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विदेशी वकालत के पेंचोंख़म जल्दी ही भारत में दिखेंगे 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 27 Jul

सार

अब यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद देश के अधिवक्ताओं/वकीलों की प्रैक्टिस में बहुत कुछ बदलने वाला है..!

janmat

विस्तार

जल्दी ही देश के न्यायालयों  में विदेशी अधिवक्ता/वकील पैरवी करते तो नहीं दिखेंगे, परंतु उनकी सलाह के नज़ारे नज़र आएँगे।  सर्वोच्च न्यायालय की अनुमति मिलने के बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया/बीसीआई ने इस बारे में नियमन तैयार करते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि विदेशी वकीलों और कानून फर्मों को भारत में किस तरह का काम करना है, किस तरह से काम करना हैं और किस तरह का काम नहीं। अब यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद देश के अधिवक्ताओं/वकीलों की प्रैक्टिस में बहुत कुछ बदलने वाला है। 

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के नए नियम के मुताबिक, विदेशी वकील और कानून फर्मों को भारत में प्रैक्टिस/अभ्यास करने के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के साथ पंजीकरण कराने की अनुमति दी गई है। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि इसके तहत वो सिर्फ अपने देश के कानून का अभ्यास करने के हकदार होंगे। 

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने विदेशी वकीलों की प्रैक्टिस/अभ्यास के लिए कुछ खास नियम बनाए हैं, बार काउंसिल ऑफ इंडिया यानी बीसीआई ने विदेशी वकीलों और कानूनी फर्म को भारत में प्रैक्टिस करने की इजाजत दे दी है। हालांकि अपने फैसले में उसने साफ कर दिया है कि कोई भी विदेशी वकील कोर्ट में पेश नहीं हो सकते हैं, बल्कि वे केवल कॉर्पोरेट लेनदेन से जुड़े हुए कामकाज करेंगे या फिर विदेशी कानून पर अपने मुवक्किल/क्लाइंट को सलाह देने का काम कर सकते हैं।

बीती 13 मार्च 2023 को, बार काउंसिल ऑफ इंडिया/बीसीआई ने एक आधिकारिक सूचना दी, कि अब विदेशी वकील और लॉ फर्म भारत में काम कर सकेंगे। इसके लिए विदेशी विधि पंजीकरण और नियमन-2022 के लिए नियम बनाया गया है। बीसीआई ने साफ कहा है कि कुछ पाबंदियों के साथ इस फैसले से सुनिश्चित किया जाएगा कि यह भारत और विदेशी वकीलों के हित में हो। बता दें कि बीसीआई अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है, जो भारत में कानूनी प्रैक्टिस और कानूनी शिक्षा की देखरेख करती है।

इस फैसले के बाद बीसीआई ने तर्क दिया है कि उसके कदम से देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर होने वाली चिंताएं खत्म हो जाएंगी। इससे भारत अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक गतिविधियों के बीच मध्यस्थता का केंद्र बन जाएगा। ये नियम उन विदेशी लॉ फर्मों को कानूनी स्पष्टता प्रदान करेगा, जो वर्तमान में भारत में बहुत सीमित तरीके से काम करती हैं। 

वैसे बार काउंसिल ऑफ इंडिया देश में विदेशी वकीलों की एंट्री के किसी भी प्रस्ताव का विरोध करता आया है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी बात पर सहमति जताई थी कि मौजूदा कानून के तहत भारत में विदेशी वकीलों को प्रैक्टिस करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। हालांकि, अब नए फैसले से देश में विदेशी अधिवक्ताओं/वकीलों की एंट्री में ज्यादा पेशेवराना रवैया देखने को मिलेगा। विदेशी वकीलों के लिए सीमित दायरे में भी बड़ा मार्केट उपलब्ध होगा, क्योंकि देश में बड़ी संख्या में विदेशी कंपनियां काम कर रही हैं। वहीं, आगे भी कई कंपनियां निवेश करने वाली हैं।

नए नियम के अनुसार, विदेशी वकील और कानून फर्मों को भारत में अभ्यास करने के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया/बीसीआई के साथ पंजीकरण कराने की अनुमति दी गई है। जिसके तहत वो अपने देश के कानून का अभ्यास करने के हकदार होंगे। इसलिए वे भारतीय कानून का अभ्यास नहीं कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, विदेशी अधिवक्ताओं/वकीलों या विदेशी लॉ फर्मों को किसी भी अदालत, न्यायाधिकरण या किसी भी वैधानिक या नियामक प्राधिकरणों के समक्ष पेश होने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

नए नियम के अनुसार, विदेशी अधिवक्ता/वकील और लॉ फर्म केवल बिना मुकदमें वाले मामलों में ही प्रैक्टिस/अभ्यास कर पाएंगे। देश में अभ्यास/प्रैक्टिस करने के लिए विदेशी वकील या फर्मों को बीसीआई के साथ पंजीकरण कराना होगा। जिसके दृष्टिगत विदेशी वकील के लिए रजिस्ट्रेशन चार्ज 25,000 डॉलर है जबकि कानूनी फर्म के लिए 50,000 डॉलर है। ये रजिस्ट्रेशन केवल पांच साल के लिए वैध होगा। वहीं, विदेशी वकील या लॉ फर्म को 6 महीने के भीतर फॉर्म-बी में नवीनीकरण के लिए आवेदन करने की जरूरत है। इसके अलावा, विदेशी वकीलों को संयुक्त उद्यम, विलय और अधिग्रहण, बौद्धिक संपदा से संबंधित मामले, अनुबंध के मसौदे वगैरह मामलों पर प्रैक्टिस करने की इजाजत होगी। वहीं, एक या एक से ज्यादा विदेशी वकीलों या भारत में पंजीकृत विदेशी कानूनी फर्मों के साथ साझेदारी भी कर सकते हैं।

सर्वप्रथम विदेशी कानून फर्मों के भारतीय बाजार में प्रवेश करने का मुद्दा वर्ष 2009 में बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष पेश किया गया था। तब 'लॉयर्स कलेक्टिव बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने अनिवार्य रूप से कहा था कि केवल भारतीय कानून की डिग्री रखने वाले भारतीय ही भारत में कानून का अभ्यास कर सकते हैं।

उच्च न्यायालय में अधिवक्ता अधिनियम की धारा 29 के अनुसार, केवल बीसीआई के साथ नामांकित अधिवक्ता/वकील ही कानून का अभ्यास कर सकते हैं। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि 'अभ्यास' में वादी और गैर-वादी दोनों तरह की प्रैक्टिस/अभ्यास शामिल होंगी। इसलिए विदेशी कंपनियां न तो भारत में अपने ग्राहकों को सलाह दे सकती थीं और न ही अदालत में पेश हो सकती थीं।

वहीं, साल 2012 में 'एके बालाजी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' मामले में यह मुद्दा मद्रास हाईकोर्ट के सामने आया था। वर्ष 2015 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में विदेशी कानून फर्मों की प्रैक्टिस को थोड़ी मान्यता दी थी। 'एके बालाजी बनाम भारत सरकार' मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि विदेशी कंपनियां मुकदमेबाजी या गैर-मुकदमेबाजी पक्ष पर तब तक अभ्यास नहीं कर सकती हैं जब तक कि वे अधिवक्ता अधिनियम और बीसीसीआई नियमों को पूरा नहीं करती हैं।

वहीं, नए फैसले में ये कहा गया कि विदेशी वकील भारतीय क्लाइंट को केवल अस्थायी आधार पर ही यानी ‘फ्लाई इन एंड फ्लाई आउट’ मोड पर सलाह दे सकते हैं। फैसले में यह भी कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक आर्बिट्रेशन से संबंधित अनुबंध से जुड़े विवादों के संबंध में आर्बिट्रेशन की कार्यवाही करने के लिए विदेशी वकीलों को भारत आने से कोई रोक-टोक नहीं होगी।

इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन मामलों के लिए विदेशी वकीलों के भारत आने पर कोई ऐतराज नहीं है। बस शर्त यही है कि भारतीय कानूनी कोड के नियम उन पर भी लागू होंगे। इससे स्पष्ट हो जाता है कि सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता अधिनियम 1961 (एडवोकेट एक्ट 1961) के प्रावधानों में भी बदलाव किया है, जिसके तहत अंतरराष्ट्रीय कारोबारी मामलों में विदेशी वकीलों पर पूरी तरह से पाबंदी थी।