कैलाश विजयवर्गीय के पलटवार से निगम के पूर्व कर्ताधर्ताओं में हड़कंप


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स्टोरी हाइलाइट्स

डॉ उमा शशि शर्मा, कृष्ण मुरारी मोघे और मालिनी गौड़ का कार्यकाल जांच के घेरे में..!!

भोपाल: फर्जी बिल घोटाले को लेकर जिस तरह से नगरीय विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने सख्ती दिखाई है उससे इंदौर नगर निगम के पुराने कर्ताधर्ताओं में हड़कंप है। खासतौर पर डा. उमा  शशि शर्मा, कृष्ण मुरारी मोघे और मालिनी गौड़ के समय निगम कमिश्नर और अपर कमिश्नर रहे अधिकारी भयग्रस्त हो गये हैं। लंबे समय तक कैलाश विजयवर्गीय और उनके समर्थकों की इंदौर नगर निगम के कर्ताधर्ताओं से नहीं बनी।

डॉ उमा शशि शेखर को मेयर का टिकट दिलवाने में कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका थी, लेकिन डॉक्टर शशि शर्मा मेयर बनते ही ताई के साथ खड़ी हो गई। इससे दो नंबर का खेमा उनसे नाराज हो गया। यही स्थिति उनके बाद 2010 में मेयर निर्वाचित हुए कृष्ण मुरारी मोघे के साथ बनी। एक समय ऐसा भी आया जब कैलाश विजयवर्गीय ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि वह निगम की तरफ पैर रखकर सोते नहीं हैं। लंबे समय तक कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला के समर्थक पार्षद निगम की बैठकों में जाते नहीं थे। 

एक बार तो विवाद इतना बढ़ा कि तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान को इंदौर कार्यालय में बैठक लेनी पड़ी थी। निगम कमिश्नरों की भी यही स्थिति थी। तत्कालीन मुख्य सचिव के इशारे पर अनेक निगम कमिश्नरों ने क्षेत्र क्रमांक 2 के खेमे की जमकर उपेक्षा की। यहां तक कि कई बार प्रताड़ित किया। अब स्थिति बदल चुकी है। 

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और कैलाश विजयवर्गीय के संबंध प्रदेश में सबको मालूम हैं। खुद कैलाश विजयवर्गीय के पास स्थानीय शासन विभाग यानी प्रदेश के सभी नगर निगम और निकाय उनके अंडर हैं। महापौर पुष्यमित्र भार्गव पूरी तरह से कैलाश विजयवर्गीय के हिसाब से चलते हैं। जाहिर है ऐसे में कैलाश विजयवर्गीय और उनके समर्थकों को पलटवार का पूरा मौका मिल रहा है। वैसे भी फर्जी बिल घोटाला इंदौर के माथे पर कलंक की तरह है। इसलिए भी इस मामले में कड़ी कार्रवाई की जरूरत थी।