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आरोप-प्रत्यारोप चलता रहा, करप्शन बढ़ता रहा

सार

राजनीतिक दलों के लिए एक-दूसरे को गलत साबित करने के लिए भ्रष्टाचार से बड़ा कोई मुद्दा नहीं होता। सरकार में रहने वाला दल विपक्ष की पूर्व और वर्तमान सरकारों को कटघरे में खड़ा करता है और विपक्षी दल के लिए तो सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के लिए किसी प्रमाण की भी जरूरत ही नहीं होती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से सिस्टम से भ्रष्टाचार और परिवारवाद के शुद्धिकरण का संकल्प व्यक्त किया है।

janmat

विस्तार

राजनीति में सरकार और विपक्ष की भाषा अलग होती है। विपक्ष के लिए आंदोलन एक क्रांति होता है तो सरकार के लिए उपद्रव। आंदोलन एक जैसा लेकिन विपक्ष और सरकार की भाषा अलग-अलग। ऐसी स्थिति भ्रष्टाचार के मामले में भी होती है। सरकार में जिसे प्रोसीजर कहा जाता है वहीं विपक्ष में भ्रष्टाचार का टूल माना जाता है। सरकार और विपक्ष के बीच करप्शन का आरोप-प्रत्यारोप चलता रहता है और करप्शन बढ़ता रहता है। 

करप्शन के जितने भी स्मृति चिह्न हैं उन पर कोई मतभिन्नता नहीं होती। राजनीति और सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार अब इस तरह से घुस गया है कि अब भ्रष्टाचार भी पॉलिटिकल गेम लगने लगा है। 

प्रधानमंत्री ने स्वाधीनता दिवस के अपने संबोधन में भ्रष्टाचार को दीमक बताया है। देश के विकास के लिए खतरा बन गए भ्रष्टाचार के खतरनाक खेल में ही सारा तंत्र लगा हुआ है। हर शख्स मौके की तलाश में रहता है। मौका मिलने भर की देर है। देश समाज और राष्ट्र को भूलकर स्वहित की पूर्ति में कोई देर नहीं होती। 

मध्यप्रदेश में इस साल मानसून की बारिश अच्छी हो रही है। इस बारिश में करप्शन की भी कई परतें उधड़ रही हैं। बांध दरक रहे हैं। पुल टूट रहे हैं। सड़कें गड्ढों में तब्दील हो रही हैं। इस सब के बीच राजनीतिक बयानों की भी बाढ़ आई हुई है।

धार जिले के कारम बांध में दरार क्या आई, आस-पास के गांव के लोगों की जान आफत में पड़ गई। आनन-फानन में सरकार ने बांध को फोड़ा और पानी को बाहर निकाला ताकि गांववासियों को बचाया जा सके। यह तो राहत की बात है कि कोई बड़ी घटना होने के पहले ही सरकार ने स्थिति को संभाल लिया। 

सरकार गंभीर स्थिति को संभालने का श्रेय ले रही है तो विपक्ष बांध टूटने की सरकार के भ्रष्टाचार का डैम टूटने से तुलना कर रहा है। लगभग 300 करोड़ की लागत से बना यह डेम पहली बार ही भरा गया है। पहली बार में ही यह बांध  दरक गया। किसी भी डैम के बनने की कहानी बहुत लंबी होती है। विचार के बाद परिकल्पना, लेआउट, डिजाइनिंग सेंक्शन, एजेंसी चयन, कंस्ट्रक्शन, मानिटरिंग और वर्षों की मेहनत के बाद कोई बाँध बनता है। 

बांध लोगों की अपेक्षाओं,आकांक्षाओं, आशाओं और विश्वास का प्रतीक होते हैं। जब कभी ये टूटते हैं तब केवल बांध ही नहीं टूटते लोगों का भरोसा टूटता है। अपेक्षा, आकांक्षा और आशा पानी के बहाव में बह जाती हैं। कारम बाँध में भी ऐसा ही हुआ है। अब यह पता चल रहा है कि बांध का निर्माण करने वाली एजेंसी का नाम ई-टेंडर घोटाले में शामिल रहा है। यह गंभीर सवाल है जो एजेंसी ई-टेंडर घोटाले में शामिल है, जिसकी जांच भी चल रही है, उसकी बाँध निर्माण में भागीदारी कैसे हो सकती है?

इस बांध की निर्माण एजेंसी के साथ निगरानी के लिए जो पूरा तंत्र था, उसकी भूमिका भी सवालों के घेरे में है। राज्य सरकार बांध टूटने की घटना की उच्च स्तर पर जांच करा रही है। किसी भी घटना के बाद जांच की कार्यवाही अब विश्वसनीय नहीं रह गई है। पहले भी कितनी घटनाएं हुई हैं और उनमें बड़ी-बड़ी जांच भी हुई हैं लेकिन न तो कोई कारगर निष्कर्ष निकला है और न ही कोई दंडित होता दिखाई पड़ा है। 

मंडीदीप के पास राष्ट्रीय राजमार्ग पर बना पुल पिछले दिनों ढह गया था। रायसेन जिले के बेगमगंज के पास बीना नदी का पुल भरभरा कर टूट गया है। इस पुल का तो अभी लोकार्पण भी नहीं हुआ था। ऐसी न मालूम कितनी घटनाएं राज्य भर में हुई हैं। ऐसी घटना हो जहां किसी प्रकार के पॉजिटिव जनसंदेश देने की संभावना हो और राजनीतिक दल सक्रिय न हों, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। 

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ कारम बांध प्रभावित क्षेत्र का दौरा करने गए। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सरकार के भ्रष्टाचार का डैम फूटा है। यह वही कमलनाथ हैं जिनके मुख्यमंत्री रहते हुए उनके गृहनगर छिंदवाड़ा में सिंचाई कॉम्प्लेक्स परियोजना के निर्माण में ₹500 करोड़ का घोटाला हुआ था। इसकी जांच आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा की जा रही है। 

इस सिंचाई परियोजना की स्वीकृति कमलनाथ सरकार में दी गई थी। परियोजना का काम शुरू भी नहीं हुआ था कि संबंधित एजेंसी को करोड़ों रुपए का एडवांस भुगतान कर घोटाले को अंजाम दिया गया। परियोजना में कितनी कमीशनखोरी हुई है? कितनी राशि ठेकेदारों द्वारा सिस्टम में बांटी गई है? इसको लेकर ना मालूम कितनी खबरें प्रकाशित हो चुकी हैं लेकिन किसी भी स्तर पर कोई असर नहीं हुआ है। जनता का पैसा लुटता रहता है। 

राजनेताओं के लिए ऐसी घटनाएं जनादेश और धनादेश बढ़ाने का माध्यम बनने से अधिक कुछ नहीं होती हैं। पूरा सरकारी सिस्टम करप्ट पॉजिटिव एनर्जी क्रिएट करता है। सिस्टम का शुद्धिकरण अभियान नई अशुद्धियों को जन्म देता है। नदियों के शुद्धिकरण के लिए पूरे देश में कितने अभियान चलाए गए हैं, चाहे गंगा शुद्धिकरण अभियान हो या क्षिप्रा का। महाकाल की नगरी में क्षिप्रा नदी के आज क्या हालात हैं? शुद्धिकरण के नाम पर जितनी भी राशि खर्च की गई वह क्षिप्रा के जल में समाहित हो गई या शुद्धिकरण के नाम पर सिस्टम द्वारा लील ली गई। 

सरकारी निर्माण और गुणवत्ता महज एक संयोग हो सकता है। सामान्यता ऐसा हो ही नहीं सकता। सरकारी एजेंसी निर्माण करा रही है, यह सुनकर ही निर्माण कार्य की गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। ऐसा कहा जाता है अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा लेकिन अभी तो पानी के नाम पर भ्रष्टाचार का युद्ध हो रहा है। वॉटर रिसोर्सेज डिपार्टमेंट, पॉलीटिकल रिसोर्सेस डिपार्टमेंट जैसेा बन गया है। इस विभाग में अब तक हुए घोटालों का रिकॉर्ड अगर तलाशा जाए तो कई चेहरे बेनकाब हो जाएंगे। 

करप्शन की गाली आज आशीर्वाद का काम करने लगी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ घड़ियाली आंसू बहाते कई देखे जा सकते हैं लेकिन सच यह है कि भ्रष्टाचार की महामारी, कोरोना से भी भयानक रूप ले चुकी है। किसी कवि ने कहा है-

बस अब लगे भ्रष्टाचार,
ही सबका बाप है।
बढ़ाते रहो जी भरकर,
छोटा मोटा पाप है।
भले देश के लिए,
यह भयंकर सांप है।
पर नेताओं और अफसर का,
तो यह प्यारा जाप है।

मोदी पर भरोसा है। मोदी है तो मुमकिन है। भ्रष्टाचार को मिटाने का मोदी संकल्प भले विपक्षियों की नींद हराम कर रहा हो लेकिन पूरा देश अपना उज्जवल भविष्य देख रहा है।