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जागिए, यह विषय आप से जुड़ा है 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 04 May

सार

नियम व कानून कुछ दवाओं के विज्ञापन पर रोक लगाता है और कुछ स्थितियों में दवाओं का प्रचार कैसे किया जाए, इसको नियंत्रित करता है। जिन रोगों के इलाज को लेकर विज्ञापन देने पर रोक है उनमें कैंसर, मधुमेह, बच्चा न होना, एड्स, मोटापा, समय पूर्व बुढ़ापा, अंधता इत्यादि हैं..!!

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विस्तार

वैसे तो ‘प्रतिदिन’ का यह विषय सीधे तौर पर लोगों के स्वास्थ्य और भलाई से जुड़ा है और अब तक न्यायालय में हुई सुनवाई और देश चली बहस से तमाम संबंधित पक्ष यानी दवा निर्माता, नियामक, सरकार और सबसे ऊपर, उपभोक्ता के लिए कई अहम सबक सीखने को हैं। केंद्र में है दवा एवं जादुई उपचार (एतराज योग्य विज्ञापन) कानून 1954, दवा एवं प्रसाधन कानून-1940 और तत्पश्चात 1945 में बनाए गए नियम। 

ये नियम व कानून कुछ दवाओं के विज्ञापन पर रोक लगाता है और कुछ स्थितियों में दवाओं का प्रचार कैसे किया जाए, इसको नियंत्रित करता है। जिन रोगों के इलाज को लेकर विज्ञापन देने पर रोक है उनमें कैंसर, मधुमेह, बच्चा न होना, एड्स, मोटापा, समय पूर्व बुढ़ापा, अंधता इत्यादि हैं। यह कानून विशेष तौर पर उन भ्रामक विज्ञापनों के लिए है जिनमें रोग को ठीक करने हेतु चमत्कारी इलाज या किसी दवा की प्रभावशीलता को लेकर झूठे अथवा बढ़ा-चढ़ाकर किए दावे हों। यह कानून केंद्र सरकार को इन प्रावधानों का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई करने की शक्ति प्रदान करता है। 

अब बात पतंजलि की जिसने  अपने अनेकानेक जड़ी-बूटी आधारित उत्पादों के बारे में दावा किया है कि इनसे रोग पूरी तरह ‘ठीक’ हो जाते हैं, इनमें डायबिटीज़, थायरॉयड समस्या और यहां तक कि कैंसर भी शामिल है। कोविड-19 महामारी के दौरान, इसने कोरोनिल नामक उत्पाद जारी किया और कोविड ‘ठीक’ करने का दावा किया। इस उत्पाद बाज़ार में लाने वाले समारोह में  तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन भी उपस्थित थे। जब इसकी प्रभावशीलता को लेकर सवाल उठे तो मार्किटिंग पैंतरे के तहत दावे को ‘उपचार’ से ‘प्रबंधन’ बताना शुरू कर दिया। अनेकानेक रोगों को ठीक करने का दावा करते अपने विज्ञापनों में पतंजलि संस्थान इलाज की आधुनिक मेडिकल व्यवस्था को निशाना बनाने लगा। यह कहकर कि उसके पास ठीक करने वाला कोई इलाज नहीं है। इसने न केवल स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को असहज किया बल्कि भारतीय मेडिकल संगठन को भी। इन्होंने ही  पतंजलि आयुर्वेद को दो दवा कानूनों के उल्लघंन करने के लिए अदालत में घसीटा, जहां से पतंजलि को चेतावनी मिली। और उसने अदालत की सरासर अवमानना करते हुए, अपने विज्ञापन जारी रखे।

दवाओं, उपायों और स्वास्थ्य से संबंधित विज्ञापन एक बड़ी समस्या है और इस काम में पतंजलि आयुर्वेद ही नहीं, अनेक संस्थान है। देश भर में अखबार और टेलीविज़न चैनल पर ऐसे विज्ञापनों और सामग्री की भरमार है। ऑनलाइन जैसे क यू-ट्यूब, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर तो बाढ़ आई हुई है और यह कानून का पूरी तरह उल्लंघन है।

जो बड़ी दवा कंपनियां भी सीधे ढंग से विज्ञापन नहीं देती हैं ले उन्होंने भी चोर रास्ते निकाल रखे हैं, जिसमें पैसे देकर बनवाई-चलवाई खबरें, मेडिकल सम्मेलनों को प्रायोजित करना और चिकित्सकों को अपनी दवाएं लिखने की एवज में उपहार देना इत्यादि शामिल है। 

यह स्थिति में इसलिए नहीं हैं कि कानून नाकाफी या नख-दंतहीन हैं। बल्कि इसलिए हैं क्योंकि सरकार द्वारा इनकी अनुपालना करवाने में ढीलढाल की जाती है। नियामक एवं नियंत्रण करने वाले संस्थानों ने मुंह फेरना तय कर रखा है। कानून भी पुराने पड़ चुके हैं और इनमें समय-समय पर सुधार नहीं किया गया। इनकी प्रासंगिकता को लेकर बनी अनेक कमेटियों ने इन्हें और अधिक कड़ा बनाने की जरूरत है।