धनोरा: बैतूल का एक गाँव जिसने पेश की जनसंख्या नियंत्रण की मिसाल


स्टोरी हाइलाइट्स

पूरा देश जहां बढ़ती हुई जनसंख्या से परेशान है वहीं मध्यप्रदेश में एक ऐसा गांव है जिसने हिंदुस्तान को जनसंख्या वृद्धि से बचाने के लिए लोगों के सामने एक मिसाल पेश की है|

जहाँ पिछले 100 साल में नहीं बढ़ी जनसंख्या:

 

बैतूल का एक गाँव जिसने पेश की जनसंख्या नियंत्रण की मिसाल 

 

इस गांव में पिछले 100 साल से जनसंख्या में एक व्यक्ति भी नहीं बढ़ा है| 100 साल में देश की आबादी 4 गुना बढ़ चुकी है| गांव की जनसंख्या किसी दैवीय कारण से स्थिर नहीं है बल्कि लोग पूरे देश के सामने परिवार नियोजन  का एक उदाहरण पेश कर रहे हैं|

 

यकीन न करें लेकिन बैतूल जिले के धनोरा गांव की जनसंख्या बीते 97 साल से जस के तस है| धनोरा की जनसंख्या साल 1922 में 17 से थी और आज भी इतनी ही है| यहां बेटा बेटी में भेदभाव नहीं होता ना ही बेटे के इंतजार में ढेरों बच्चे पैदा कर दिए जाते हैं| 1922 में यहां कांग्रेस का एक सम्मेलन हुआ था जिस में शामिल होने के लिए कस्तूरबा गांधी आई थी उन्होंने ग्रामीणों को खुशहाल जीवन के लिए छोटा परिवार सुखी परिवार का मंत्र दिया था| 

 

कस्तूरबा गांधी की बात ग्रामीणों के दिल में उतर गई और उन्होंने पिछले 100 साल में कस्तूरबा गांधी को दिया हुआ अपना वचन कभी नहीं तोड़ा| 

 

बुजुर्गो का कहना है कि कस्तूरबा गांधी का संदेश यहां के लोगों के दिल और दिमाग पर ऐसा बैठा कि सन् 1922 के बाद गांव में परिवार नियोजन के लिए ग्रामीणों में जबरदस्त जागरूकता आई, लगभग हर परिवार ने एक या दो बच्चों पर परिवार नियोजन करवाया, जिससे धीरे-धीरे गांव की जनसंख्या स्थिर होने लगी। 

 

बेटों की चाहत में परिवार बढ़ने की कुरीति को भी यहां के लोगों ने खत्म कर दिया, एक या दो बेटियों के जन्म के बाद परिवार नियोजन को वे जरूरी समझते हैं। परिवार नियोजन के मामले में यह गांव एक मॉडल बन गया है। 

 

बेटी हो या बेटा, दो बच्चों के बाद परिवार नियोजन अपनाए जाने से यहां लिंगानुपात भी बाकी जगहों से काफी बेहतर है। इतना ही नहीं, बेटी-बेटे में फर्क जैसी मानसिकता यहां देखने को नहीं मिलती। ग्रामीण बताते हैं कि धनोरा के आसपास ऐसे भी कई गांव हैं, जिनकी जनसंख्या 50 साल पहले जितनी थी, उसके मुकाबले अब चार से पांच गुना बढ़ चुकी है, लेकिन धनोरा गांव की जनसंख्या अब भी 1,700 बनी हुई है। 

 

गांव के स्वास्थ्य कार्यकर्ता जगदीश सिंह परिहार बताते हैं कि उन्हें कभी ग्रामीणों को परिवार नियोजन करने के लिए बाध्य नहीं करना पड़ा। स्थानीय लोगों में जागरूकता का ही नतीजा है कि वे दो बच्चों के बाद परिवार नियोजन करा लेते हैं।