सुनो झिलमिल वेषधारी , हम लँगोटी के पुजारी। - दिनेश मालवीय "अश्क"


स्टोरी हाइलाइट्स

मधु पियो, अमृत पियो तुमवो सदा पीते हलाहलप्रिय उन्हें मरघट की चुप्पीजिस तरह तुमको कोलाहलकुछ बनाने की नहीं, ख़ुद मिटने की इच्छा है धारीसुनो झिलमिल वेषधारी, हम लँगोटी के पुजारी।

  सुनो झिलमिल वेषधारी हम लँगोटी के पुजारी। मधु पियो, अमृत पियो तुम वो सदा पीते हलाहल प्रिय उन्हें मरघट की चुप्पी जिस तरह तुमको कोलाहल कुछ बनाने की नहीं, ख़ुद मिटने की इच्छा है धारी सुनो झिलमिल वेषधारी, हम लँगोटी के पुजारी। विश्व मे घूमो फिरो तुम वो स्वयं ही मे रमे हैं तुम उड़ो बस बादलों से वो तो अंबर-से थमे हैं कोई न गंतव्य उनका, कुछ नहीं उनकी सवारी सुनो झिलमिल वेषधारी, हम लँगोटी के पुजारी। वो न जानें हैं घृणा क्या न कपट छलछंद सारे मलिनता मन की मिटाने वो जनम कितने ही हारे कुछ नहीं चाहें किसीसे, प्रेम-रस के वो भिखारी सुनो झिलमिल वेषधारी, हम लँगोटी के पुजारी। हमने उनके पाँव मे हैं लोटते देखे मुकुटधर देखते ही जिनको अपना त्याग विष, चल देते विषधर अहं को अपने मिटाकर ज़िन्दगी उनने सँवारी सुनो झिलमिल वेषधारी, हम लँगोटी के पुजारी। उनकी निर्धनता को तुम समझो नहीं उनकी विवशता उनकी जप -तप साधना के फल से है जग मे सरसता उनकी तो है ज़िन्दगी की कुल जमा पूँजी ये सारी सुनो झिलमिल वेषधारी, हम लँगोटी के पुजारी।