Jagnnath Rath Yatra 2025: पुरी में 2 मिनट के लिए यात्रा रोक, मनोरा आते हैं भगवान जगन्नाथ..विदिशा से है अद्भुत नाता


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स्टोरी हाइलाइट्स

Jagnnath Rath Yatra 2025: मध्य प्रदेश के विदिशा जिले से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम मानोरा है, जहां भगवान जगदीश स्वामी का प्राचीन मंदिर स्थित है, यह मंदिर आज भी आस्था का जीवंत प्रतीक है, जिसे स्थानीय जनमान्यता के आधार पर 'मिनी जगन्नाथ पुरी' का दर्जा प्राप्त है..!!

Jagnnath Rath Yatra 2025: ओडिशा के पुरी में शुक्रवार 27 जून से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू हो गई है। इसके साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों में भी रथ यात्रा निकाली जा रही है। मध्य प्रदेश के विदिशा जिले से करीब 35 किलोमीटर दूर मनोरा गांव स्थित है। जहां भगवान जगदीश स्वामी (जगन्नाथ) का प्राचीन मंदिर स्थित है। यह मंदिर आज भी आस्था का जीवंत प्रतीक है। जिसे स्थानीय लोक मान्यता के आधार पर 'मिनी जगन्नाथ पुरी' का दर्जा दिया गया है।

इतिहासकार गोविंद देवलिया के अनुसार, करीब 200 साल पहले, मनोरा गांव के जमींदार माणकचंद भगवान जगन्नाथ के बहुत बड़े भक्त थे। पुत्र प्राप्ति की चाह में वे अपनी पत्नी पद्मावती के साथ ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर तक पैदल कठिन यात्रा पर निकल पड़े। पुरी में दर्शन करने के बाद उन्होंने भगवान से मनोरा गांव में निवास करने की प्रार्थना की।

ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ ने माणकचंद को दर्शन दिए और उन्हें गांव में अपना मंदिर बनाने का आदेश दिया। उन्होंने यह भी वादा किया कि वे साल में एक बार रथयात्रा के जरिए मनोरा आएंगे। इसी भावना से प्रेरित होकर माणकचंद ने गांव में मंदिर बनवाया। मंदिर के पीछे आज भी माणकचंद और उनकी पत्नी की समाधि स्थित है।

हर साल जगन्नाथजी की पुरी रथ यात्रा के दिन, मनोरा गांव के इस मंदिर में रथ यात्रा भी निकाली जाती है। रथ यात्रा से एक दिन पहले ही गांव में बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटने लगते हैं। शाम को भगवान को भोग लगाने के बाद मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। रात में मंदिर में कोई नहीं रहता, लेकिन सुबह 4 से 5 बजे के बीच अपने आप पट खुलने की आवाज या कंपन महसूस होती है। जिसे भगवान के आगमन का संकेत माना जाता है। 

इसके बाद भव्य आरती की जाती है और फिर भगवान को रथ में बिठाया जाता है। इस रथ में कंपन महसूस होना सामान्य बात मानी जाती है। श्रद्धालु इसे चमत्कार मानते हैं। श्रद्धालु रस्सी से रथ को खींचते हैं और पूरे गांव में जुलूस निकालते हैं। इतना ही नहीं, मान्यता है कि इसी समय पुरी में भी यह घोषणा की जाती है कि भगवान विदिशा जिले के मनोरा में आ गए हैं और वहां दो मिनट के लिए रथ यात्रा रोक दी जाती है। 

भक्ति और मेला इस आयोजन में विदिशा ही नहीं बल्कि रायसेन, सागर, भोपाल, गुना और अन्य जिलों से भी श्रद्धालु आते हैं। कोई पैदल यात्रा करता है तो कोई भजन-कीर्तन करते हुए मनोरा पहुंचता है। यहां तीन दिवसीय मेला भी लगता है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। स्थानीय प्रशासन को हर साल सागर रोड पर डायवर्जन करना पड़ता है, ताकि यातायात नियंत्रित रहे।

इतिहासकार गोविंद देवलिया कहते हैं, "पहले भगवान की बारात बैलगाड़ी पर निकाली जाती थी। बाद में यह परंपरा लकड़ी के रथ पर शुरू हुई। पहले रात में मशालों की रोशनी में मेला लगता था, अब बिजली, माइक्रोफोन, सीसीटीवी कैमरे और हेल्पलाइन की सुविधाएं जुड़ गई हैं। आज यह कार्यक्रम आस्था और आधुनिक प्रबंधन का संगम बन गया है। जहां 1 लाख से ज्यादा श्रद्धालु पहुंचकर भगवान जगदीश स्वामी की रथयात्रा में इस विश्वास के साथ शामिल होते हैं कि उनकी मनोकामनाएं पूरी होंगी।

हर साल की तरह इस बार भी श्रद्धालुओं ने पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ विदिशा के बड़ी बजरिया जय स्तंभ चौक से मनोरा धाम तक पैदल जुलूस निकाला। संगीत की धुनों के बीच सैकड़ों श्रद्धालु यात्रा में शामिल होते हैं। भजन ढोल-नगाड़ों के साथ डीजे की धूम रहती है। मनोरा धाम की 35 किलोमीटर लंबी यात्रा पैदल तय की जाती है। यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं में खासा उत्साह देखने को मिलता है। यह यात्रा मनोरा धाम पहुंचती है। जहां लोग जगदीश स्वामी के दर्शन का लाभ लेते हैं।