मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ऐसे समय में आध्यात्मिक चेतना जगाने और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का जयघोष करने निकले हैं, जब समूचे राष्ट्र में सनातन की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा का दौर चल रहा है। डॉ.यादव ने न केवल मध्य प्रदेश बल्कि देश की जनता का ध्यान भी इस ओर आकृष्ट किया है कि प्राचीन परंपराओं और ऐतिहासिक घटनाक्रमों का आज वैज्ञानिक महत्व हैं।
मुख्यमंत्री की कमान संभालने के तत्काल बाद डॉ. यादव ने अपनी पौराणिक और ऐतिहासिक समझ बूझ के साथ ही उज्जैन में विक्रमादित्य वैदिक घड़ी की स्थापना कर पूरी दुनिया को भारतीय काल गणना से जोड़ दिया दूसरी तरफ डोंगला (महिदपुर) को खगोलीय तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किये गये एक गांव को वैज्ञानिक आधार से भी रूबरू करवा दिया। न केवल पर्यटन की दृष्टि से बल्कि विकास के दृष्टिकोण से भी डूंगला अब भारत के नक्शे पर प्रमुखता के साथ देखा जाने लगा है। डोंगला, महिदपुर के विकास में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का विशेष योगदान रहा है।
इसे एक खगोलीय तीर्थ स्थल और वैज्ञानिक केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। डोंगला में वेधशाला, तारामंडल, शोध केंद्र, और सभागृह की स्थापना के साथ पर्यटन के लिए सड़कों और अन्य बुनियादी ढांचों का विकास किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने इस परियोजना को गति देने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए, जिसमें उज्जैन से डोंगला और नारायणा के बीच सड़कों और विद्युत सबस्टेशन का निर्माण शामिल है।
उज्जैन को पहले से ही भौगोलिक शून्य रेखांश (जीरो मेरिडियन) के रूप में मान्यता है, और यह परियोजना भारत की वैज्ञानिक और सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास है। इसके साथ, डोंगला को आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पर्यटन का केंद्र बनाने की योजना है, जो स्थानीय रोजगार और आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देगा। इस विकास कार्य को प्रदेश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
दुनिया को दिया कालगणना का नया मंत्र:-
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर स्थापित की गई दुनिया की पहली ‘‘ विक्रमादित्य वैदिक घड़ी ’’ को भारतीय काल गणना को पुनर्स्थापित करने की एक अनूठी कोशिश माना जा रहा है। इस घड़ी की विशेषता यह है कि यह पारंपरिक 24 घंटे के समय को वैदिक पद्धति के अनुसार 30 मुहूर्त (घटियों) में विभाजित करती है, जिससे धार्मिक और ज्योतिषीय समय को अधिक सटीकता के साथ दर्शाया जा सकता है। सूर्याेदय और सूर्यास्त के आधार पर समय गणना के अलावा यह घड़ी पंचांग, ग्रहण, मौसम, और धार्मिक मुहूर्त की जानकारी भी प्रदान करती है। इसके अलावा, इसका एक मोबाइल ऐप भी लॉन्च किया गया है जो इन सभी विशेषताओं को डिजिटल रूप में भी दर्शाएगा।
उज्जैन में इस घड़ी के साथ वेधशाला को पर्यटन और अध्ययन के प्रमुख स्थलों के रूप में विकसित किया जा रहा है। यह पहल मुख्यमंत्री के इस दृष्टिकोण को दर्शाती है कि उज्जैन को काल गणना और भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के केंद्र के रूप में स्थापित किया जाएगा ।
सिंहस्थ 2028 का ब्लूप्रिंट तैयार:-
सिंहस्थ 2028 के आयोजन के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने एक विशेष ब्लूप्रिंट तैयार किया है। इस आयोजन में प्रमुख फोकस बुनियादी ढांचे के स्थायी विकास और संतों-महंतों के स्थायी आश्रमों के निर्माण पर है, जिससे हरिद्वार की तर्ज पर उज्जैन को भी विकसित किया जा सके। संतों के आश्रमों के लिए उन्हें स्थायी रूप से भूमि आवंटित की जाएगी, जिसमें नियमानुसार अधिकतर क्षेत्र खुला रहेगा और केवल एक हिस्से में निर्माण की अनुमति होगी।
मुख्यमंत्री यादव ने उज्जैन-इंदौर मेट्रो, सड़क विस्तार, और एयरपोर्ट परियोजनाओं की भी घोषणा की है, जो सिंहस्थ के समय बढ़ते यातायात के मद्देनजर किए जा रहे हैं। इस बार सिंहस्थ में लगभग 14 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है, जिसे देखते हुए उज्जैन में पुलों, जल निकासी और अन्य बुनियादी ढांचे का काम तेज गति से हो रहा है। इसके अतिरिक्त, सिंहस्थ आयोजन से जुड़े हुए अन्य शहरों, जैसे इंदौर, देवास और धार में भी इस ब्लूप्रिंट का विस्तार किया जा रहा है ताकि सिंहस्थ में आने वाले श्रद्धालुओं को पर्याप्त सुविधाएं मिल सकें।
सघ के अनुशासन और समर्पण ने दी अलग पहचान:-
डॉ. मोहन यादव का व्यक्तित्व भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीयता की गहरी जड़ों से पोषित है। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संस्कारों से सशक्त हुए हैं, प्रारम्भिक चरण में स्व .भगवत शरण माथुर के नेतृत्व में काम किया, संघ में संस्कार अनुशासन और संस्कृति के प्रति प्रेम के पाठ को पढ़ा जो उनके भविष्य की राजनीतिक यात्रा का मजबूत आधार बना । अपने विद्यार्थी जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के तत्कालीन संगठन मंत्री शालिग्राम तोमर ने मोहन जी को ऐसा तराशा कि वे आज अनुशासन और समर्पण की एक मिसाल बन गए। विक्रम विश्वविद्यालय के माधव विज्ञान महाविद्यालय उज्जैन में 80 के दशक में रणजीत सिंह कालरा, लोकेश शर्मा, जैसे परिपक्व लीडर के साथ काम करने से मोहन यादव की नेतृत्व शैली में जो विस्तार हुआ वह आज भी उनके व्यक्तित्व में नजर आता है ।
ABVP में सक्रियता के दौरान ही उन्होंने समाज सेवा और राष्ट्र सेवा के विचारों को आत्मसात किया और शिक्षा के क्षेत्र में रुचि ली। इसी कड़ी में वे विक्रम विश्वविद्यालय में सक्रिय हुए, जहाँ उन्होंने अपने शैक्षिक कार्यों के साथ समाज सेवा के कार्यों में भी भाग लिया। संघ की विचारधारा के अनुसार, डॉ. यादव ने देश की संस्कृति, परंपराओं और युवाओं में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने के प्रयास किए।
विक्रमादित्य और कालिदास की धरोहर का संरक्षण:-
डॉ.यादव मुख्यमंत्री बनने से पहले जब उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष थे, तब भी उन्होंने अपनी दूर दृष्टि और संकल्प सिद्धि से शहर की चारों दिशाओं के प्रवेश द्वार बनाने की परिकल्पना को साकार किया । आज प्रत्येक शहर की यह अनिवार्यता हो गई है । अध्ययन के दौरान विक्रमादित्य के साहित्य मे गहन रूचि होने से तथा विक्रम में मंच पर स्वय विक्रमादित्य बनने की भूमिका ने उन्हें सम्राट विक्रमादित्य के व्यक्तित्व से प्रभावित किया जो आज राज्य के मुखिया के आसन पर आरूढ़ होने पर कृतित्व में स्पष्ट झलकता है ।
डॉ. यादव ने मध्य प्रदेश में सम्राट विक्रमादित्य और महाकवि कालिदास की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करने की दिशा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उज्जैन को विक्रमादित्य की भूमि माना जाता है, और डॉ. यादव ने विक्रमोत्सव , शिप्रा परिक्रमा, शिप्रा दीपमाला जैसे आयोजनों का आयोजन किया है। विक्रमादित्य और कालिदास की विरासत को पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से उन्होंने महाकवि कालिदास अकादमी और विक्रमादित्य शोध संस्थान के पुनर्निर्माण और वीर भारत न्यास विस्तार की योजनाएँ बनाई हैं। जल्दी वीर भारत मंदिर का निर्माण भी होने जा रहा है। विक्रमादित्य के आदर्शों को राज्य में फैलाने और नई पीढ़ी को उनके जीवन से प्रेरणा लेने की दिशा में विशेष कदम उठाए हैं। कालिदास की कृतियाँ, विशेषकर उनकी कविताएँ और नाट्य साहित्य, भारतीय साहित्य का अभिन्न हिस्सा हैं। डॉ. यादव की प्रेरणा से कालिदास की रचनाओं को जन-जन तक पहुँचाने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान को एक नई दिशा मिल रही है।
कुलपति को कुलगुरु नाम दिया और अंग्रेजी ड्रेस को बाय-बाय किया:-
डॉ. मोहन यादव ने उच्च शिक्षा मंत्री रहते शिक्षा के क्षेत्र में अपने अनुभव से आमूल चूल परिवर्तन करवाये। कुलपति को कुलगुरु नाम आपने ही दिया । दीक्षांत समारोह में अंग्रेजी ड्रेस के स्थान पर भारतीय और सनातन वेशभूषा की शुरुआत करवाई। उनके नेतृत्व में विक्रम विश्वविद्यालय में कई शैक्षिक सुधार और विकास कार्य किए गए हैं। उन्होंने शिक्षा में गुणवत्ता और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए नई पहल शुरू की और विक्रम विश्वविद्यालय में नये कोर्स और विभागों की स्थापना की। इसके साथ ही, उन्होंने युवाओं में राष्ट्रीयता और संस्कृति के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए भी कदम उठाए हैं। उनकी यह सोच और प्रयास आज के युवाओं को एक नई दिशा प्रदान कर रहे हैं।