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पावर की गति, बताती सियासी मानसिक स्थिति

सार

बिहार में सीएम नीतीश कुमार के स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति पर सियासी तूफान मचा हुआ है. नीतीश कुमार के एक्शन और भाषणों के वीडियो वायरल हो रहे हैं. जिससे उनकी मानसिक स्थिति पर सवाल खड़े हो रहें हैं..!!

janmat

विस्तार

    नीतीश कुमार पर राष्ट्रगान के अपमान का गंभीर आरोप एक वायरल वीडियो के आधार पर लगाया गया है. इस वीडियो में एक सरकारी कार्यक्रम में मुख्यमंत्री राष्ट्रगान के समय सावधान की स्थिति में खड़े होने की बजाय अपने पास खड़े एक अफसर को इशारे कर रहे हैं, अभिवादन स्वीकार कर रहे हैं. इस वायरल वीडियो में ऐसा ही दिखाई पड़ रहा है कि, नीतीश कुमार का ध्यान राष्ट्रगान की तरफ नहीं है. पिछले दिनों विधानसभा के दोनों सदनों के उनके कुछ भाषणों की क्लिप भी वायरल हो रही है, जिसमें वह अजीब ढंग से व्यवहार और बात करते हुए सुनाई पड़ रहे हैं. मीडिया में भी इस पर खूब सवाल खड़े किये जा रहे हैं. 

    बिहार में चुनाव इसी साल के अंत में होंगे. हर राजनीतिक दल अपनी चुनावी धार को मजबूत कर रहा है. नीतीश कुमार ऐसे राजनेता हैं, जो मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए भी गठबंधन बदल लेते हैं. दोनों गठबंधन में उन्हें मुख्यमंत्री स्वीकार किया जाता है. एनडीए और आरजेडी का महागठबंधन नीतीश कुमार को अपने साथ रखना चाहता है. महागठबंधन में तो सबसे बड़े नेता लालू यादव हैं और उन्होंने नीतीश कुमार को महागठबंधन में आने का बाकायदा न्यौता दिया था.

    जैसे-जैसे चुनाव करीब आता जा रहा है और अब यह स्पष्ट हो रहा है, कि नीतीश कुमार एनडीए के साथ ही चुनाव में रहेंगे तो आरजेडी को अपनी संभावना प्रभावित होती दिख रही है. नीतीश कुमार के होने से एनडीए और महागठबंधन के बीच, एनडीए की बढ़त दिखाई पड़ती है. शायद इसीलिए लालू परिवार इस रणनीति पर आगे बढ़ रहा है कि नीतीश कुमार को बीमार स्थापित कर दिया जाए. उन्हें मानसिक रूप से अस्वस्थ साबित कर दिया जाए. 

    राष्ट्रगान के अपमान का जो वीडियो वायरल हो रहा है वह निश्चित रूप से नीतीश कुमार के खिलाफ जाता है. नीतीश कुमार से राष्ट्रगान के प्रति ऐसे व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जा सकती. कुशल से कुशल चालक से भी दुर्घटना हो जाती है. यह वीडियो अगर सच है तो निश्चित रूप से यह नीतीश कुमार के साथ एक दुर्घटना ही कही जाएगी. जहां तक उनके कुछ भाषणों का सवाल है जिसमें वह पूर्व मुख्यमंत्री  राबड़ी देवी के साथ तर्क-वितर्क कर रहे हैं, यह तो बिहार में आम बात है. बिहार में कोई ऐसा नेता नहीं होगा जो सामान्य व्यवहार करता हुआ दिखाई पड़ता हो. 

    चारों तरफ अजब गजब सियासी विचार की शुरुआत बिहार से ही होती है. सियासत में सत्ताधारी नेता खासकर मुख्यमंत्री या मंत्री के पद पर बैठे हुए राजनेताओं की बीमारी और स्वास्थ्य मुद्दा बनते रहे हैं. किसी भी सियासी नेता पर मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने का न केवल आरोप लगाया जा सकता है, बल्कि इसे साबित भी किया जा सकता है. इसका कारण यह होता है कि, सियासत में सत्ता और विपक्ष का पावर ही मानसिक स्थिति का पैमाना होता है. विपक्ष में रहते हुए जो मानसिक स्थिति होती है, वह सत्ता मिलते ही एकदम से बदल जाती है.

    नीतीश कुमार ने जब एनडीए का साथ छोड़ा था और महागठबंधन के साथ जाकर अपनी सरकार बनाई थी, उस सरकार में तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री बनाया था. उप मुख्यमंत्री के रूप में और आज विपक्ष के नेता के रूप में उनकी मानसिक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर राजनीतिक पंडितों ने देखा है. 

    सियासत की सबसे बड़ी समस्या यही है कि, राजनीतिक मानसिक स्थिति पावर की गति के साथ बदलती है. सत्ता के आसमान पर जो मानसिक स्थिति होती है वह बिना पावर के जमीन पर हो ही नहीं सकती है. पावर और चुनाव की मानसिक स्थिति अलग-अलग होती है. जो राजनेता अपनी मानसिक स्थिति दोनों स्थितियों में सामान्य स्तर पर रखने की क्षमता विकसित कर लेता है, उसकी प्रतिष्ठा सबसे अलग होती है. राजनीति में स्वास्थ्य सबसे जरूरी है. अगर स्वास्थ्य नहीं होगा तो जन सेवा का कर्तव्य कैसे पूरा कर पाएगा.

    राजनीति तो समाज की मानसिक स्थिति को प्रभावित करती है. मुख्यमंत्री की ओर से जिस तरह के वक्तव्य आते हैं उससे ही उनकी मानसिक स्थितियों की कल्पना की जा सकती है. बंगाल की मुख्यमंत्री कहती है कि राज्य में दंगे-फसाद कराने वाले इतने लोग हैं कि उन्हें राज्य में ही रहना पड़ता है. इसलिए वह दिल्ली नहीं जा पाती हैं. कुछ मुख्यमंत्री तो अपनी राजनीति के लिए लोगों से ज्यादा बच्चा पैदा करने की अपील करते हैं.   

    पावर का नशा किसी की भी मानसिक स्थिति सामान्य नहीं रहने देता. नशा कोई भी हो मानसिक स्थिति पर वह असर करता है. आज सियासत से बड़ा नशा कुछ भी नहीं है. यही नशा समाज में मुफ्तखोरी को बढा रहा है. कर्महीनता विकसित कर रहा है. राजनीति में अपराधीकरण को प्रोत्साहित कर रहा है. करप्शन तो सियासी मानसिकता का प्रमुख कारक हो गया है.

    राज्य सरकारें कर्जों में डूबी हुई हैं फिर भी बेतहाशा खर्च सियासी मानसिक स्थिति ही कर सकती है.

    प्रशासनिक सिस्टम पढ़े लिखे, दक्ष लोगों का समूह होता है. उसे सियासी मानसिकता से निपटना आता है. अगर भारत में आयएएस और आईपीएस जैसे ऑल इंडिया सर्विसेज नहीं होती तो फिर सियासी मानसिक स्थिति तो देश को एकजुट भी नहीं रख पाती.

    कम से कम राष्ट्रगान के मामले पर राजनीति नहीं होना चाहिए. अगर कोई ऐसा दृश्य दिखाई भी पड़ जाए तो उसको भुलाना ही बुद्धिमानी है. उसको बार-बार दोहराना अपमान की घटना को ही दोहराने जैसा है. दोहराने से जो अपमान हो रहा है, उसके लिए तो दोहराने वाला भी जिम्मेदार है. 

    दोनों ही स्थितियों में राष्ट्रगान के सम्मान पर ही सवाल पैदा हो रहा है. यह सवाल राष्ट्रीय भावनाओं को आहत करता है, सियासी लाभ-हानि  के लिए राष्ट्रीय भावनाओं से खेलने की सियासी मानसिकता से बचना हर राजनीतिज्ञ का धर्म है. उम्र तो एक आंकड़ा है, सबकी बढ़ती ही जाएगी और अंत भी आएगा. यही प्रकृति है, नियति है और यही संस्कृति है.