घाटे में चल रहे संजीवनी केंद्र को आउटसोर्स पर देने का निर्णय


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स्टोरी हाइलाइट्स

डिफॉल्टर संजीवनी केंद्र भोपाल पर मेहरबान रहे पूर्व सीईओ डॉ कुमार..!!

भोपाल: राजधानी के लिंक रोड एक पर स्थापित संजीवनी केंद्र भोपाल पर 23 लाख रुपए का बकाया होने के बाद भी विंध्य हर्बल के उत्पाद उधारी में दिया जाता रहा है। जबकि एमएफपी पार्क डिप्टी मैनेजर संजीवनी केंद्र के संचालक न्यू निधि आयुर्वैदिक स्टोर को नोटिस पर नोटिस भेजते रहे। सूत्रों का कहना है कि पूर्व सीईओ और वर्तमान पीसीसीएफ (प्रोटेक्शन) डॉ दिलीप कुमार के फरमान पर उप प्रबंधक द्वारा उत्पाद सप्लाई करना मजबूरी बन गई थी।

यह खुलासा भी लघु वनोपज संघ में एपीसीसीएफ प्रशासन मनोज अग्रवाल के पत्र के बाद प्रकाश में आया। अग्रवाल के पत्र के बाद से ही एमएफपी पार्क में दशकों से व्याप्त अनियमितताएं धीरे-धीरे बाहर आने लगी है। इसी कड़ी में  भोपाल के प्राइम लोकेशन में स्थित संजीवनी केंद्र में नियम के विपरीत विंध्य हर्बल का लाखों रुपए का उत्पाद उधारी में दिया जाता रहा। संघ के नियम के अनुसार चार लाख से अधिक उधारी होने पर विंध्य हर्बल उत्पाद नहीं दिए जाने का प्रावधान है। 4  जुलाई 2023 की स्थिति में संजीवनी केंद्र भोपाल के संचालक न्यू निधि आयुर्वैदिक स्टोर पर 23 लाख 96 हजार से अधिक की राशि बकाया है।  

सूत्रों ने बताया कि संचालक ने फिलहाल 10 लाख के लगभग राशि जमा कर दी है। इन्हीं सूत्रों का कहना है कि यह राशि तब जमा हुई जब संघ के एमडी बिभाष ठाकुर ने तत्कालीन सीईओ को नोटिस देने की निर्देश दिए। दिलचस्प स्थिति यह है कि यदि मौजूदा स्थिति में संजीवनी केंद्र से  न्यू निधि आयुर्वैदिक स्टोर को बेदखल किया जाता है तो लाखों रुपए का नुकसान संघ को उठाना पड़ जाएगा। अब वर्तमान सीईओ पशोपेश में है कि न्यू निधि आयुर्वैदिक स्टोर से वसूली कैसे की जाए? 

आउटसोर्स पर केंद्र देने का निर्णय

राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ के प्रबंध संचालक बिभाष ठाकुर ने प्रदेश में घाटे पर चल रही संजीवनी आयुर्वेद केंद्रों के साथ ही संजीवनी आयुर्वैदिक चिकित्सालय को आउटसोर्स पर देने का निर्णय लिया है। एमडी के इस फैसले पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। संजीवनी आयुर्वेद केंद्र को आउटसोर्स पर देने के निर्णय पर तो सभी की सहमति है किंतु एमएफपी पार्क बरखेड़ा पठानी में स्थित संजीवनी आयुर्वेद चिकित्सालय को लीज रेंट देने पर सवाल जरूर उठ रहे हैं। प्रश्न उठ रहा है कि जब संजीवनी आयुर्वेद चिकित्सालय के संचालन में घटा नहीं हो रहा है तब फिर क्यों आउटसोर्स पर दिया जा रहा है। यह बात अलग है कि संजीवनी केंद्र के संचालक के लिए कोई सस्ता और व्यक्ति आगे नहीं आ रहा है। यही वजह है कि आउटसोर्स देने के लिए संघ को चौथी बार टेंडर आमंत्रित करना पड़ा है।