भोपाल: जैव विविधता विशेषज्ञ एवं पीसीसीएफ के पद से रिटायर्ड डॉ. पीसी दुबे के सहयोग से गवर्नमेंट होलकर साइंस कॉलेज ट्राइबल मेडिसिन के साइंटिफिक दस्तावेज तैयार कर रहा है। इसके तहत प्रदेश में रहने वाली गोंड, भील, कोरकू, बैगा, सहरिया, भारिया, कोल, और हल्बी जनजातियों द्वारा पारंपरिक रूप से उपयोग की जा रही औषधिय जड़ी-बूटियों पर शोध कार्य किया जा रहा है। इन जड़ी-बूटियों के जरिए सर्दी-खांसी, बुखार जैसी मौसमी बीमारियों से लेकर हाई ब्लड प्रेशर और डाइबिटीज का निदान पहले से किया जाता रहा है।
वर्ष 2011 में विंध्य क्षेत्र की जैव विविधता पर पीएचडी, आदिवासियों के नृवंशविज्ञान संबंधी ज्ञान और वन संरक्षण में उनकी भूमिका पर पोस्ट डॉक्टरेट (डीएससी) कर रहे डॉ दुबे ने बताया कि इन जड़ी-बूटियों में मौजूद औषधिय गुणों का वैज्ञानिक आध्धार नहीं होने के कारण इनका लाभ बड़ी संख्या में मरीजों को नहीं मिल पा रहा है। यह शोध इस गैप को पूरा करेगा। प्रोजेक्ट को लीड कर रहे माइक्रोबायोलॉजी विभाग के हेड प्रो. डॉ. संजय व्यास ने बताया कि वन विभाग के रिटायर्ड प्रधान वन संरक्षक डॉ. पीसी दुबे और डॉ. सुशील उपाध्याय के साथ मिलकर एक साल में 20 जिलों की जनजातियों के 40 ट्राइबल हीलर्स से जानकारी लेकर 300 पेज की रिपोर्ट तैयार की है।
ग्रामीण क्षेत्रों में पीढ़ी दर पीढ़ी इससे जुड़ी जानकारी मौखिक रूप से आगे बढ़ रही है। इसे हम दस्तावेजों में ला रहे हैं। प्रोजेक्ट में जड़ी बूटियों व औषधीय गुणों की पहचान के साथ साइंटिफिक वैलिडेशन करके सरकार से अनुमति लेना शामिल है। अरबिंदो कॉलेज औषधिय गुणों की जांच और दवाइयों तैयार कर इसका वैलिडेशन करेगा। हीलर्स और जड़ी बूटियों से जानकारी लेने के लिए होलकर कॉलेज के 50 स्टूडेंट्स गांवों में जाएंगे। कॉलेज की नर्सरी में भी इन पौधों को उगाकर ट्रॉयल किए जाएंगे।
रिसर्च से पता लगा इससे 30% तक इंसुलिन का डोज
अरविंदो इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस के फाउंडर चेयरमैन डॉ. विनोद भंडारी ने बताया कि प्लांट बेस्ड मेडिसिन्सु, पर रिसर्च के दौरान हमने पाया कि शहडोल और बालाघाट जिले में पाएं जाने वाले खास किस्म के पौधों से डायबिटीज कंट्रोल होता है। इसे टेस्ट करने के लिए इसके तने को ग्लास में रातभर पानी के साथ रखा। इसे 100 से ज्यादा मरीजों को पिलाया। इससे मरीजों का HbA1c 8 से घटकर 5 यूनिट पर आ गया। इंसुलिन का डोज 20 से 30% घट गया। ब्लड प्रेशर और ब्लड कैंसर पर रिसर्च जारी है। जिसके परिणाम भी छह महीने में आ जाएंगे।