जस्टिस यशवंत वर्मा को SC से बड़ा झटका, जाँच समिति की रिपोर्ट को चुनौती देने वाली याचिका खारिज


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स्टोरी हाइलाइट्स

कोर्ट ने कहा कि जस्टिस यशवंत वर्मा का आचरण विश्वास पैदा नहीं करता, इसलिए उनकी याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए..!!

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने तीन जजों की आंतरिक जाँच समिति की रिपोर्ट और पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश को चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जस्टिस यशवंत वर्मा का आचरण विश्वास पैदा नहीं करता, इसलिए उनकी याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।

जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में दावा किया था कि आंतरिक जाँच प्रक्रिया असंवैधानिक है और संसद के विशेषाधिकारों का हनन करती है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 124 और 218 के अनुसार केवल संसद को ही न्यायाधीशों को हटाने का अधिकार है।

उन्होंने यह भी कहा कि समिति ने उनकी निष्पक्ष सुनवाई नहीं की और सबूतों को नज़रअंदाज़ किया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और कहा कि पिछले फैसलों में आंतरिक प्रक्रिया को बरकरार रखा गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पूर्व सीजेआई संजीव खन्ना ने समिति की रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजकर अपनी ज़िम्मेदारी निभाई थी।

कोर्ट ने कहा, “सीजेआई सिर्फ़ एक डाकघर नहीं हैं। अगर किसी जज के ख़िलाफ़ दुदाचार का सबूत है, तो यह उनका कर्तव्य है कि वे उसे सरकार तक पहुँचाएँ।” न्यायालय ने कहा, मुख्य न्यायाधीश द्वारा सिफ़ारिश भेजने में कुछ भी ग़लत नहीं।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति को पद से हटाने और एक समिति गठित करने की सिफ़ारिश पर न्यायमूर्ति वर्मा की आपत्ति पर, सर्वोच्च न्यायालय ने आज अपने फ़ैसले में कहा कि इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है। न्यायालय ने उनकी अर्ज़ी खारिज कर दी और साथ ही न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग करने वाले वकील मैथ्यूज़ नेदुम्परा की अर्ज़ी भी खारिज कर दी।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायालय ने अपने फ़ैसले में कहा, 'मुख्य न्यायाधीश और आंतरिक समिति ने वीडियो और फ़ोटो अपलोड करने के अलावा पूरी प्रक्रिया का ईमानदारी से पालन किया और हमने कहा है कि वीडियो या फ़ोटो अपलोड करने की कोई ज़रूरत नहीं है, लेकिन अब इसमें कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि याचिकाकर्ता ने उस समय इसका विरोध नहीं किया था। 

दरअसल इसी साल 14 मार्च को दिल्ली स्थित जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में आग लग गई थी। जब पुलिस और दमकलकर्मी आग बुझाने पहुँचे, तो उन्होंने वहाँ बड़ी मात्रा में जली हुई नकदी देखी। उस समय जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट में जज थे। इस विवाद के बाद जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद हाईकोर्ट तबादला कर दिया गया और उन्हें न्यायिक कार्य से भी हटा दिया गया। वे जज तो हैं, लेकिन किसी भी मामले की सुनवाई नहीं कर सकते।

22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने इस मामले की जाँच के लिए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की एक जाँच समिति गठित की। उनके अलावा, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधवालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की न्यायाधीश अनु शिवरामन भी इस समिति में शामिल थीं।

जाँच समिति ने 4 मई को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को कदाचार का दोषी ठहराया गया। 8 मई को, मुख्य न्यायाधीश ने आगे की कार्रवाई के लिए रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी। इसके बाद, न्यायमूर्ति वर्मा को पद से हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाने पर चर्चा शुरू हुई।