस गाने को मिले ऑस्कर पुरस्कार पर राजनीति करने से पीछे नहीं रहे. 'नाटू-नाटू' गीत के हिंदी लिरिक्स के अनुसार इसका मतलब ‘नाचो-नाचो’ है. इस गीत को अगर हिंदी में सुना जाएगा तो इसका मतलब यह है ‘चलो नाचो नाचो और नाचो, खेतों की धूल में कूदते हुए आक्रामक बैल की तरह तुम नाचो, ढोल जोर से बज रहा है, ऐसे नाचो जैसे कि तुम मिर्च के साथ ज्वार की रोटी खा रहे हो, चलो पागलपन से नाचो, ऐसे नाचो जैसे हरी मिर्च खा ली हो, तेज चाकू की तरह नाचो, जैसे कोई ढोल पीटता है, जिससे आपके दिल की धड़कन तेज हो जाती है, एक पक्षी की तीखी आवाज की तरह जो आपके कान को सुन्न कर सकती है. उस गीत की तरह जो आपकी उंगलियों को लय में बिठा सकता है, तेज ताल के साथ जंगली नृत्य की तरह चलो नाचो नाचो और नाचो.

तेलुगु का यह गीत अपनी मौलिकता और बेहतरीन कोरियोग्राफ़ी के कारण ऑस्कर जीतकर आया है लेकिन इस गीत के साथ जिस तरह की घटिया राजनीति हो रही है उससे गीत के बोल के हिंदी अर्थ और राजनीतिक पतन की साम्यता लाजवाब है.

राजनीति और राजनेता आज ऐसे ही नाच रहे हैं. पागलपन में नाच रहे हैं. उनकी कारगुजारियां यही बता रही हैं कि जैसे तीखी हरी मिर्च खा ली हो और नाच-नाच कर जनता के सिर पर नृत्य कर रहे हैं. मिर्च के साथ ज्वार की रोटी आम आदमी खा रहा है और राजनेता मस्त 'नाटू-नाटू'  के बोल पर 'नाचो-नाचो' नृत्य कर रहे हैं.

संसद चल नहीं रही है. बीजेपी राहुल गांधी द्वारा लंदन में दिए गए लोकतंत्र विरोधी बयानों पर माफी की मांग कर रही है तो कांग्रेस और दूसरे दल गौतम अडानी के मामले में जेपीसी की मांग कर रहे हैं. इन दोनों मुद्दों का जनहित से कोई संबंध नहीं है. यह भली-भांति दोनों दल जानते हैं लेकिन संसद पर 'नाच नाच' कर अपने को सही साबित करने का भौंडा नृत्य किया जा रहा है. 

दिल्ली विधानसभा में विधायकों और मंत्रियों के वेतन भत्ते बढ़ा दिए गए हैं. जब भी मंत्रियों और विधायकों के वेतन भत्ते बढ़ाए जाते हैं तब सभी दलों के बीच आम सहमति बन जाती है. कोई भी इसका विरोध नहीं करता. उस समय दोनों दल मिलकर 'नाचो-नाचो' का नृत्य करते हैं. जैसे ही चुनाव मैदान की तरफ जाते हैं तो एक दूसरे को हरी मिर्च दिखाकर 'नाचो-नाचो' करने लगते हैं. किसी भी राज्य के विधानसभा में एक प्रश्न को पूछने पर  50 हज़ार से ज्यादा का जन-धन लगता है. माननीय सदस्य प्रश्न तो पूछ लेते हैं. जन-धन की बर्बादी होती है लेकिन राजनीतिक 'नाचो-नाचो' में सदन नहीं चलते और प्रश्नों पर चर्चा ही नहीं हो पाती.

भारतीय राजनीति में क्या सेवा और मौलिक आचरण समाप्त हो गया है? सोशल मीडिया के विस्तार के साथ अब फिल्मी दृश्यों और गानों पर एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रतियोगिता होने लगी है? फिल्मों के नामों पर नेता अपनी अहमियत बताने लगे हैं? कभी ‘टाइगर जिंदा है’ तो कभी ‘टाइगर रिटर्न्स’ नाम से फिल्मों के दृश्यों को राजनेताओं के चेहरों के साथ जनता के बीच उछाला जाता है. 'नाटू-नाटू' गीत पर कांग्रेस और बीजेपी ने जो मीम्स ट्वीट किए हैं, उसमें दोनों दलों ने एक दूसरे को 'लूटो-लूटो' कहा है. बीजेपी के ट्वीट में तो कहा गया है कि कांग्रेस ने 15 महीने में प्रदेश को 'लूटो-लूटो' बना दिया. ऐसी ही बात कांग्रेस ने अपने ट्वीट में कही है.

इन दोनों दलों के ऑफिशियल ट्वीट को क्या महत्व नहीं दिया जाना चाहिए. यही दोनों दल मध्यप्रदेश में समय-समय पर सरकार का संचालन करते रहे हैं. जो लोग सरकार में रहे हैं निश्चित रूप से उन्हें पता होगा कि लूट कहां हुई है? कितनी हुई है और लूट किसने की है? जब दोनों ही एक दूसरे को 'लूटो-लूटो' बता रहे हैं तो फिर मध्यप्रदेश की जनता के साथ जो लूट हो चुकी है और जो लूट हो रही है उसको रोकने का काम कौन करेगा?

वैधानिक स्थिति में देखा जाए तो इन दोनों दलों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण बनना चाहिए. इस बात की जांच होना चाहिए कि कौन लूट रहा है और लूटने वालों को दंड मिलना चाहिए. चुनाव के पहले केवल राजनीतिक चर्चा के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं. 'लूटो-लूटो' पर आरोप लगाए जाते हैं लेकिन जब भी सरकार संचालन की स्थिति आती है तब कोई भी दल दूसरे दल के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करता.

लंबे समय के बाद जब कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार आई थी तब यह कहा गया था कि घोटालों के लिए जन आयोग बनाया जाएगा, ना कोई आयोग बना और ना ही कोई जांच हुई. ई-टेंडर घोटाले की बातें बहुत हुई लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात. अपराध साबित नहीं होने के कारण आरोपियों को अदालत से बरी कर दिया गया.

अब समय आ गया है कि राजनीतिक दलों की लूटो लूटो राजनीति को एक्सपोज़ करने के लिए जन अदालतें सक्रिय की जाएं. राजनीतिक दल एक दूसरे को कभी भी कटघरे में सामान्य रूप से नहीं खड़ा करेंगे. बहुत अप्रिय परिस्थितियां बनने के बाद ही ऐसे राजनीतिक हालात बनते हैं.

राजनीति में सुधार के लिए अब राजनेताओं पर भरोसा नहीं बचा है. राजनीति में विश्वास का संकट बना हुआ है. जनधन के अपव्यय से राजनीतिक लाभ आज एक व्यापार बना हुआ है. जनता से जुड़े मुद्दों पर सभी राजनेता जवाब देने से कतराते हैं. मुद्दों को भटकाने के लिए ऐसे अशिष्ट और अभद्र बातें उछाली जाती हैं. स्थितियां अब निराशाजनक बनती जा रही हैं.

राजनीति ने किया, कुछ यूं छुप-छुप कर वार..!
संस्कृति सब घायल हुईं, बिना तीर तलवार..!!

राजनीति में आ रही गिरावट पर यह दोहा कितना सटीक है-

आंखों का पानी मरा, हम सबका यूँ आज..! 
सूख गए जल स्रोत सब, इतनी आई लाज..!!