अमिताभ बच्चन और गोविंदा की हिट फिल्म ‘बड़े मियां-छोटे मियां’ मध्यप्रदेश की राजनीति के रुपहले पर्दे पर चटकारे लेकर हिट हो रही है. एमपी कांग्रेस में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की ‘जोड़ी नंबर वन’ ने प्रत्याशियों की दूसरी सूची में दूसरे सारे नेताओं को हिट विकेट कर दिया है.
नेताओं के हकदारी वाले इलाकों में भी ‘जोड़ी नंबर वन’ ने अपने मोहरे चुनाव में उतार दिए हैं. ढीली कमान के चलते आलाकमान ‘बड़े मियां-छोटे मियां’ के सामने संगठन में कार्यकर्ताओं की आस्था की रक्षा नहीं कर सका है. कमलनाथ की 15 महीने की सरकार में गठित कैबिनेट में जैसे पात्रता को दरकिनार करते हुए इस जोड़ी ने एकतरफ़ा पसंद के कलाकारों को उतारा था. उसी तरह से प्रत्याशियों की चयन में भी ‘जोड़ी नंबर वन’ का एकतरफा जलवा दिखाई पड़ रहा है.
कांग्रेस में बगावत-विद्रोह और पार्टी छोड़ने का दौर जो पहली सूची के साथ चालू हुआ था वह दूसरी सूची के साथ कम होने की बजाय बढ़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है. नेताओं को गाली खाने और कपड़े फाड़ने की तकरार तो रियल नहीं बल्कि फिल्मी डायलॉग साबित हो गई लेकिन पीसीसी अध्यक्ष का कथन कार्यकर्ताओं ने पकड़ लिया है. चुनावी क्षेत्रों में यह प्रतियोगिता चल पड़ी है. हाथ से हाथ के ही दो-दो हाथ हर तरफ हो रहे हैं.
प्रत्याशियों की सूची के बाद नाराजगी और बयानबाजी तो स्वाभाविक प्रक्रिया है. एक अनार सौ बीमार की तर्ज पर प्रत्याशी तो एक ही चुना जाएगा. जो चयन में हार जाएंगे क्रंदन मचाना तो उनका हक है लेकिन अगर चयन में पारदर्शिता न हो, कोई मान्य मापदंड ना हो, नेताओं के बीच कोई सहमति न हो, पात्रता का ईमान न हो तो फिर पनपने वाला विद्रोह स्वाभाविक ना होकर पार्टी के लिए खतरनाक साबित हो जाता है.
कांग्रेस की प्रत्याशियों की सूची पर सबसे पहले तो यही कहा जाना चाहिए कि जब यही टिकट दिए जाने थे तो फिर इतनी देर क्यों लगाई गई? भोपाल में पीसी शर्मा का टिकट क्यों रोका गया था और क्यों दे दिया गया है? जो नाम पहले से चर्चा में आ गए थे कमोबेश सूचियों में भी उसी तरह के नाम दिखाई पड़ रहे हैं. चुनाव के छह महीने पहले टिकट देने की घोषणा क्यों की गई थी?
‘जोड़ी नंबर वन’ के अलावा प्रदेश कांग्रेस में सुरेश पचौरी, अरुण यादव, अजय सिंह, कांतिलाल भूरिया भी बड़े नेताओं में शुमार किए जाते हैं. टिकट वितरण में इन नेताओं के हकदारी वाले इलाकों में भी ‘जोड़ी नंबर वन’ ने अपने मोहरों को प्रत्याशी बनाने का काम किया है. नेताओं को कमजोर करने के लिए पार्टी को ही कमजोर करने की एप्रोच सामान्य समझ से बाहर है.
भोजपुर विधानसभा सीट से सुरेश पचौरी पहले चुनाव लड़ते रहे हैं. वहां से भले ही वह चुनाव जीते नहीं हो लेकिन कार्यकर्ताओं और समर्थकों में उनका आधार है. भोजपुर के प्रत्याशी चयन में उनको दरकिनार करते हुए ‘जोड़ी नंबर वन’ ने अपने प्रत्याशी को मैदान में उतारा है. मुरैना और ब्यावरा में भी सिटिंग एमएलए का टिकट काटे जाने के पीछे कोई तर्क समझ नहीं आ रहा है.
पहली सूची में घोषित तीन प्रत्याशी बदले गए हैं. प्रत्याशी बदलने से यह संदेश जाता है कि संगठन में प्रत्याशियों के चयन में कहीं ना कहीं तदर्थ सोच पर निर्णय लिया गया है. जो प्रत्याशी पहले घोषित कर दिए गए थे उन्हें बदलने के पीछे कोई तार्किक आधार पार्टी नहीं दे सकती है. जिनको टिकट दिए गए थे उनका टिकट दोबारा काटने से उनका जो सार्वजनिक अपमान हुआ है क्या इसे कोई बर्दाश्त कर पाएगा?
कपड़े फाड़ने का उद्गार शिवपुरी विधानसभा सीट पर वीरेंद्र रघुवंशी को टिकट नहीं देने का विरोध करने आए कार्यकर्ताओं के सामने आया था. दूसरी सूची के बाद भी वीरेंद्र रघुवंशी को तो टिकट नहीं दिया गया है. टिकट देने का वादा करके वीरेंद्र रघुवंशी को बीजेपी से कांग्रेस में शामिल किया गया था. उनके साथ कमिटमेंट भी किया गया था. कमिटमेंट पूरा नहीं करने का यह प्रमाण ‘जोड़ी नंबर वन’ की विश्वसनीयता तो नहीं बढ़ाएगा? राजनीति में जब विश्वसनीयता नहीं है तो फिर कोई भी पद हासिल कर लिया जाए, सम्मान हासिल करना संभव नहीं होता है.
सूत्रों पर भरोसा किया जाए तो पिछोर सीट पर कांग्रेस द्वारा जिस कार्यकर्ता को पहले टिकट दिया गया था वह सिंधिया खेमे के मंत्री महेंद्र सिसोदिया का करीबी रिश्तेदार है. अगर इस कारण टिकट बदला गया है तो इसका मतलब है कि पार्टी द्वारा जमीनी स्तर से कोई भी तथ्यात्मक पुष्टि पहले नहीं की गई थी. ‘जोड़ी नंबर वन’ द्वारा बार-बार यही कहा जा रहा था कि संगठन की स्थानीय इकाई से जो भी फीडबैक आएगा उसी को प्राथमिकता दी जाएगी. अगर फीडबैक लिया गया होता तो फिर पहले टिकट देना और फिर टिकट बदलने के हालात कैसे पैदा हुए?
कांग्रेस के प्रत्याशियों की सूचियां ही संकेत दे रही हैं कि हर सीट के लिए अलग-अलग मापदंड और प्रक्रिया को अपनाया गया है. सर्वे के नाम पर केवल एकतरफ़ा निजी पसंद को महत्व दिया गया है. पीसीसी अध्यक्ष की ओर से यह कहा जा रहा है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस का माहौल और उत्साह बहुत अच्छा है. माहौल का महल, रेत के महल से भी कमजोर होता है. कांग्रेस ने भले ही केवल तीन सीटों पर ही टिकट बदले हों लेकिन घोषित एक तिहाई सीटों पर कार्यकर्ताओं का आक्रोश बदलाव की जरूरत बता रहा है. अगर गलती तीन स्थानों पर हो सकती है तो बाकी स्थान पर भी गलती की संभावनाएं कार्यकर्ताओं के आक्रोश को बढ़ाने का काम करेगी.
बीजेपी की ओर से बचे हुए प्रत्याशियों की सूची आने में भी अब देर नहीं हो सकती है क्योंकि नामांकन की तारीख ही करीब आ पहुंची है. दोनों दलों की पूरी सूची आने के बाद ही जनादेश वाली फिल्म की पटकथा को अंतिम रूप दिया जा सकेगा.
कांग्रेस की ‘जोड़ी नंबर वन’ टिकट वितरण के मामले में तो हिट हो गई है. बाकी नेता सिसकियां ले रहे हैं. माहौल की खुशफहमी कहीं छह महीने पहले टिकट बाँट लेने की खुशफहमी जैसी गलत साबित न हो जाए. टिकट वितरण से पैदा हुए असंतोष को मैनेज करने के लिए विश्वसनीय नेताओं का भी कांग्रेस के सामने संकट है. कार्यकर्ताओं की सुनने वाला भरोसेमंद नेता उपलब्ध होना बहुत जरूरी है. पार्टी के प्रभारी महासचिव का यह दायित्व बनता है लेकिन कार्यकर्ता उन्हें ढूंढते ही रह जाएंगे. ‘जोड़ी नंबर वन’ भले ही टिकट वितरण में हिट हो लेकिन अगर पार्टी को ‘हिट’ नहीं करा पाए तो भविष्य में उनके हिस्से ‘हेट’ ही आएगा.