भोपाल। नीमच में वन भूमि को फैक्ट्री के लिए आवंटित करने के मामले को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) सेंट्रल जोन भोपाल ने गंभीरता से लिया है। एनजीटी ने अपने फैसले में सरकार से पूछा है कि एक बार जब भूमि वन भूमि के रूप में अधिसूचित हो गई, तो इसे वन विभाग के किसी आदेश के बिना कैसे ले लिया गया ? एनजीटी के जस्टिस शिवकुमार सिंह और सदस्य डॉक्टर अफरोज अहमद ने अपने संयुक्त फैसले में यह भी कहा है कि रिपोर्ट के अवलोकन से पता चलता है कि तीन विभागों वन, राजस्व और मप्र औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड में हितों को लेकर टकराव है।
नीमच जिले में जंगल महकमे की अनुमति के बिना 18 एकड़ वन भूमि फैक्ट्री हो आवंटित करने का मामला एनजीटी सेंट्रल जोन भोपाल में पहुंच गया है। 5 सितंबर को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस मसले को लेकर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान एनजीटी ने एमपीआरडीसी को प्रतिवादी बनाने के निर्देश दिए हैं। इसके पहले एनजीटी में प्रदूषण नियंत्रण मंडल, राजस्व और वन विभाग ने अलग-अलग रिपोर्ट प्रस्तुत कर विवादित भूमि पर दावेदारी जताई।
मामला गंभीर प्रकृति का है और इसलिए, हम निर्देश देते हैं कि वन विभाग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट की प्रति मुख्य वन संरक्षक, सचिव राजस्व और औद्योगिक नीति और औद्योगिक संवर्धन विभाग के प्रमुख सचिव को एक संयुक्त बैठक आयोजित करने के लिए भेजी जाए। एनजीटी ने भूमि की प्रकृति के संबंध में निर्णायक रिपोर्ट 15 दिन में प्रस्तुत करें। अगली सुनवाई 23 सितंबर को सुनिश्चित की गई है।
आवंटन आदेश में प्लॉट नंबर का संदर्भ नहीं
एनजीटी ने अपने फैसले में यह भी उल्लेख किया है कि एमपीआरडीसी द्वारा दिनांक 18 जनवरी 2024 को पत्र क्रमांक 1040 द्वारा संप्रेषित आवंटन आदेश में किसी भी प्लॉट नंबर का कोई संदर्भ नहीं है।राज्य के विद्वान वकील ने प्रस्तुत किया है कि दस्तावेजों का अध्ययन करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कुछ और समय की आवश्यकता है। वन विभाग और राज्य के विद्वान वकील को निर्देश दिया जाता है कि वे ऊपर नामित प्रमुख सचिव को आदेश की दस्तावेज और प्रति भेजें, ताकि वे भूमि की प्रकृति के बिंदु पर निर्णायक रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकें।
वन भूमि को नियम विरुद्ध आंवटन पर फैक्ट फाइल
म.प्र. राजपत्र दिनांक 25 जुलाई 1985 को पारित अधिसूचना में वनखण्ड लासूर को ग्राम जनकपुर में कुल 176.932 हेक्टेयर भूमि आरक्षित वन घोषित की गई जो वनपरिक्षेत्र जावद के बीट बसेदभाटी के कक्ष क. 89 में स्थित आरक्षित वनभूमि है। राजस्व अधिकारियों ने मनमाने ढंग से 124 हेक्टेयर भूमि को ही आरक्षित वन मानकर राजस्व रिकार्ड में दर्ज की एवं शेष भूमि को राजस्य भूमि बताकर उस भूमि में से लगभग 18 हेक्टेयर भूमि औद्योगिक विभाग को हस्तांतरित कर फैक्ट्री का निर्माण करवाया जा रहा है। पहली बार राजस्व अधिकारियों ने विशेष दिलचस्पी लेते हुए हस्तांतरण कर दिया।
यानि 15 दिसंबर 23 को भूमि हस्तांतरण की विज्ञप्ति जारी की गई और 16 दिसंबर 23 को वन विभाग से अभिमत प्रस्तुत करने हेतु पत्र लिखा गया। इस पर अभिमत हेतु वन विभाग एवं राजस्व विभाग द्वारा 21 दिसंबर 23 को संयुक्त पंचनामा बनाया गया। पंचनामे में वन विभाग द्वारा बताया गया कि हस्तांतरित भूमि आरक्षित वनभूमि हैं। पंचनामें पर राजस्व निरीक्षक विनोद राठौर, पटवारी तुलसीराम खराडीया एवं वन विभाग के कर्मचारियों द्वारा संयुक्त हस्ताक्षर किए। लेकिन नायब तहसीलदार सुश्री सलोनी पटवा ने पंचनामे पर हस्ताक्षर नहीं किया। हालांकि बंद कर्मचारियों ने पंचनामा का मोबाइल पर फोटो क्लिक कर लिया था।
संयुक्त पंचनामे में हुई छेड़छाड़
नायब तहसीलदार सलोनी पटवा ने पंचनामा लेकर आई और औद्योगिक विभाग के अधिनस्थ कम्पनी को लाभ पंहुचाने लेने के उददेश्य से पंचनामें में छेडछाड कर "मौके पर कोई विवाद नहीं हुआ" वाक्य जोड़ दिया। पंचनामा में छेड़छाड़ करने के बाद नायब तहसीलदार पटवा ने एसडीओ राजस्व राजकुमार हलदार से मिलकर गलत तथ्यों के साथ रिपोर्ट कलेक्टर दिनेश जैन के पास भेज दिए। नीमच कलेक्टर ने भी बिना जांच पड़ताल और वन विभाग की आपत्तियों का निराकरण किया बिना ही वन भूमि का हस्तांतरण आदेश पारित कर दिया। यानी वन अधिनियम का उल्लंघन कर फैक्ट्री को वन भूमि आवंटित करने के मामले में कलेक्टर नीमच ने राजस्व विभाग की कार्रवाई को उचित बताते हुए फैक्ट्री निर्माण कार्य को जारी रखवाया।