मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जन्म उत्सव रामनवमी पर आह्लादित भारत, नैतिक शुद्ध और मर्यादित राजनीतिक जीवनधारा की तलाश कर रहा है. रामनवमी हम हर साल मनाते हैं. आजकल तो भगवान राम के प्रतीकों को राजनीतिक जीवन में सफलता का आधार माना जा रहा है. देश के अमृत काल के इस अवसर पर राजधर्म और विपक्ष धर्म में छिड़ा संघर्ष काली छाया के रूप में भविष्य को प्रकाशमान बनाने की कोशिश बताई जा रही है.
राजनीति झूठ का ढोल दिखाई और सुनाई पड़ रही है. राज धर्म और विपक्ष धर्म से मर्यादा और आदर्श तिरोहित क्यों होते दिखाई पड़ रहे हैं? प्रतीकों की राजनीति जन भावनाओं को कब तक शोषित करती रहेगी? भारतीय लोकतंत्र क्या किसी को भी इसका मर्यादा पुरुष बनने देगा? राजनीति क्या ऐसी हो गई है कि सच को झूठ और झूठ को सच करने के लिए आग्रह-दुराग्रह-सत्याग्रह की जरूरत है? आखिर देश के जनमानस के लिए आदर्श-मर्यादित राजनीति की नवमी क्यों एक गलतफहमी सी लगने लगी है?
किसी भी समाज का इससे बड़ा कोई दुर्भाग्य नहीं हो सकता कि वहां बुरा होना सफलता लाता हो और भला होना असफलता की गारंटी हो. समाज नकल करता है. राजनीति के पास ताकत होती है. चाहे यह सत्ता की राजनीति हो या विपक्ष की राजनीति. समाज राजनीति में सफलता की नकल करता है. जब समाज ऐसा देखता है कि राजनीति की ताकत बुरे आदमी को भी सफल बना देती है तो स्वयं की सफलता के लिए वह भी बुरे आचरण के लिए प्रेरित होता है.
भगवान राम अयोध्या के राजा बनने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम और मानव जीवन के लिए आदर्श नहीं बने. उनका पूरा जीवन अत्याचार और अनाचार को मिटाने और सेवा में व्यतीत हुआ. उनके जीवन का हर आचरण मर्यादा का प्रतीक है. पिता के आदेश पर राजतिलक का अवसर छोड़कर वन चले जाने वाले श्रीराम के आदर्श आज राजनीति को त्याग तपस्या और सच के लिए समर्पित क्यों नहीं बना पा रहे हैं?
यह कैसी राजनीति है कि झूठ के सहारे आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते हैं. पिछले एक पखवाड़े से संसद ठप पड़ी हुई है. लोकतंत्र के नायक काले कपड़ों में सच्चाई की लड़ाई लड़ने का दावा कर रहे हैं. राजनीति में अच्छा आदमी कैसे सरवाइव कर पाएगा जब राजनीतिक आरोपों के गोले उसे लहूलुहान कर देंगे? राजनीति में अपराध और भ्रष्टाचार आज आम बात मानी जाती है. भ्रष्टाचार की जांच करने वाली एजेंसियां राजनीतिक निशाने पर आ जाती हैं.
लोकतंत्र नैतिकता की मांग करता है. किसी भी देश में राजनीति जितनी स्वस्थ होगी, जीवन के सारे पहलू उतने ही स्वस्थ होंगे. राजनीति में अशुद्धता जीवन के हर पहलू को अशुद्ध करने के लिए जिम्मेदार होती है. इसे राजनीतिक अंधापन ही कहा जाएगा कि निहित स्वार्थ में सच्चाई से किनारा किया जाता है. आज देश और समाज को खंड खंड करने से ही राजनीति जिंदा है. चाहे धर्म संप्रदाय के नाम पर हो चाहे अमीरी गरीबी के नाम पर हो और चाहे सरकारी संसाधनों से बंदरबांट के नाम पर हो, चारों तरफ खंड-खंड बाँटकर राजनीति और राजनेता अपनी ताकत बनाए हुए हैं. राजनीति में नीति बिल्कुल दिखाई नहीं पड़ती, चारों तरफ चालबाजी धोखाधड़ी और बेईमानी ही दिखाई पड़ती है.
अच्छे और बुरे आदमी में इतना ही अंतर है कि बुरा आदमी केवल अपने स्वार्थ के बारे में सोचता है और अच्छा आदमी अपने स्वार्थ पर दूसरे के स्वार्थ को प्राथमिकता देता है. आज राजनीति व्यक्तियों का निहित स्वार्थ बन गई है. राजनीति को समाज का स्वार्थ बनने की जरूरत है. राजनीतिक व्यवस्था में सबसे बड़ी कमजोरी यह दिखाई पड़ती है कि अच्छे आदमी को हतोत्साहित किया जाता है और बुरे आदमी को समर्थन और सहयोग मिलता है. व्यवस्था में अच्छा आदमी हमेशा अपने आसपास अच्छा वातावरण और अच्छे व्यक्ति पैदा करता है. इसके विपरीत बुरा आदमी अपने आसपास हमेशा बुरे आदमी ही खड़ा करता है ताकि उसे अपने अच्छे होने का अनुभव हो सके. खोटा सिक्का जब बाजार में प्रचलन में आता है तब वह असली सिक्के को बाहर कर देता है. भारतीय राजनीति में आज इसी तरह का माहौल बना हुआ है. राजनीति से अच्छा आदमी बाहर होता जा रहा है. जो अभी बचे हुए हैं उनको भी बाहर करने की सुनियोजित राजनीति साफ देखी जा सकती है.
भारतीय राजनीति में आज अच्छे व्यक्ति को अच्छे स्थान पर पहुंचाने और पहुंचने की जरूरत है. अच्छा आदमी कुर्सी की वजह से ऊंचा नहीं होता. अच्छा होने की वजह से उसे ऊँची कुर्सी पर बिठाया जाता है. बुरा आदमी कुर्सी पर बैठने से ऊंचा होता है. कुर्सी छोड़गा तो फिर नीचे ही दिखाई पड़ेगा. भारतीय लोकतंत्र को ऊंचा रखने के लिए भगवान राम और भारतीय संस्कृति के दूसरे महापुरुषों के उच्च आदर्शों पर चलने की जरूरत है. किसी भी अच्छे व्यक्ति को हतोत्साहित करना लोकतंत्र के भविष्य को मजबूत नहीं कर सकता.