पुराण क्या है?
What is Puranic Hinduism?
What are the Puranas?
पुराण का अर्थ पुराना नहीं पुराण का अर्थ है आदि साहित्य, जिसमें आदि अनादि काल से चली आ रही आत्मा की जानकारी मिलती है| आत्मा परमात्मा का अंश है पुराण परमात्मा के जगत के विकास की गाथा है| श्री गोस्वामीजी के अनुसार 'पुराणात् पुराणम्' अर्थात् जो पूरण करता है वह पुराण है।
अमरकोष के अनुसार 'पुराणपंचलक्षणम्' अर्थात् सृष्टि, उत्पत्ति, विनाश, वंश-परम्परा, मनुओं का वर्णन तथा विशिष्ट व्यक्तियों के चरित्र - ये पाँच विषय जिन ग्रन्थों में मुख्य रुप से वर्णित हों, वे पुराण कहलाते हैं। श्री मधुसूदन के अनुसार '#विश्वसृष्टेरितिहासः #पुराणम्' अर्थात् विश्व का इतिहास ही पुराण है।
पुराण शब्द से आदि साहित्य का तात्पर्य है और आदि-साहित्य वह है, जिसमें आदिदेव आत्मा का बोध होता है। इस आदि-विद्यया को ही वेदव्यास ने जगत्कल्याण हेतु सर्गादि पाँच लक्षणों में ग्रथित किया और यही पुराण कहलाता है। संस्कृत-साहित्य के ग्रन्थकार इसी अर्थ को स्वीकार करते हैं।
“'#पुराणं_प्रतनप्रत्नपुरातनं_चिरन्तनः”
अर्थात् प्राचीन होकर भी नवीन अथवा भूत, भविष्य के अर्थों को पहले ही कह देने वाला पुराण है।
यूं तो कहा जाता है कि वेद धर्मग्रंथ है तो पुराण इतिहास ग्रंथ। पुराण देवताओं और मनुष्यों के बीच संबंधों का इतिहास है। जब देवता धरती पर रहते थे। भगवान कृष्ण के काल तक देवी-देवता और उनके काल में ऋषि-मुनि धरती पर रहते थे। महाभारत के युद्ध के बाद सभी देवता आकाश में अपने अपने स्थान पर चले गए। वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ होने के कारण आम आदमियों के द्वारा उन्हें समझना बहुत कठिन था, इसलिए रोचक कथाओं के माध्यम से वेद के ज्ञान की जानकारी देने की प्रथा चली। इन्हीं कथाओं के संकलन को पुराण कहा जाता हैं। पौराणिक कथाओं में ज्ञान, सत्य घटनाओं तथा कल्पना का संमिश्रण होता है। पुराण ज्ञानयुक्त कहानियों का एक विशाल संग्रह होता है। पुराणों को वर्तमान युग में रचित विज्ञान कथाओं के जैसा ही समझा जा सकता है।
यास्कचार्य ने निरुक्त में पुराण' शब्द का निर्वचन इस पकार किया है- 'पुराणं कस्मात्? पुरा नवं भवति।( निरुक्त ३।१६।२४) 4 पुरा अव्ययपूर्वक (णी॒ञ् प्रापणे ) धातु से 'ड' प्रत्यय करने के बाद 'टि' लोप और णत्व' कार्य करने पर 'पुराण' शब्द सिद्ध होता है अर्थात् 'पु+रा+नी' ये तीनों अव्यय मिलकर व्याकरणशास्त्र के नियमानुसार पुराण' शब्द के रुप में परिणत हो जाते हैं। भगवान् को पुराण पुरुष कहा जाता है।
ब्रह्माण्डपुराण में पुराण शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है -
"#पुरा_एतत्–अभूत् "अर्थात् प्राचीनकाल में ऐसा हुआ ।मत्स्यपुराण के अनुसार '#पुरातनस्य_कल्पस्य_पुराणानि_विदुर्बुधा'
'पुराण' शब्द ऋग्वेद में कई स्थलों पर प्रयुक्त हुआ है। यह वहाँ विशेषण है तथा उसका अर्थ है- प्राचीनकाल में होने वाला वैसे भी 'पुराण' शब्द का अर्थ लौकिक-भाषा में पुराना वस्त्र, पुरानी पुस्तक कहकर प्राचीनतर को सिद्ध करता है। अतः जो प्राचीनतर है, वह पुराण हैं। प्रारम्भिक अवस्था में यह शब्द पुराने आख्यान में प्रचलित था, इतिहास के साथ भी यह शब्द ब्राह्मण, उपनिषद् और प्राचीन बौद्ध-साहित्य में आया है। ये भी वेद के व्याख्या ग्रन्थ हैं।
पुराणों में वेद प्रतिकूलता का दर्शन गलत धारणा है।
वायुपुराण में 'पुराण' शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है- '#पुरा_अनति' अर्थात् प्राचीनकाल में जो जीवित था । अथर्ववद एवं ब्राह्मण-ग्रन्थों में सृष्टिमीमांसा के अर्थ में पुराण शब्द प्रयुक्त हुआ है। महाभारत में “पुराण' शब्द 'पुराणामाख्यानम्' अर्थात् प्राचीन आख्यान के लिए प्रयुक्त हुआ है। भारतीय साहित्य में आख्यान के अतिरिक्त पुराण' शब्द का प्रयोग इतिहास के लिए भी किया गया है। पद्मपुराण के अनुसार जो परम्परा की कामना करता है, वह पुराण है।
पुराण के पांच लक्षण क्या हैं?
पुराण पञचलक्षण से सम्बद्ध माना जाता है तथा उसका सम्बन्ध प्राचीन है। पुराणों में पुराण के कई लक्षण उपलब्ध होते हैं, परन्तु कोशकारों एवं पुराणों के अनुसार पुराण का सर्वाधिक प्रचलित लक्षण इस प्रकार है-
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च ।
वंशानुचरितं चेति पुराणं पञचलक्षणम् ।।1
अर्थात् सर्ग, प्रलय, विशिष्ट लोगों की वंशावली, मन्वन्तर तथा वंशानुचरित ये पाँच लक्षण हैं। प्रायः पुराण सम्बन्धी यह श्लोक प्रत्येक पुराण में नाम भेद से या ऐक्यरुपेण उपलब्ध होता है| श्रीमद्भगवत के दो स्थलों पर पाँच विषयों को संयुक्त करके पुराण के दश लक्षण बताए गए हैं।
भागवत के द्वादश स्कन्ध में वर्णित दस लक्षण-
सर्गश्चाथविसर्गश्च वृत्तौ रक्षान्तराणि च,
वंशो वंशानुचरितं संस्था हेतुपाश्रयः ।
अर्थात् सर्ग, विसर्ग, वृत्ति, रक्षा, अन्तराणि, वंश, वंशानुचरित, संस्था, हेतु तथा अपाश्रय - ये दश महापुराणों के लक्षण हैं। श्रीमद्भागवत के द्वितीय स्कन्ध के अन्तिम दशम अध्याय में वर्णित पुराणों का दश
महापुराण के दस लक्षण इस प्रकार है-
अत्र सर्गो विसर्गश्च स्थान पोषणमूतयः ।
मन्वन्तरेशानुकथा निरोधा मुक्तिराश्रयः ।
अर्थात् सर्ग, विसर्ग, स्थान, पाषण, ऊति मन्वन्तर, ईशानुकथा, निरोध, मुक्ति तथा आश्रय महापुराण के दस लक्षण हैं।
वेद व्यास ने कितने पुराण लिखे और बौद्धकाल में तथाकथित पंडितों ने कितने पुराणों की रचना की यह शोध का विषय हो सकता है। इसके अलावा क्या वेद व्यास द्वारा लिखे गए पुराणों में बौद्धकाल और मध्यकाल में परिवर्तन, संशोधन किया गया? क्या सनातन धर्म के विरोधियों, पंडितों ने अपने व्यापारिक स्वार्थ या श्रमणों और अन्य धर्म के प्रभाव को कम करने के लिए पुराणों में संशोधन किए गए? यह कुछ सवाल है जिसकी खोज करनी होगी। भविष्यपुराण और कल्कि पुराण को पढ़ने पर लगता हैं कि यह मध्यकाल की रचना है।पुराण का अर्थ है इतिहास का सार, निचोड़ और इतिहास का अर्थ है जो घटनाक्रम हुआ उसका तथ्यपरक विस्तृत ब्योरा। जरूरत है कि हम पुराण की कथाओं को समझें और उन्हें इतिहास अनुसार लिखें। कब तक पुराण की कथाओं को उसी रूप में सुनाया जाएगा जिस रूप में वे काल्पनिक लगती हैं। जरूरत है कि उसके आसपास जमी धूल को झाड़ा जाए।