दुष्काल की शुरुआत से अब तक दाल, मांस, रसोई गैस, चाय आदि वस्तुओं तथा विभिन्न सेवाओं की कीमत में२० से ४० प्रतिशत की बड़ी बढ़ोतरी हुई है|
दुष्काल का संकट देश की आर्थिक स्थिति पर गंबीर असर डाल रहा है | उत्पादन प्रक्रिया में गिरावट से रोजगार में कमी आयी और लोगों की आमदनी घटी है | अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम ९० डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गये हैं,जिसका असर भी भारत की आर्थिक स्थिति पर होगा | इस वृद्धि से भारत समेत कई देशों में मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ेगा| भारत में आमदनी अभी भी कोरोना दुष्काल से पहले के स्तर तक नहीं पहुंच सकी है|
कुछ पहले ही यूरोप, अमेरिका, चीन समेत अनेक जगहों पर ऊर्जा संकट की स्थिति भी पैदा हो चुकी है| इन कारकों के साथ मध्य-पूर्व तथा यूरोप में भू-राजनीतिक संकट गहराने से भी तेल की आपूर्ति को लेकर आशंकाएं पैदा हो गयी हैं| महत्वपूर्ण तेल उत्पादक देश संयुक्त अरब अमीरात पर यमन के हूथी विद्रोहियों के ड्रोन एवं मिसाइल हमलों के हवाले से माना जा रहा है कि उस क्षेत्र में अशांति व अस्थिरता की नयी स्थिति पैदा हो सकती है| इस सबका असर भारत पर होगा इसमें संदेह नहीं है |
भारत में भी हाल में पेट्रोलियम उत्पादन में गिरावट आयी है| इस दुष्काल के दौर में उत्पादन लागत बढ़ने से वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति का दबाव बना हुआ है| अगर हम तेल को छोड़ भी दें, तो बाकी चीजों को लेकर मुद्रास्फीति का दबाव वैश्विक स्तर पर अभी कुछ समय तक बना रहेगा, जब तक सब कुछ दुष्काल के पहले के स्तर पर सामान्य नहीं हो जाता |
यह अलग बात है कि कौन सा देश महामारी की रोकथाम के लिए लॉकडाउन कर रहा है या क्या उपाय कर रहा है, लेकिन कुल मिलाकर बाधाएं और पाबंदियां तो कमोबेश हैं ही| कोरोना को लेकर अभी भी बहुत निश्चिंत होकर कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है| इसके अतिरिक्त एक अन्य पहलू है, जिस पर कम बात की जा रही है|वह है दुनियाभर में आयात शुल्कों में बढ़ोतरी| विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत स्थापित शुल्क व्यवस्था का सुनहरा दौर बीत चुका है| इससे भी खर्च में बड़ी वृद्धि हुई है| हर देश अपनी अर्थव्यवस्था तथा अपने रोजगार को बचाने की कोशिश में है. यह स्थिति कुछ सालों तक बनी रह सकती है|
हम उत्पादन, आय और तेल के हिसाब ही देख रहे हैं| कुछ और पहलु भी है, जिन पर विचार जरूरी है | आधिकारिक आकलनों के मुताबिक, दुष्काल से पहले देश की औसत प्रति व्यक्ति आय लगभग ९४.६ हजार रुपये थी, जो चालू वित्त वर्ष में ९३.९ हजार रुपये के आसपास है| बीते दिसंबर में बेरोजगारी दर ७.९ प्रतिशत आंकी गयी थी और करीब ३.५ करोड़ लोग रोजगार की तलाश में थे. ऐसी स्थिति में आवश्यक वस्तुओं के दाम में वृद्धि लोगों के लिए बड़ी मुसीबत बनकर आयी है|
दुष्काल की शुरुआत से अब तक दाल, मांस, रसोई गैस, चाय आदि वस्तुओं तथा विभिन्न सेवाओं की कीमत में२० से ४० प्रतिशत की बड़ी बढ़ोतरी हुई है| पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें सौ रुपये प्रति लीटर के आसपास हैं| बीच-बीच में सब्जियों की कीमतें बढ़ती ही रहती हैं| खाने-पीने की चीजों तथा ईंधन की कीमतें समूचे बाजार को प्रभावित करती हैं क्योंकि इनकी खरीद में बहुत अधिक कटौती कर पाना संभव नहीं होता|
ऐसी स्थिति में मध्य और निम्न आय वर्ग तथा गरीब परिवारों को रहन-सहन पर अधिक खर्च करना पड़ रहा है| यदि औसत खुदरा मूल्यों की बात करें, तो इनमें करीब १० प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जबकि दुष्काल से पहले के साढ़े पांच सालों में यह आठ फीसदी रही थी| उस समय आमदनी और रोजगार में भी कमी का ऐसा संकट नहीं था|
ऐसे में जहां लोगों के सामने भोजन की मात्रा और गुणवत्ता से समझौता करना पड़ रहा है, वहीं उनकी बचत भी कम होती जा रही है| पारिवारिक बचत में कमी भी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए खराब खबर है| आय कम होने तथा महंगाई बढ़ने से लोग घरेलू जरूरत की अन्य वस्तुओं की खरीदारी में भी हिचक रहे हैं| इस वजह से अपेक्षित गति से मांग नहीं बढ़ पा रही है, जिससे अर्थव्यवस्था में सुधार की गति धीमी है|
संक्षेप में कहें, तो दुष्काल ने अर्थव्यवस्था को एक दुश्चक्र में डाल दिया है| कई विशेषज्ञ अधिक करों, बढ़ते वित्तीय घाटे, रिजर्व बैंक की आसान मौद्रिक नीति तथा आपूर्ति शृंखला की समस्याओं को मुद्रास्फीति के लिए जिम्मेदार मानते हैं| इन उपायों के न होने से भी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है , सरकार ने उद्योगों और कारोबारों को सहायता देने के साथ गरीब आबादी को मुफ्त राशन देने और कल्याण कार्यक्रमों का दायरा बढ़ाने जैसे उपाय किये हैं| उम्मीद की जा सकती है कि दुष्काल के साये के साथ-साथ सरकार महंगाई से भी राहत के रास्ते खोजेगी