जम्मू-कश्मीर में गांदरबल मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का चुनाव-क्षेत्र है, जिसके गगनगीर इलाके में आतंकियों ने हमला कर एक डॉक्टर और 6 अन्य कर्मियों, मजदूरों की हत्या कर दी गई..!
यह बात जग ज़ाहिर है कि जम्मू-कश्मीर में गांदरबल मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का चुनाव-क्षेत्र है, जिसके गगनगीर इलाके में आतंकियों ने हमला कर एक डॉक्टर और 6 अन्य कर्मियों, मजदूरों की हत्या कर दी गई । यह भारत सरकार, संघशासित क्षेत्र की सरकार के लिए पहली, गंभीर चुनौती है। आतंकवाद अपनी समग्रता में ही ‘राष्ट्रीय चुनौती’ रहा है।
आज आतंकवाद वैसा नहीं है, जैसा एक दौर में 1508 नागरिकों और 883 जांबाज जवानों को मार दिया गया था। तब एक दौर में 2800 से अधिक आतंकी हमले हुए थे। आतंकवादी भी व्यापक स्तर पर ढेर किए गए। यकीनन हमारे सुरक्षाकर्मियों और रणनीतियों ने आतंकवाद के घुटने तोड़े हैं, लेकिन गगनगीर के हमले ने हमें चिंतित कर सोचने को बाध्य कर दिया है।
दरअसल कश्मीर का ‘नूर’ और ‘जन्नत’ उसी दिन लौटेंगे, जब लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद सरीखे पाकपरस्त आतंकी संगठनों के स्थानीय गिरोह और मॉड्यूल बनना और आतंकी साजिशों में शामिल होना बंद कर देंगे। आतंक के स्थानीय मददगार आज भी जिंदा हैं और कश्मीरियत के बीच ही बसे हैं। पैसे ने ‘नए जयचंद’ भी पैदा कर दिए हैं। चूंकि ‘द रजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) ने हमले की जिम्मेदारी ली है, लिहाजा साफ है कि स्थानीय मददगार आतंकियों के साथ हैं।
सरकार ने इस टीआरएफ को भी ‘आतंकी संगठन’ करार दिया है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में वह लश्कर का मुखौटा संगठन है। हमले का मास्टरमाइंड सरगना शेख सज्जाद गुल बताया गया है और वह पाकिस्तान में मौजूद है, लिहाजा साफ है कि लश्कर आज भी कश्मीर में आतंकवाद मचा रहा है।
एक सहज और आसान सवाल है कि ‘स्थानीय जयचंदों’ को कुचला क्यों नहीं जा सकता है? बेशक आतंकवाद से जुड़े आंकड़े बहुत कम हुए हैं, लेकिन तीन सालों के दौरान 22 लक्षित हत्याएं फिर भी की गई हैं। इनमें 16 बाहरी, गैर-कश्मीरी, एक कश्मीरी पंडित और 3 अन्य स्थानीय लोगों को मारा गया है। इतने परिवार बर्बाद हुए। जिंदगियां बिखर कर रह गईं। 2024 में अभी तक 12 लोग लक्षित आतंकवाद के शिकार हो चुके हैं। यह आतंकवाद की ऐसी रणनीति है कि हमले के निशाने तय कर लिए जाते हैं, बाकायदा रेकी की जाती है और फिर एक दिन उन निशानों (या लक्ष्यों) पर हमला बोल दिया जाता है।
ये सभी मृतक एक सुरंग के निर्माण-कार्य में लगे थे। एकमात्र डॉ. शाहनवाज डार को मजदूरों, कर्मियों की सेहत की देखभाल को कुछ ही दिन पहले नियुक्त किया गया था। लक्षित आतंकवाद ने किसी को भी नहीं छोड़ा। जिनकी हत्या कर दी गई, उनमें जम्मू-कश्मीर के अलावा पंजाब और बिहार आदि राज्यों के नागरिक भी थे। ऐसा भी लगता है कि बुनियादी ढांचे के निर्माण और विस्तार भी आतंकियों की आंखों में चुभते हैं, लिहाजा वे भी निशाने पर हैं।
गांदरबल हमले को भी जोड़ लें, तब भी इस साल कश्मीर की 48 घटनाओं में कुल 102 लोग मारे जा चुके हैं। इनमें 52 आतंकी भी शामिल हैं। लक्षित आतंकवाद कोई नई प्रवृत्ति नहीं है। बहरहाल इस आतंकी हमले ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष एवं कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारूक अब्दुल्ला के अंतर्मन को इस कदर झकझोरा है कि वह पाकिस्तान पर ही उबल पड़े और बार-बार कहा कि कश्मीर कभी भी पाकिस्तान नहीं बनेगा, नहीं बनेगा। यदि पाकिस्तान हमसे दोस्ताना रिश्ते चाहता है, तो यह दरिंदगी बंद करनी पड़ेगी। फारूक को अभी तक ‘पाकपरस्त मानसिकता’ का राजनेता माना जाता रहा है।
अब वह बदले नजर आ रहे हैं, तो शायद इसलिए कि संघशासित क्षेत्र में सरकार उनकी पार्टी की है और उनका बेटा मुख्यमंत्री है। बहरहाल इससे न तो पाकिस्तान बदलेगा और न ही लक्षित आतंकवाद नेस्तनाबूद होगा। अलबत्ता आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई पुख्ता और निरंतर हो सकती है। यह अच्छा है कि सरकार आतंकवाद से प्रभावित परिवारों के प्रति बेहद संवेदनशील है, लेकिन सभी मुआवजे, नौकरी, पैसा अपर्याप्त हैं, क्योंकि परिवार किसी के चले जाने के बाद बर्बाद हो जाता है।