बिना निविदा बुलाए 75 लाख रुपए के कार्य करने के मामले में उलझे संजय नेशनल पार्क के एफडी


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स्टोरी हाइलाइट्स

अब भुगतान के लिए ठेकेदार कर रहा है अफसर की गणेश परिक्रमा..!!

भोपाल: संजय नेशनल पार्क फील्ड डायरेक्टर और सामाजिक वानिकी वृत्त रीवा में प्रभारी सीसीएफ रहे अमित दुबे अपने चाहेते ठेकेदार से  बिना टेंडर बुलाए 75 लाख रुपए से अधिक के कार्य कराए जाने के मामले में उलझते नजर आ रहे हैं। वर्तमान प्रभारी वन संरक्षक सामाजिक वानिकी अजय पांडेय ने पुराने समस्त प्रमाणिकों की जांच के बाद भुगतान करने की बात कही है।

सूत्रों का कहना है कि इसी ठेकेदार आजाद ट्रेडर्स रीवा से दुबे ने संजय नेशनल पार्क में भी  करोड़ों रुपए के कार्य कराए और उसका भुगतान भी कर दिया है। दिलचस्प पहलू यह है कि दुबे रीवा के मूल निवासी हैं। वे करीब डेढ़ साल तक यहां प्रभारी के रूप में पदस्थ थे जबकि नियमानुसार उनकी यह पदस्थापना अवैधानिक थी। दुबे की पदस्थापना को लेकर शासन से लेकर मुख्यालय तक के शीर्षस्थ अधिकारी जानबूझकर चुप रहे।

यह मामला तब प्रकाश में आया, जब सामाजिक वानिकी रीवा वृत के एसडीओ केबी सिंह ने पूर्व प्रभारी सीसीएफ सामाजिक वानिकी और संजय नेशनल पार्क के फील्ड डायरेक्टर अमित दुबे द्वारा कराए गए प्रमाणकों पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। इसकी मुख्य वजह एसडीओ को उनके द्वारा कराए गए प्रमाणिकों में कई तरह की गड़बड़ियां होना बताया जा रहा है। इसी वजह आजाद ट्रेडर्स को भुगतान करने से मना कर दिया। ऐसी स्थिति में जब ठेकेदार ने फील्ड डायरेक्टर पर भुगतान के लिए दबाव बनाया तब उन्होंने सामाजिक वानिकी डीडीओ का प्रभार संजय नेशनल पार्क के एसडीओ निकुंज पांडेय को दे दिया। 

यह आदेश करते समय उन्होंने मुख्य वन संरक्षक राजेश राय से भी सहमति नहीं ली। नियम के मुताबिक एसडीओ पांडेय सामाजिक वानिकी रीवा के डीडीओ का अधिकार नहीं दिया जा सकता था। शायद यही वजह रही कि पांडेय ने भी विवादों से बचने के लिए दुबे द्वारा नर्सरी में कराए गए कार्यों के भुगतान पर अपनी सहमति नहीं दी। इस बीच  वन विभाग में वन संरक्षक वर्किंग प्लान छतरपुर में पदस्थ अजय पांडेय को सामाजिक वन की रीवा का अतिरिक्त प्रभार दे दिया। अब आजाद ट्रेडर्स रीवा के संचालक अब प्रभारी वन संरक्षक सामाजिक वानिकी अजय पांडेय पर भुगतान के लिए लगातार दबाव बनाया जा रहा है। 

जंगल में मोर नाचा किसने देखा 

अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की पदस्थापना में यह नियम स्पष्ट है कि उनको उनके गृह जिला में पोस्टिंग नहीं की जा सकती है। इसके पीछे केंद्रीय कार्मिक विभाग का मानना है कि अपने गृह जिले में पदस्थापन होने पर अपने लोगों के दबाव में नियमों की विपरीत जाकर काम करने लगते हैं। जंगल में मोर नाचा किसने देखा, यह लोकप्रिय कहावत अमित दुबे की रीवा में पोस्टिंग के दौरान चरित्रार्थ हुई। मैनेजमेंट कोटे से हुई अमित दुबे की पदस्थापना करते समय मंत्रालय से लेकर मुख्यालय तक के शीर्षस्थ अधिकारियों को इस बात का भान नहीं होगा कि यह गड़बड़ी कभी उजागर भी हो सकेगी, क्योंकि जंगल महकमा सरकार की नजरों से हमेशा अपेक्षित रहा है। 

इन कार्यों पर खर्च किए गए 75 लाख

सोलर स्ट्रीट लाइट                                     9,00,000
विद्युत स्ट्रीट लाइट                                  1,05,600
वाटर कूलर और आरो                              4,44,000
सोलर कैमरा                                           1, 68,000
सोलर पम्प 3 एचपी                                 4,99,999
सोलर पम्प 5 एचपी                                 2,99,999
ईटा, बालू, सीमेंट, सरिया मिटटी आदि     39,00,000
मजदूरी की राशि                                    12, 00, 000