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दुनिया को समझाना क्यों?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 21 May

सार

इन सवालों और स्पष्टीकरण के साथ भारत के 40 सांसदों के 7 प्रतिनिधिमंडल अलग-अलग देशों में भेजना तय किया गया है, यह भारत की कूटनीति का एक सफल प्रयास हो सकता है, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई बहुत लंबी और बहुआयामी है, आतंकवाद से अमरीका, यूरोप, अरब देश, शेष विश्व भी छिला पड़ा है, जख्मी है, डरा हुआ है, जो संसदीय मंडल भेजे जा रहे हैं, वे आतंकवाद पर राष्ट्रीय नीति और भारत की एकता, अखंडता, विविधता के प्रतीक हैं..!!

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विस्तार

 

उद्देश्य साफ़ है कि आतंकवाद पर पाकिस्तान को बिल्कुल बेनकाब किया जाए। भारत बीते 35-37 सालों से पाकपरस्त आतंकवाद से पीडि़त है। हजारों मासूमों और बेगुनाहों की हत्याएं की जा चुकी हैं। कश्मीरी पंडितों का घाटी से पलायन और विस्थापित होना आतंकवाद का सबसे अमानवीय उदाहरण है। मौजूदा परिदृश्य में भारत शेष विश्व को अवगत करना चाहता है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ क्यों करना पड़ा? पाकिस्तान में बसे और सक्रिय आतंकियों और उनके महलनुमा अड्डों पर भारत को विस्फोटक प्रहार क्यों करने पड़े? आतंकियों के ठिकानों को ‘मिट्टी-मलबा’ कैसे किया गया? भारत सरकार की आदर्श विदेश नीति क्या है? भारत आज भी युद्ध के पक्ष में नहीं है, लेकिन आतंकवाद को नेस्तनाबूद करना उसका लक्ष्य है।

इन सवालों और स्पष्टीकरण के साथ भारत के 40 सांसदों के 7 प्रतिनिधिमंडल अलग-अलग देशों में भेजना तय किया गया है। यह भारत की कूटनीति का एक सफल प्रयास हो सकता है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई बहुत लंबी और बहुआयामी है। आतंकवाद से अमरीका, यूरोप, अरब देश, शेष विश्व भी छिला पड़ा है, जख्मी है, डरा हुआ है। जो संसदीय मंडल भेजे जा रहे हैं, वे आतंकवाद पर राष्ट्रीय नीति और भारत की एकता, अखंडता, विविधता के प्रतीक हैं। हमारे सांसद भारत की आवाज हैं, भारत के प्रवक्ता हैं। वे वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान को नंगा करेंगे और सवाल भी करेंगे कि ‘आतंकिस्तान’ पाकिस्तान को बार-बार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का ‘बेल आउट कर्ज’ क्यों मिलता रहा है? 

विश्व बैंक और एशियन विकास बैंक को भी सचेत हो जाना चाहिए। शायद अंतरराष्ट्रीय संस्थान को पाकिस्तान के यथार्थ की सम्यक जानकारी नहीं है या वैश्विक राजनीति आड़े आती है। अंतत: पाकिस्तान कर्ज का पैसा आतंकियों के पुनर्वास और हथियारों पर खर्च करता रहा है। जिन आतंकियों को बिल्कुल मिट्टी में मिला दिया गया है, उनके लिए पाकिस्तान की हुकूमत ने 1 करोड़ रुपए प्रति आतंकी, उनके परिजनों को देने का ऐलान किया है। चूंकि जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर के खानदान में 14 मौतें हुई हैं, लिहाजा उसे 14 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। इस पैसे का इस्तेमाल क्या होगा? बहरहाल हमारे मकसद पर भी सवालिया निशान इसलिए लगाया जा रहा है, क्योंकि कांग्रेस सांसद शशि थरूर के नेतृत्व में एक दल अमरीका भेजना सरकार ने तय किया है। कांग्रेस की इस पर सियासी आपत्ति है।

ऐसे संसदीय प्रतिनिधिमंडल विदेश में भेजना भारत सरकार का विशेषाधिकार है। 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने तब के नेता प्रतिपक्ष अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में दल संयुक्त राष्ट्र में भेजा था। 26/11 मुंबई आतंकी हमले के बाद 2008 में ऐसा ही प्रतिनिधिमंडल भेजा गया था। वे भारत की चिंताओं और सरोकार के सवाल थे। राजनीतिक दलों की परिधियां गायब कर दी गई थीं। इस बार भी यही किया गया है। जनता दल-यू, द्रमुक, एनसीपी (पवार) और शिवसेना के सांसदों को भी दल के नेतृत्व सौंपे गए हैं। कांग्रेस के तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री सलमान खुर्शीद को इस बार भी प्रतिनिधि बनाया गया है, हालांकि वह सांसद नहीं हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के प्रति उनकी नफरतवादी सियासत को देश जानता है। थरूर करीब तीन दशकों तक संयुक्त राष्ट्र में कार्यरत रहे हैं। वह वहां अंडर जनरल सेक्रेटरी के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार में वह विदेश राज्यमंत्री भी रहे हैं। अमरीका के माहौल, भाषा और कूटनीति में वह मर्मज्ञ हैं। तो फिर कांग्रेस उन्हें प्रतिनिधिमंडल में भेजना क्यों नहीं चाहती? क्या इसलिए कि वह आलाकमान के चाटुकार सांसद नहीं हैं? क्योंकि वह प्रधानमंत्री मोदी के कई निर्णयों के प्रशंसक भी रहे हैं? प्रधानमंत्री उनसे गर्मजोशी से मिलते हैं! क्या वह कभी भी राजनीतिक पाला बदल सकते हैं? थरूर इस समय विदेश मामलों की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष भी हैं। किसी अन्य दल ने प्रतिनिधि के नाम पर आपत्ति नहीं की है, तो कांग्रेस दाने क्यों बिखेर रही है? फिलहाल दायित्व राष्ट्रीय है। 

पाकिस्तान के पक्ष में नारे लगाने की सियासत का वक्त नहीं है। विदेश मंत्रालय प्रवास शुरू होने से पहले सभी सांसदों को कुछ ब्रीफिंग देगा। उसी के आधार पर सांसद विदेश में अपनी बात रखेंगे। यह बेहद संवेदनशीलता का वक्त है। फिलहाल कांग्रेस और भाजपा को अपनी संकुचित राजनीति नेपथ्य में रखनी चाहिए और भारत का पक्ष रखने की नई भूमिका धारण करनी चाहिए।