प्रणाम-दर्शन -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

आज मेरे एक मित्र बदहवास से हांपते हुए मेरे पास आये. उनकी आँखें लाल थीं.

प्रणाम-दर्शन -दिनेश मालवीय आज मेरे एक मित्र बदहवास से हांपते हुए मेरे पास आये. उनकी आँखें लाल थीं. मैंने कहा,“ जहाँ तक मुझे मालूम है, आप नशा-वशा तो करते नहीं, फिर आँखें लाल क्यों हैं?" वह बोले, "कल रात देर तक लोगों ने सोने नहीं दिया". मैंने पूछा ,ऐसा क्या हो गया? वह बोले,"फोन पर और व्यक्तिगत रूप से आकर प्रणाम करने वालों ने नहीं सोने दिया. प्रणाम करवाते-करवाते मेरा हुलिया ख़राब हो गया". मैंने पूछा," अचानक इतने प्रणाम करने वाले कहाँ से आ गये? आपको आते देखकर तो लोग रास्ता बदल लेते हैं. कोई धरमसांटे नहीं पूछता. बल्कि पीठपीछे लोग आपका मखौल ही उड़ाते रहे हैं". वह बोले "यार, किसी ने अफवाह उड़ा दी कि मेरे गृह-नगर में मेरा भतीजा इस बार चुनाव जीतने वाला है और उसके मंत्री बनने के पूरे चांस हैं". पूरी बात मेरी समझ में आ गयी. मैंने पूछा, "आप इतने वयोवृद्ध और ज्ञानी व्यक्ति हैं. आप एक छोटे-से कस्वे के मूल निवासी हैं. प्रतिष्ठित परिवार के होने के कारण लोग आपको बहुत प्रणाम करते ही होंगे. इससे प्रणाम झेलन क्षमता और रियाज़ बहुत पक्का होगा". मित्र वह कुछ उदास होकर बोले," किसी समय मुझे भी प्रणाम करने वाले बहुत थे. मैं जब बड़े पद पर था और कई लोगों का मुझसे काम पड़ता था. दफ्तर में आने वाले ज्यादातर लोग प्रणाम करते थे. हर कोई विनम्रता की मूर्ति बनकर मेरे सामने आता था. सबकी बातों से ऐसा लगता था कि उनसे बढ़कर मेरे सम्मान करने वाला कोई नहीं है. कुछ लोग तो इस तरह प्रणाम करते थे कि लगता था, कहीं गिर नहीं जाएँ. लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं, क्योंकि वे मेरे पास आने से पहले और भी लोगों को इसी तरह प्रणाम करके आये होते थे. मेरे पास से जाने के बाद भी उनकी सूची में बहुत सारे प्रणम्य लोग होते थे. जब मैं रिटायर हुआ, तो वे लोग कहीं नज़र नहीं आये". मैंने कहा,"इसमें क्या खास बात है? ऐसा तो होता ही है. ज़माने की यह रीत बहुत पुरानी है". मित्र बोले," जी हाँ, आप सही कह रहे हैं. स्वारथ लाग करहिं सब प्रीती". मैंने पूछा, "लेकिन कुछ सच्चे दिल से प्रणाम करने वाले भी तो होते हैं". वह दार्शनिक मुद्रा धारण कर बोले, "प्रणाम करने वाले तीन तरह के लोग होते हैं. पहले वे, जो रिश्ते में छोटे होने के कारण प्रणाम करते हैं. इसमें काफी कुछ मजबूरी भी छुपी होती है, लेकिन कहीं नमक के बराबर सम्मान का भाव भी होता है. उनका वश चले तो वे आपको प्रणाम तो छोड़िये, नमस्कार तक नहीं करें. दूसरे वे लोग हैं जो आपसे कोई काम निकालना चाहते हैं. उनमे आपके प्रति ज़रा भी श्रद्धा नहीं होती. जब भी जिससे काम निकालना होता है, वे उसके प्रति दंडवत हो जाते हैं. आपको प्रणाम करते हुए वे भीतर ही भीतर आपको गाली दे रहे होते हैं. तीसरे प्रकार के प्रणामी वे लोग हैं, जो आपके किसी विशेष गुण अथवा योग्यता के कारण स्वत: ही नतमस्तक हो जाते हैं. मुझे तीनों तरह के प्रणामियों का अच्छा अनुभव है. इनमें सबसे अधिक संख्या दूसरे क्रम वाले प्रणामियों की होती है. ये लोग काम निकालने के लिए सिर्फ आपके नहीं, बल्कि आपके घर के छोटे से छोटे बच्चे तक को प्रणाम करने से नहीं चूकते. आपके पूरे परिवार को महान गुणों का सागर निरूपित करते हैं". मैंने पूछा, "इनमे से निश्चय ही तीसरे प्रकार के प्रणाम करने वाले श्रेष्ठ होते हैं". वह बोले,"इसमें क्या शक़ है? लेकिन इनकी संख्या बहुत कम होती है". कुछ देर चुप रहकर मैंने कहा, "अगर आपका भतीजा चुनाव नहीं जीतता या मंत्री नहीं बनता तो क्या होगा?". वह बोले, यदि जीत कर सिर्फ विधायक बनता है, तो प्रणाम करने वालों की संख्या आधी हो जाएगी. यदि वह नहीं जीता तो प्रणाम करने वाले गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाएँगे. अगर मंत्री बन गया तो मैं एकदम से पूज्य हो जाऊँगा". मैंने कहा," अब आपका क्या विचार है? "वह बोले, मतगणना के एक दिन पहले फोन बंद कर दूंगा. पत्नी से कह दूंगा कि घर आने वालों से कह दे कि मैं तीर्थ-यात्रा पर गया हूँ". मैंने कहा, "ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हो चुका है. एक बार मेरी पोस्टिंग एक बड़ी जगह हो गयी थी. अचानक कुकुरमुत्ते की तरह रिश्तेदार उग आये. जो लोग मेरे बेरोजगारी और मुफलिसी के दौर में मेरा मजाक उड़ाते थे, वे मुझे असाधारण प्रतिभाशाली ठहराने लगे. लोग मिठाई का डिब्बा य कोई अन्य भेंट लेकर आने लगे. उन्हें मेरा जन्मदिन और वैवाहिक वर्षगांठ याद रहने लगी. आते ही कहते कि बहुत दिनों से मिले नहीं थे तो सोचा आज मिल आते हैं. फिर धीरे से वह कुछ काम बता देते. काम न होने पर जहाँ-तहाँ मेरी बुराई करते घूमते. काम हो जाने पर भी सिर्फ इसलिए सम्बन्ध रखते कि दूसरा काम करवा लेंगे". मित्र ने मेरी इस बात में कोई रुचि नहीं दिखायी. उन्हें इसका बहुत अनुभव जो था. उनके लिए यह बहुत आमफहम बात थी. मौके की नजाकत देखकर मैंने कहा, "अजी छोडिये, यह तो सदा से दुनिया की रीत रही है. आप तो यह बताइए की सरकार किसकी बन रही है?” मित्र ने मुझे बुरी तरह घूरा और बिना कुछ बोले प्रणाम की मुद्रा बनाकर चलते बने. मै अभी तक यही सोच रहा हूँ कि यह कौन से प्रकार का प्रणाम था!