दो ब्रह्मास्त्रों के आपस में टकराने से प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इससे समस्त पृथ्वी के समाप्त होने का भय रहता है। यदि ऐसा हो जाये तो फिर से एक नई पृथ्वी तथा जीवधारियों की उत्पत्ति करनी पड़ेगी। महाभारत के युद्ध में ब्रह्मास्त्र का बड़ा ही रोचक वर्णन आया है, जो इस प्रकार से हैं -
'महाभारत' का युद्ध अठारह दिन तक चलता रहा। अश्वत्थामा शिविर में सोते हुए समस्त पांचालों को मार डाला। द्रौपदी को समाचार मिला तो उसने प्रतिशोध लेने को कहा। अश्वत्थामा ने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था। अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया।पांडवों को जड़-मूल से नष्ट करने के लिए अश्वत्थामा ने गर्भवती उत्तरा पर भी वार किया था। अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, प्रत्युत्तर में अर्जुन ने भी छोड़ा। अश्वत्थामा ने पांडवों के नाश के लिए छोड़ा था और अर्जुन ने उसके ब्रह्मास्त्र को नष्ट करने के लिए। व्यास के कहने से अर्जुन ने अपने ब्रह्मास्त्र का उपसंहार कर दिया, किंतु अश्वत्थामा ने वापस लेने की सामर्थ्य की न्यूनता बताते हुए पांडव परिवार के गर्भों को नष्ट करने के लिए छोड़ा।
कृष्ण ने अश्वत्थामा से कहा - 'उत्तरा को परीक्षित नामक बालक के जन्म का वर प्राप्त है। उसका पुत्र होगा ही। यदि तेरे शस्त्र-प्रयोग के कारण मृत हुआ तो भी मैं उसे जीवनदान करूंगा। वह भूमि का सम्राट होगा और तू? नीच अश्वत्थामा! तू इतने वधों का पाप ढोता हुआ तीन हज़ार वर्ष तक निर्जन स्थानों में भटकेगा। तेरे शरीर से सदैव रक्त की दुर्गंध नि:सृत होती रहेगी। तू अनेक रोगों से पीड़ित रहेगा।' व्यास ने श्रीकृष्ण के वचनों का अनुमोदन किया। अश्वत्थामा ने कहा कि वह मनुष्यों में केवल व्यास मुनि के साथ रहना चाहता है। जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी, जो कि उसे दैत्य, दानव, अस्त्र-शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी।