वैसे केंद्र सरकार ने इस निर्णय को लेने में जो देरी की उससे दूरसंचार कंपनियों और इस क्षेत्र को बहुत नुकसान पहुंच चुका है..!
प्रतिदिन विचार-राकेश दुबे
07 /02 /2023
और केंद्र सरकार ने डूबते वोडाफोन आइडिया में 33 प्रतिशत हिस्सेदारी लेने का निर्णय ले ही लिया है। इसके साथ ही वह वित्तीय संकट से जूझ रही इस दूरसंचार कंपनी में 33 प्रतिशत की हिस्सेदार बन जाएगी। प्रथमदृष्टया यह सकारात्मक घटना लगती है। वैसे केंद्र सरकार ने इस निर्णय को लेने में जो देरी की उससे दूरसंचार कंपनियों और इस क्षेत्र को बहुत नुकसान पहुंच चुका है।
कहने को ब्याज शेयर में बदले गये हैं, ब्याज को शेयर में बदलने के पीछे शायद विचार यही है कि दूरसंचार उद्योग को दो कंपनियों के बीच रह जाने से बचाया जा सके। अगर ऐसा हुआ तो उपभोक्ताओं के लिए अच्छे परिणाम नहीं होते , परंतु सरकार के निर्णय में देरी के कारण दूरसंचार उद्योग के मन में दो कंपनियों के दबदबे का डर घर कर गया। ऐसा मोटे तौर पर इसलिए हुआ कि बीते कुछ महीनों में इस दूरसंचार कंपनी के ग्राहक काफी बड़ी तादाद में दूसरी कंपनियों के पास चले गए।
वैसे यह कंपनी 5 जी सेवाओं की दिशा में भी कोई प्रगति नहीं कर सकी है जबकि अन्य कंपनियां तेजी से 5 जी में प्रवेश कर रही हैं। इसके अलावा इसके नेटवर्क में निवेश भी नाममात्र का ही रहा है और उसकी नकदी की स्थिति भी खराब हुई है और कंपनी अपने वेंडर्स का भुगतान करने में भी अक्षम रही है।प्रवर्तक भी अपनी बात पर अड़े रहे और उन्होंने नया निवेश करने से इनकार कर दिया।
फंड जुटाने की कंपनी की कोशिशें भी निष्फल रहीं, क्योंकि सरकार द्वारा हिस्सेदारी नहीं लेने के कारण बाहरी निवेशक भी कंपनी पर भरोसा नहीं कर पा रहे थे। अत्यधिक उलझन की स्थिति तब बन गई जब दूरसंचार विभाग ने यह शर्त रख दी कि वोडाफोन आइडिया के प्रवर्तकों को पहले रकम जुटानी होगी उसके बाद ही 16,133 करोड़ रुपये मूल्य के ब्याज को सरकारी हिस्सेदारी में बदला जाएगा।
जब प्रवर्तकों ने फंड डालने से मना कर दिया तो सरकार ने भी हिस्सेदारी लेने का अपना निर्णय स्थगित कर दिया था । इसके परिणामस्वरूप बाहरी फंडिंग अत्यधिक चुनौतीपूर्ण हो गई। बीते शुक्रवार को शेयर बाजार की एक अधिसूचना में वोडाफोन आइडिया ने कहा कि केंद्र सरकार ने एक आदेश पारित करके कंपनी से कहा है कि वह स्पेक्ट्रम से संबंधित ब्याज के विशुद्ध वर्तमान मूल्य तथा समायोजित सकल राजस्व को सरकार के लिए हिस्सेदारी में बदले।
कंपनी को नया निर्देश दिया गया कि वह 10 रुपये प्रति शेयर के मूल्य से शेयर जारी करे। संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि ब्याज को शेयर में बदलने का निर्णय वोडाफोन आइडिया के संयुक्त साझेदारों में से एक बिड़ला द्वारा यह स्वीकार करने के बाद लिया गया कि कंपनी में नई पूंजी डाली जाएगी। साथ ही किसी प्रवर्तक द्वारा इस पूंजी की मात्रा या निवेश के समय के बारे में किसी जानकारी के बिना वोडाफोन आइडिया के भविष्य के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल था और है।
अभी भी बाहरी निवेशकों से फंड जुटाना बड़ी चुनौती बनी रहेगी, बशर्ते कि प्रवर्तक नुकसान की भरपाई के लिए तेजी से कदम उठाएं। ब्रिटेन की कंपनी वोडाफोन पीएलसी लागत कटौती में लगी है और वह अपने कारोबार को युक्तिसंगत बनाने का प्रयास कर रही है, लेकिन वह भारतीय दूरसंचार कारोबार में निवेश करेगी या नहीं यह देखना होगा। बिड़ला परिवार ने भी अभी निवेश की योजना के बारे में साफ तौर पर कुछ नहीं कहा है। ध्यान रहे 2021 के अंत में सरकार द्वारा शेयर परिवर्तन की पेशकश के बाद हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।
केंद्र सरकार यह ताजा निर्णय केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा दूरसंचार कंपनियों के स्पेक्ट्रम और एजीआर बकाये को सरकारी हिस्सेदारी में बदलने को मंजूरी देने के 16 महीने बाद आया है। हालांकि यह पेशकश सभी कंपनियों को की गई थी लेकिन वोडाफोन आइडिया के बोर्ड ने 2022 के आरंभ में इसका चयन किया। सरकार ने इन तमाम महीनों में कोई कदम नहीं उठाया।
यूँ तो शुरुआत में तो इसकी कोई वजह भी नहीं बताई गई और बाद में इस पेशकश को सशर्त बनाते हुए कहा गया कि पहले प्रवर्तक निवेश करें। निवेश के सतर्क माहौल को देखते हुए इस दूरसंचार कंपनी का उबरना कठिन चुनौती है,क्योंकि सितंबर 2022 तक इस पर 2.2 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था। इस मामले में समय कीमती रहा है और सरकार को समय बचाना चाहिए था।ख़ैर, डूबते को मिला यह सहारा क्या रंग दिखता है, प्रतीक्षा रहेगी।