राजनीति प्यार है, जंग है, धर्म है, खेल है, यह तो पता नहीं लेकिन इन सब में एक चीज कॉमन है वह है जीत, जहां भी जीतना है वहां उसके लिए सब कुछ जायज माना जाता है. वैसे तो हर चीज का नियम होता है लेकिन राजनीति का कोई भी नियम नहीं है उसकी केवल मंजिल है, मंजिल पर पहुंचने के लिए सारे रास्ते जायज माने जाते हैं..!
चुनाव का खेल शुरू हो और घात-प्रतिघात व संघात देखने को ना मिले यह तो मुमकिन ही नहीं है। गुजरात के रास्ते दिल्ली की सत्ता तक पहुंची बीजेपी की यात्रा में गुजरात का पड़ाव बहुत अहम है। मोदी और शाह गुजरात में चूके तो फिर देश में कोई नैतिक अधिकार कैसे रह पाएगा? 27 साल के शासन की एंटी इनकम्बेंसी से त्रस्त बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे के सहारे ही गुजरात में नैया पार लगाने की कोशिश कर रही है। गुजरात में मोदी ही बीजेपी का चेहरा हैं और मोदी ही दांव हैं।
आम आदमी पार्टी की जोरदार उपस्थिति और आक्रामक प्रचार के कारण त्रिकोणीय हुए गुजरात चुनाव में पॉलिटिकल मोनोटोनी टूट गई है। आम आदमी पार्टी ने इसुदान गढ़वी के रूप में अपना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया है। बीजेपी में तो वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल हैं हीं। कांग्रेस में मुख्यमंत्री का कोई चेहरा नहीं घोषित हुआ है। बीजेपी में भी अगली सरकार बनने पर मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा यह अभी नहीं कहा जा सकता। अभी तो मोदी के चेहरे पर ही चुनाव हो रहे हैं। चुनाव बाद बीजेपी मुख्यमंत्री का अपना मोहरा सामने लाएगी।
वैसे तो हिमाचल प्रदेश में भी चुनाव हो रहे हैं लेकिन गुजरात के चुनाव बीजेपी के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। देश में मोदी बीजेपी के लोकसभा के लिए सबसे बड़ा दांव हैं। विधानसभा के चुनाव में मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने की रणनीति अब तक बीजेपी को लाभ पहुंचाती रही है। इसी साल हुए पांच राज्यों के चुनाव में मोदी के चेहरे पर ही एंटी इनकंबेंसी के बावजूद बीजेपी फिर से अपनी सरकार बनाने में सफल हुई है। गुजरात में मुख्यमंत्री सहित पूरी कैबिनेट को बदलने का काम बीजेपी ने एंटी इनकम्बेंसी के डर से ही किया था।
गुजरात में बीजेपी पसंदीदा पार्टी बनी हुई है लेकिन इस बार चुनाव त्रिकोणीय हो गए हैं। आम आदमी पार्टी ने सत्ता विरोधी मतों में सेंध लगाई है। कांग्रेस को भी कमजोर नहीं आँका जा सकता। चुनाव की घोषणा से पहले मोरबी में हुई त्रासदी का चुनाव पर क्या असर होगा, इसका आकलन अभी नहीं किया जा सकता। यद्यपि नरेंद्र मोदी वहां पहुंचकर घायलों से मुलाकात कर संवेदना भरा संदेश पहुंचा चुके हैं। इस घटना को राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में शायद ही बड़ा मुद्दा बना पाएंगे।
आम आदमी पार्टी गुजरात चुनाव में कितना पॉलिटिकल लाभ हासिल करेगी, यह तो सुनिश्चित नहीं है लेकिन इतना जरूर है कि इस पार्टी ने गुजरात में चुनाव को रोचक बना दिया है। प्रोपेगेंडा के मामले में आप किसी से भी पीछे नहीं दिखाई पड़ रही है। जातिगत समीकरण में भी आम आदमी पार्टी ने चुपचाप अपनी पकड़ बना ली है। यदि सत्ताविरोधी मतों का कांग्रेस और आप में विभाजन होता है, तो निश्चित रूप से इसका लाभ बीजेपी को ही मिल सकता है।
अब तक जो चुनावी सर्वे आ रहे हैं वह बीजेपी के पक्ष में दिखाई पड़ रहे हैं लेकिन इतना तो स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि आम आदमी पार्टी एक प्रभावी वोट शेयर गुजरात में हासिल करने की ओर बढ़ रही है। अगर उसे ऐसा करने में सफलता मिलती है तो बीजेपी के लिए आप भविष्य की चुनौती बन सकती है। सूरत के स्थानीय चुनाव में आप ने कांग्रेस के जनाधार को हासिल कर प्रभावी सीटें जीतने में सफलता पाई थी। हालांकि स्थानीय निकाय के चुनाव के परिणाम को पूरे राज्य में आकलन के लिए आधार मानना राजनीतिक नासमझी के अलावा कुछ नहीं होगा, यह एक संभावना का संकेत मात्र माना जा सकता है।
गुजरात को हिंदुत्व की राजनीति की प्रयोगशाला कहा जाता है। गुजरात से शुरू हुआ प्रयोग आज देश में काबिज हो गया है। नरेंद्र मोदी और बीजेपी कामकाज में हिंदुत्व की राजनीति को उभारने की कोशिश नहीं करते हों लेकिन दबे पाँव सभी तरह के संदेश हिंदुत्व की संतुष्टि के ही दिए जाते हैं।
नरेंद्र मोदी द्वारा महाकाल लोक के लोकार्पण के साथ केदारनाथ धाम, बद्रीनाथ धाम काशी विश्वनाथ कॉरिडोर सहित हिंदुओं के पवित्र धामों पर दर्शन पूजन और आयोजनों का शुभारंभ कर हिंदुत्व की मानसिकता को संतुष्टि और गर्व अनुभव करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। दीपावली पर अयोध्या में राम मंदिर में दर्शन, रामलीला में भगवान राम का पूजन और दीपोत्सव के दिव्य-भव्य समारोह को देखकर भारत के हिंदुत्ववादी मतदाता अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता को भविष्य के लिए मजबूती देने का संकल्प दोहराने लगता है।
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मुफ्तखोरी की योजनाओं की घोषणाओं के साथ भाजपा के लिए सिर दर्द पैदा कर रही हैं लेकिन गुजराती अस्मिता और गुजरात की मानसिकता बीजेपी के लिए सकारात्मक मानी जा सकती है। गुजरात में तीन घोड़ों की दौड़ हो रही है। तीन घोड़ों की दौड़ हमेशा रोमांचक होती है। वैसे ही गुजरात चुनाव में रोमांच की कोई कमी नहीं रहेगी।
मोदी और शाह गुजरात के लिए कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मार्च महीने में यूपी के चुनाव परिणाम आने के तुरंत बाद नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद में रोड शो किया था। तब से लगाकर चुनाव घोषणा तक हर महीने दो तीन बार प्रधानमंत्री गुजरात पहुंचते रहे हैं।
गुजरात औद्योगिक राज्य है। वहां मुफ्तखोरी का माहौल आलोचना की दृष्टि से देखा जाता है। गुजराती पहचान पर बीजेपी का फोकस भी इन चुनावों में साफ देखा जा रहा है। चुनाव परिणाम भले ही बहुत अधिक बदलाव नहीं लायें लेकिन चुनाव के दौरान राजनीतिक उथल-पुथल के नजरिए से गुजरात के चुनाव जायकेदार हो सकते हैं। गुजरात का परिणाम बस गुजरात पर ही असर नहीं डालेगा बल्कि भारत के राजनीतिक भविष्य की बुनियाद भी निर्धारित करेगा।