कविता : न मै उम्र दराज हूँ, न ही मै दुनिया को अलविदा कहना चाहती हूं। :अंजना मिश्र


स्टोरी हाइलाइट्स

एक कविता आपके साथ शेयर कर रही हूँ ।अपने सुझाव दीजियेगा । अंजना मिश्र न मै उम्र दराज हूँ, न ही मै दुनिया को अलविदा कहना चाहती हूं । मै जीना चाहती हूँ, बहुत-बहुत जीना चाहती हूँ । मुझे हराना है कोरोना वायरस को मुझे भगाना है देश के जयचंदो को हर जरूरतमंद की दुआ बन संकू हर प्यासे को पानी पिला संकू सत्ता के गलियारों तक मेरी आवाज गूँजे । विधान सभा से संसद तक एक पगडंडी बनाना चाहती हूं । जिस पर चलकर हर ईमानदार शख्स गुजरे । मठाधीशो की पीड़ा से पहचान कराना चाहती हूँ । मै दुआ करना चाहती हूं और हर उस दुआ में शामिल होना चाहती हूँ जो हर जरूरतमंद के लिए हो अभावों में पलते पलते रिस आई है जिनकी जिंदगी उन्हे संवेदना और संजीवनी के दो घूँट पिलाना चाहती हूं । जो मुझसे सहमत हो वो, और जुड़े मुझसे । एक सम्मिलित और उन्मुक्त ठहाका लगाना चाहती हूँ । क्या आप मेरे लिए दुआ करेंगे, क्या आपके हाथ मेरे लिए दुआ के लिये उठ सकेगें । अगर हाँ ,तो आओ मेरे साथ हम साथ साथ रोयेगे भी, मुस्कुरायेंगे भी । लेकिन शव किसी गंगा में नहीं बहायेगे। अंजना मिश्र